शिमला: अडानी समूह की कंपनी मैसर्ज अडानी पावर लिमिटेड को एक हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट से जुड़े 280 करोड़ रुपए लौटाने के मामले में अब सुनवाई 27 मार्च को तय की गई है. सरकार ने इस मामले में अदालत में बहस के लिए अतिरिक्त समय की मांग की. हिमाचल हाई कोर्ट की खंडपीठ ने इस मांग के बाद सुनवाई टाल दी. प्रदेश हाई कोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सबीना व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ के समक्ष इस मामले की सुनवाई हुई. सरकार की तरफ से बहस के लिए एक्स्ट्रा टाइम मांगने पर हाई कोर्ट ने सरकार व अडानी समूह द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दाखिल अपीलों की सुनवाई की अगली तिथि 27 मार्च निर्धारित कर दी.
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व हाई कोर्ट की एकल पीठ ने हिमाचल सरकार को जंगी-थोपन-पोवारी जलविद्युत परियोजना के लिए जमा किए गए 280 करोड़ रुपए की राशि को अडानी समूह को ब्याज सहित वापिस करने के आदेश दिए थे. सरकार ने इस मामले में अपील करने में देरी की थी. इस कारण सरकार को अपील में देरी को माफ करने की अर्जी भी अदालत में देनी पड़ी थी. यही नहीं, सरकार ने तो फीस वापसी के आदेशों पर रोक लगाने की गुहार भी लगाई थी, लेकिन अदालत की सिंगल बैंच के आदेश पर रोक लगाने से डबल बैंच ने इंकार कर दिया था.
हाई कोर्ट की एकल पीठ ने पिछले साल 12 अप्रैल को जारी फैसले में सरकार को आदेश दिए थे कि वह 4 सितंबर 2015 को कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार दो महीने की अवधि में यह राशि (280 करोड़) अडानी समूह को वापस करें. एकल पीठ ने यह आदेश अडानी पावर लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर पारित किए थे. साथ ही आदेश जारी किए थे कि यदि सरकार यह राशि दो माह के भीतर प्रार्थी कंपनी को वापिस करने में असफल रहती है तो उसे नौ प्रतिशत सालाना ब्याज सहित तय रकम कंपनी को देनी होगी.
विगत साल 12 अप्रैल को पारित इस फैसले को सरकार ने अपील के माध्यम से खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी. अडानी समूह की पावर कंपनी ने विशेष सचिव (विद्युत) के 7 दिसंबर 2017 को जारी पत्राचार को हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर चुनौती दी थी. अदालत ने कंपनी की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार किया. इसके अलावा एकल पीठ ने कहा था कि जब कैबिनेट ने 4 सितंबर, 2015 को प्रशासनिक विभाग द्वारा तैयार किए गए विस्तृत कैबिनेट नोट पर ध्यान देने के बाद स्वयं ही यह राशि वापस करने का निर्णय लिया था तो यह समझ में नहीं आता कि अपने ही फैसले की समीक्षा किस आधार पर की गई.
मामले के अनुसार अक्टूबर 2005 में हिमाचल सरकार ने 980 मैगावाट की दो हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजनाओं जंगी-थोपन-पोवारी पावर के संबंध में निविदा जारी की थी. निविदा में विदेशी कंपनी मैसर्स ब्रेकल कारपोरेशन को परियोजनाओं के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाला पाया गया. उसके बाद ब्रेकल कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के रूप में 280.06 करोड़ रुपये की राशि राज्य सरकार के पास जमा कर दी. बाद में तत्कालीन हिमाचल सरकार ने परियोजनाओं की फिर से बोली लगाने का फैसला किया.
इसके बाद ब्रेकल ने राज्य सरकार से पत्राचार के माध्यम से 24 अगस्त, 2013 को अनुरोध किया था कि अडानी पावर लिमिटेड के कंसोर्टियम पार्टनर होने के नाते 280.00 करोड़ रुपये के अग्रिम प्रीमियम राशि को अप टू डेट ब्याज के साथ उसे वापस किया जाए. पूर्व की जयराम सरकार में भी अदालत में इस मामले पर अंतिम निर्णय नहीं आ पाया था. अब सुखविंदर सिंह सरकार भी यही चाहती है कि किसी तरह अपफ्रंट प्रीमियम राशि देने से बच सके. कारण ये है कि 280 करोड़ रुपए की रकम हिमाचल सरकार के लिए एक बड़ी रकम है. फिलहाल, मामले पर अगली सुनवाई 27 मार्च को होगी.
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