शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने पुलिस विभाग द्वारा अपने कर्मी को डिमोट किए जाने के निर्णय को खारिज कर दिया है. न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने याचिकाकर्ता लजेंद्र सिंह पठानिया की याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है.
ये है पूरा मामला: मामले के अनुसार याचिकाकर्ता सहित विभाग में कार्यरत एक अन्य लिपिक को 24 अगस्त 2006 को पदोन्नत किया गया था. सामान्य वर्ग के लिए पद आरक्षित न होने के कारण याचिकाकर्ता को पदोन्नत नहीं किया गया. उस समय विभाग में पांच वरिष्ठ सहायक के पदों को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रखा गया था, लेकिन योग्य लिपिक न होने के कारण ये पद खाली रह गए.
सहकर्मियों ने प्रमोशन को दी चुनौती: याचिकाकर्ता ने खाली पदों को भरने के लिए विभाग के पास प्रतिवेदन किया. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने तात्कालिक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में आवेदन दायर किया. ट्रिब्यूनल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत विभाग को आदेश दिए कि उसे पदोन्नति का लाभ दिया जाए. विभाग ने याचिकाकर्ता को 24 अगस्त 2006 से वरिष्ठ सहायक के पद पर पदोन्नति दे दी. इस पदोन्नती को याचिकाकर्ता के सहकर्मियों ने विभाग के समक्ष चुनौती दी.
हिमाचल हाई कोर्ट का फैसला: विभाग में दलील दी गई कि वे लिपिक वर्ग में याचिकाकर्ता से वरिष्ठ हैं. यदि याचिकाकर्ता को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पद पर पदोन्नति दी जाती है, तो उस स्थिति में पहले उन्हें पदोन्नति का लाभ दिया जाना चाहिए. विभाग ने याचिकाकर्ता की पदोन्नति को वापस लिया और उसे पदोन्नति का लाभ वर्ष 2010 से दिया गया. अपनी डिमोशन के खिलाफ प्रार्थी ने हिमाचल हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सार्वजनिक पदों पर रिक्ति आधारित आरक्षण दिया जाना चाहिए.