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PET को न्यूनतम योग्यता में छूट देने के मामले में शिक्षा विभाग को 71 हजार जुर्माना, आपदा राहत कोष में देनी होगी जुर्माने की रकम

हिमाचल प्रदेश में पीईटी यानी शारीरिक शिक्षकों को न्यूनतम योग्यता में छूट देने के मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने शिक्षा विभाग को 71 हजार रुपए जुर्माना लगाया है. शिक्षा विभाग को जुर्माने की यह राशि हिमाचल आपदा राहत कोष में जमा करनी होगी. (Himachal High Court on PET Minimum Qualification)

Himachal High Court
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 7, 2023, 10:16 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने शिक्षा विभाग को 71 हजार रुपए जुर्माना लगाया है. ये जुर्माना पीईटी यानी शारीरिक शिक्षकों को न्यूनतम योग्यता में छूट देने से जुड़ा है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा विभाग जुर्माने की रकम को मानसून सीजन में तबाही के प्रभावितों के लिए गठित आपदा राहत कोष में जमा करें. इसके लिए कोर्ट ने शिक्षा विभाग को दो सप्ताह का समय दिया है.

सरकार को माफी के रूप में भरना होगा जुर्माना: दरअसल हिमाचल हाई कोर्ट की एकल पीठ ने इस मामले में एक फैसला दिया था. राज्य सरकार ने उस फैसले को डबल बेंच में चुनौती देने में देरी कर दी. फिर राज्य सरकार ने अदालत ने एकल पीठ के फैसले को चुनौती देने में हुई देरी को माफ करने के लिए आग्रह किया. इस पर माफी की एवज में अदालत ने शिक्षा विभाग को 71 हजार रुपए का जुर्माना लगाया. शिक्षा विभाग ने हाई कोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील दायर करने में 90 दिनों की देरी को माफ करने के लिए एक आवेदन दाखिल किया था. वहीं, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने शारीरिक शिक्षकों को न्यूनतम योग्यता में छूट देने के एकल पीठ के फैसले को रोका गया है. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने उपरोक्त फैसले दिए हैं.

2011 में बढ़ाई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता: गौरतलब है कि राज्य सरकार ने हाई कोर्ट की एकलपीठ के 19 जुलाई 2022 के फैसले को अपील के जरिए से चुनौती दी है. साल 1996 से 1999 तक प्रतिवादियों पीईटी ने शारीरिक शिक्षा में एक वर्षीय डिप्लोमा किया था. फिर डिप्लोमा धारकों ने पीईटी की नियुक्ति के लिए रोजगार कार्यालयों में नाम दर्ज करवाया था. पुराने भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अनुसार, शारीरिक शिक्षक के लिए आवश्यक योग्यता मैट्रिक के साथ एक साल का डिप्लोमा तय था. वर्ष 2011 में पुराने नियमों को निरस्त किया गया और राज्य सरकार ने नए नियम बनाए. इसके तहत 50 फीसदी अंकों के साथ बारहवीं की आवश्यक योग्यता और दो शैक्षणिक वर्षों की अवधि का डिप्लोमा निर्धारित किया.

अपात्र अभ्यर्थियों की हाई कोट से अपील: इससे वर्ष 1997-98 में एक वर्षीय डिप्लोमा धारक शारीरिक शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए अपात्र हो गए. अपात्र अभ्यर्थियों की रिक्वेस्ट पर हिमचाल सरकार ने बैचवाइज भर्ती के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता में एकमुश्त छूट दी और शर्त लगाई गई कि इन सभी को 5 साल के अंदर अपनी एजुकेशनल क्वालिफिकेशन में सुधार करना होगा. सरकार ने वर्ष 1996 -1998 बैच के एक वर्षीय डिप्लोमा धारकों को नियुक्ति देने की बजाए उनसे जूनियर अभ्यर्थियों को बैचवाइज आधार पर नियुक्त कर दिया. अपील में प्रतिवादियों ने सरकार के इस निर्णय को हाई कोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी थी. एकलपीठ ने इनके पक्ष में निर्णय देते हुए सरकार को न्यूनतम योग्यता में छूट देने के बाद इन्हें नियुक्ति प्रदान करने के आदेश दिए थे. अब मामला डबल बेंच के पास है.

