शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर बेहद कड़ी टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा कि आज की तारीख में हिमाचल सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है. सरकार मुकदमेबाजी पर भारी-भरकम रकम खर्च कर रही है. इससे बिना वजह सरकारी खजाने पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है. हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी अफसरों को झगड़ालू तरीके से मुकदमेबाजी करने की जगह अपनी जिम्मेदारियां अपने ही कंधों पर लेनी चाहिए. ये सख्त टिप्पणियां हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने की है.
'हिमाचल सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज': दरअसल, हाईकोर्ट के समक्ष शिक्षा विभाग से जुड़ा एक मामला आया था. उसी मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को अदालत की ये सख्त टिप्पणियां सुननी पड़ी. शिक्षा विभाग में डेपुटेशन से जुड़े मामले का निपटारा करते हुए खंडपीठ ने कहा कि सरकार पर बार-बार दबाव डाला जाता रहा है कि वह अपने कामकाज में मुकदमेबाजी संबंधी नीति को लागू करे. ऐसा करने की स्थिति में ही अदालत यह उम्मीद कर सकती है कि सरकार के लीगल केसिज में कोई समझ और संवेदनशीलता है.
ये है मामला: मामले के अनुसार प्रार्थी कृष्ण लाल की नियुक्ति जिला शारीरिक शिक्षा अध्यापक यानी डीपीई के पद पर हुई थी. प्रार्थी ने जिले में सबसे सीनियर डीपीई होने के नाते डिप्टी डायरेक्टर हायर एजुकेशन कुल्लू में असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट फिजिकल एजुकेशन ऑफिसर (एडीपीईओ) के तौर पर तैनाती का आवेदन किया. उच्चतर शिक्षा निदेशक ने 4 मार्च 2023 को अधिसूचना जारी कर जिले में सबसे सीनियर डीपीई को बिना डेपुटेशन भत्ते के एडीपीईओ के पद पर तैनाती के आदेश जारी किए.
प्रिंसिपल ने नहीं किया पद से भारमुक्त: इसके बाद 13 मार्च को प्रार्थी के आवेदन को स्वीकारते हुए उसे एडीपीईओ के पद पर तैनाती के आदेश जारी कर दिए गए. बाद में उसे 20 मार्च को उपनिदेशक कार्यालय कुल्लू में रिपोर्ट करने को कहा गया. इसलिए प्रार्थी ने 18 मार्च को बजौरिया वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के प्रिंसिपल को उसे कार्यभार मुक्त करने के लिए आवेदन दिया, ताकि वह उपनिदेशक कार्यालय में रिपोर्ट कर सके. इस मामले में 20 मार्च को फिर से प्रिंसिपल को रिमाइंडर भेजा गया परंतु प्रिंसिपल ने उसे पद से भारमुक्त नहीं किया.
कोर्ट ने प्रिंसिपल को ठहराया दोषी: मामले में 20 मार्च को ही उपनिदेशक कुल्लू ने प्रार्थी को सूचित किया कि उसके डेपुटेशन के आदेश तुरंत प्रभाव से रद्द कर दिए गए हैं. इतना ही नहीं हैरानी की बात तो यह रही कि इसके बाद प्रतिवादी सुभाष शर्मा के एडीपीईओ के पद पर तैनाती संबंधी आदेश जारी कर दिए गए. प्रार्थी को शिक्षा विभाग के इस रवैए के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. हाईकोर्ट में भी शिक्षा विभाग प्रार्थी के डेपुटेशन को रद्द करने की असली वजह नहीं बता पाया. कोर्ट ने पूरे मामले को खंगालने के बाद स्कूल के प्रिंसिपल को कसूरवार पाया. जिसने बार-बार अनुरोध के बावजूद प्रार्थी को पद से भारमुक्त नहीं किया.
हिमाचल सरकार को हाईकोर्ट की फटकार: हाईकोर्ट ने उच्चतर शिक्षा निदेशक के जवाब पर हैरानी जताई और कहा कि यदि प्रतिवादी अधिकारियों ने स्पष्ट तौर पर प्रिंसिपल की गलती मानी होती तो अधिकारी की सराहना की जा सकती थी. परंतु वे ऐसे कारणों की तलाशने में जुट गए जो बिल्कुल गलत, बेतुके और कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है. हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि सरकार ने अपनी अनुचित कार्रवाई को उचित ठहराने का प्रयास किया. इसी संदर्भ में अदालत की सख्त टिप्पणी सामने आई, जिसमें कहा गया कि आज की तारीख में हिमाचल सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है.
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