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Himachal High Court: भूमि अधिग्रहण मुआवजे से जुड़े मामलों के निपटारे पर हाईकोर्ट की सलाह, रिटायर डिस्ट्रिक्ट व एडिशनल जजों को दी जाए मिडिएशन की शक्तियां - हिमाचल में भूमि अधिग्रहण मामले पर सुनवाई

हिमाचल हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण मुआवजे से जुड़े मामलों के निपटारे की सलाह दी है. साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि रिटायर डिस्ट्रिक्ट व एडिशनल जजों को मिडिएशन की शक्तियां दी जाए. पढ़िए पूरी खबर...(Himachal High Court) (Himachal land acquisition compensation cases).

Himachal High Court
हिमाचल हाईकोर्ट
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Published : Aug 19, 2023, 10:08 PM IST

शिमला: बड़ी संख्या में भूमि अधिग्रहण से जुड़े लंबित मामलों के निपटारे के लिए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने संबंधित एजेंसियों को एक सलाह दी है. हाईकोर्ट ने इन मामलों के तेजी से निपटारे के लिए रिटायर हो चुके डिस्ट्रिक्ट व एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जजों को मिडिएशन यानी मध्यस्थता की शक्तियां दी जाएं. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान ने नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया व केंद्र सरकार को इस बारे में विचार करने को कहा है.

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 22 मार्च 2012 को एक आदेश दिया था, जिसमें हिमाचल के राजस्व जिलों शिमला व सोलन के लिए डिविजनल कमिश्नर शिमला तथा बिलासपुर को मध्यस्थ नियुक्त किया था. इसके साथ ही बिलासपुर, मंडी व कुल्लू राजस्व जिलों के लिए डिविजनल कमिश्नर मंडी को मध्यस्थ नियुक्त किया गया था. दोनों डिविजनल कमिश्नर्स को अधिग्रहण से जुड़े सभी मामलों को निपटाने का अधिकार दिया गया था.

इस मामले में अदालत को सूचित किया गया कि डिविजनल कमिश्नर शिमला के समक्ष भूमि अधिग्रहण से जुड़े कुल 869 मामले लंबित हैं. इसी तरह डिविजनल कमिश्नर मंडी के समक्ष कुल 2660 मामले लंबित हैं. उनमें से कुछ मामले तो आठ साल पुराने हैं. वर्ष 2015 से ये मामले लंबित हैं.

याचिकाकर्ताओं के वकीलों द्वारा न्यायालय के ध्यान में यह भी लाया गया कि शिमला और मंडी के डिविजनल कमिश्नर नियमित प्रशासनिक कामों के अतिरिक्त राजस्व मामलों के बोझ को झेल रहे हैं. ऐसे में डिविजनल कमिश्नर्स के पास भूमि अधिग्रहण से जुड़े इन मामलों पर निर्णय लेने के लिए समय ही नहीं मिल पाता है. अदालत ने पाया कि ऐसी परिस्थितियों में, दावेदारों और उनके वकीलों को इधर-उधर दौड़ना पड़ता है और प्राधिकारी द्वारा निर्णय के लिए काफी समय तक इंतजार करना पड़ता है. जब निर्णय नहीं दिया जाता है तो असहाय दावेदारों के पास अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है.

न्यायालय ने कहा कि यह मुद्दा वास्तव में बेहद गंभीर है और इसलिए, सभी हितधारकों, विशेष रूप से एनएचएआई और केंद्र सरकार को इस पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है. न्यायालय ने याचिकाओं में मध्यस्थता कार्यवाही पूरी करने का समय 28.02.2024 तक बढ़ा दिया. हाईकोर्ट ने भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल को हिमाचल प्रदेश को चार सप्ताह के भीतर इस आदेश के आधार पर की गई कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है.

ये भी पढ़ें: Himachal High court: हिमाचल विद्युत निगम की तीन श्रेणियों के कर्मचारियों को 2009 से किया जाए रेगुलर, हाईकोर्ट ने दिए आदेश

शिमला: बड़ी संख्या में भूमि अधिग्रहण से जुड़े लंबित मामलों के निपटारे के लिए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने संबंधित एजेंसियों को एक सलाह दी है. हाईकोर्ट ने इन मामलों के तेजी से निपटारे के लिए रिटायर हो चुके डिस्ट्रिक्ट व एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जजों को मिडिएशन यानी मध्यस्थता की शक्तियां दी जाएं. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान ने नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया व केंद्र सरकार को इस बारे में विचार करने को कहा है.

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 22 मार्च 2012 को एक आदेश दिया था, जिसमें हिमाचल के राजस्व जिलों शिमला व सोलन के लिए डिविजनल कमिश्नर शिमला तथा बिलासपुर को मध्यस्थ नियुक्त किया था. इसके साथ ही बिलासपुर, मंडी व कुल्लू राजस्व जिलों के लिए डिविजनल कमिश्नर मंडी को मध्यस्थ नियुक्त किया गया था. दोनों डिविजनल कमिश्नर्स को अधिग्रहण से जुड़े सभी मामलों को निपटाने का अधिकार दिया गया था.

इस मामले में अदालत को सूचित किया गया कि डिविजनल कमिश्नर शिमला के समक्ष भूमि अधिग्रहण से जुड़े कुल 869 मामले लंबित हैं. इसी तरह डिविजनल कमिश्नर मंडी के समक्ष कुल 2660 मामले लंबित हैं. उनमें से कुछ मामले तो आठ साल पुराने हैं. वर्ष 2015 से ये मामले लंबित हैं.

याचिकाकर्ताओं के वकीलों द्वारा न्यायालय के ध्यान में यह भी लाया गया कि शिमला और मंडी के डिविजनल कमिश्नर नियमित प्रशासनिक कामों के अतिरिक्त राजस्व मामलों के बोझ को झेल रहे हैं. ऐसे में डिविजनल कमिश्नर्स के पास भूमि अधिग्रहण से जुड़े इन मामलों पर निर्णय लेने के लिए समय ही नहीं मिल पाता है. अदालत ने पाया कि ऐसी परिस्थितियों में, दावेदारों और उनके वकीलों को इधर-उधर दौड़ना पड़ता है और प्राधिकारी द्वारा निर्णय के लिए काफी समय तक इंतजार करना पड़ता है. जब निर्णय नहीं दिया जाता है तो असहाय दावेदारों के पास अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है.

न्यायालय ने कहा कि यह मुद्दा वास्तव में बेहद गंभीर है और इसलिए, सभी हितधारकों, विशेष रूप से एनएचएआई और केंद्र सरकार को इस पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है. न्यायालय ने याचिकाओं में मध्यस्थता कार्यवाही पूरी करने का समय 28.02.2024 तक बढ़ा दिया. हाईकोर्ट ने भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल को हिमाचल प्रदेश को चार सप्ताह के भीतर इस आदेश के आधार पर की गई कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है.

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