ये भी पढ़ें: Himachal High Court: तकनीकी सहायकों को दिया जाए न्यूनतम वेतनमान, हाई कोर्ट ने सरकारी नीति के तहत रेगुलर करने का जारी किया आदेश

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने शिक्षा विभाग को 71 हजार रुपए जुर्माना लगाया है. ये जुर्माना पीईटी यानी शारीरिक शिक्षकों को न्यूनतम योग्यता में छूट देने से जुड़ा है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा विभाग जुर्माने की रकम को मानसून सीजन में तबाही के प्रभावितों के लिए गठित आपदा राहत कोष में जमा करें. इसके लिए कोर्ट ने शिक्षा विभाग को दो सप्ताह का समय दिया है.

सरकार को माफी के रूप में भरना होगा जुर्माना: दरअसल हिमाचल हाई कोर्ट की एकल पीठ ने इस मामले में एक फैसला दिया था. राज्य सरकार ने उस फैसले को डबल बेंच में चुनौती देने में देरी कर दी. फिर राज्य सरकार ने अदालत ने एकल पीठ के फैसले को चुनौती देने में हुई देरी को माफ करने के लिए आग्रह किया. इस पर माफी की एवज में अदालत ने शिक्षा विभाग को 71 हजार रुपए का जुर्माना लगाया. शिक्षा विभाग ने हाई कोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील दायर करने में 90 दिनों की देरी को माफ करने के लिए एक आवेदन दाखिल किया था. वहीं, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने शारीरिक शिक्षकों को न्यूनतम योग्यता में छूट देने के एकल पीठ के फैसले को रोका गया है. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने उपरोक्त फैसले दिए हैं.

2011 में बढ़ाई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता: गौरतलब है कि राज्य सरकार ने हाई कोर्ट की एकलपीठ के 19 जुलाई 2022 के फैसले को अपील के जरिए से चुनौती दी है. साल 1996 से 1999 तक प्रतिवादियों पीईटी ने शारीरिक शिक्षा में एक वर्षीय डिप्लोमा किया था. फिर डिप्लोमा धारकों ने पीईटी की नियुक्ति के लिए रोजगार कार्यालयों में नाम दर्ज करवाया था. पुराने भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अनुसार, शारीरिक शिक्षक के लिए आवश्यक योग्यता मैट्रिक के साथ एक साल का डिप्लोमा तय था. वर्ष 2011 में पुराने नियमों को निरस्त किया गया और राज्य सरकार ने नए नियम बनाए. इसके तहत 50 फीसदी अंकों के साथ बारहवीं की आवश्यक योग्यता और दो शैक्षणिक वर्षों की अवधि का डिप्लोमा निर्धारित किया.

अपात्र अभ्यर्थियों की हाई कोट से अपील: इससे वर्ष 1997-98 में एक वर्षीय डिप्लोमा धारक शारीरिक शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए अपात्र हो गए. अपात्र अभ्यर्थियों की रिक्वेस्ट पर हिमचाल सरकार ने बैचवाइज भर्ती के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता में एकमुश्त छूट दी और शर्त लगाई गई कि इन सभी को 5 साल के अंदर अपनी एजुकेशनल क्वालिफिकेशन में सुधार करना होगा. सरकार ने वर्ष 1996 -1998 बैच के एक वर्षीय डिप्लोमा धारकों को नियुक्ति देने की बजाए उनसे जूनियर अभ्यर्थियों को बैचवाइज आधार पर नियुक्त कर दिया. अपील में प्रतिवादियों ने सरकार के इस निर्णय को हाई कोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी थी. एकलपीठ ने इनके पक्ष में निर्णय देते हुए सरकार को न्यूनतम योग्यता में छूट देने के बाद इन्हें नियुक्ति प्रदान करने के आदेश दिए थे. अब मामला डबल बेंच के पास है.

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