शिमला: हिमाचल सरकार इस साल सीजन के दौरान सेब का भाड़ा वजन के हिसाब से तय करने का दावा कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही है. प्रशासन इस बार भी पेटियों के हिसाब से सेब का माल भाड़ा तय कर रहे हैं. यही वजह है कि किसान और बागवान संगठन सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं.
सरकार की मुश्किल बना सेब: हिमाचल में सेब, सरकार के लिए एक बड़ा मसला बन गया है. बागवान संगठनों के लगातार दबाव के बाद सरकार ने किलो के हिसाब से सेब बेचने का ऐलान कर डाला और इसकी नोटिफिकेशन भी सरकार ने जारी कर दी. हालांकि इसको लागू करने के लिए बागवान और आढ़ती सरकार से यूनिवर्सल कार्टन की मांग लगातार कर रहे हैं, जो कि पूरी नहीं हुई. इसके साथ ही बागवानों की एक बड़ी मांग यह भी रही है कि हिमाचल में सेब का भाड़ा भी गुड्स एंड पैसेंजर टैक्स एक्ट 1955 के तहत तय किया जाए. बागवानों की मांग पर सरकार ने इसका भी ऐलान किया और कहा कि इसके लिए प्रशासन को आदेश जारी किए गए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई पालन नहीं हो रहा है.
SDM पेटियों के हिसाब से तय कर रहे भाड़ा: हिमाचल में सेब का भाड़ा एसडीएम लेवल पर तय किया जाता है. एसडीएम ट्रांसपोर्टरों के साथ बैठक कर हर साल किराए की दरें निर्धारित करते हैं. प्रशासन ने सेब ढुलाई का भाड़ा तय करना शुरू कर दिया है, क्योंकि सेब सीजन अब बिल्कुल नजदीक है. मगर यह भाड़ा किलो या वजन के हिसाब से नहीं बल्कि पेटियों के हिसाब से तय हो रहा है. बीते दिनों कुल्लू जिला के आनी में प्रशासन ने ट्रांसपोर्टरों के साथ बैठक की, इसमें पिछले साल की तरह की इस बार भी पेटियों के हिसाब से भाड़ा तय करने का फैसला लिया. हालांकि इस बार भाड़ा नहीं बढ़ाया गया है और पिछले साल का ही भाड़ा लेने की बात की गई है, लेकिन यह भाड़ा पेटियों के हिसाब से है जो कि पहले ही ज्यादा है. अगर इसको पैसेंजर एंड गुड्स टैक्स एक्ट के हिसाब से तय किया जाता है तो यह भाड़ा काफी कम हो जाएगा और इससे किसानों को राहत मिलती.
ये भी पढ़ें: वजन के हिसाब से मंडियों में सेब बेचना नहीं होगा आसान, बागवान और आढ़तियों को विवाद की आशंका
पैसेंजर एंड गुड्स टैक्स एक्ट लागू न करने पर सरकार पर बागवानों का रोष: दरअसल किसी भी सामान का मालभाड़ा पासेंजर एंड गुड्स टैक्स एक्ट-1955 के तहत ही तय किया जाता है. सभी प्रकार का मालभाड़ा इसी एक्ट के तहत निर्धारित किया जाता है, लेकिन हिमाचल में सेब व अन्य फल पेटियों के हिसाब से भाड़ा लिया जाता है. इसी तरह सब्जियों का भाड़ा भी बोरियों के हिसाब से तय हो रहा है, जिससे बागवानों और किसानों को भारी किराया चुकाना पड़ रहा है. यही वजह है कि बागवान और किसान संगठन लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि जब मालभाड़े के लिए पैंसेंजर एंड गुड्स एक्ट बनाया गया है तो फलों और सब्जियों पर इसको क्यों लागू नहीं किया जा रहा़. अगर इस एक्ट को फलों और सब्जियों पर लागू किया जाता है तो प्रति किलो मीटर प्रति किलो के हिसाब से इनका भाड़ा होगा, जिससे बागवानों और किसानों की इनकी ट्रांसपोर्टेशन आने वाली भारी लागत से राहत मिलेगी.
संयुक्त किसान मंच ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल: 27 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मंच ने सेब के भाड़े को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं. मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि सरकार जुबानी तौर पर सेब का भाड़ा वजन के हिसाब से तय करने की बात कर रही है, लेकिन इस बारे में डीसी और एडीएम को लिखित में कोई भी आदेश नहीं दिए गए हैं. यही वजह है कि बागवान लगातार सरकार से मांग कर रहे हैं कि हिमाचल में पैसेंजर एंड गुड्स टैक्स एक्ट-1955 के अनुसार सेब का भाड़ा वजन और प्रति किलोमीटर के हिसाब से तय किया जाए. उन्होंने कहा कि हाल ही में डीसी शिमला के साथ हुई बैठक में भी बागवानों ने इसकी मांग रखी थी. इसी तरह जुब्बल कोटखाई के एसडीएम के साथ हुई बैठक में भी इस मसले को रखा गया. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने इस संबंध में फैसला नहीं किया तो बागवान हर मोर्चे पर इसकी लड़ाई लड़ेंगे.
वजन के हिसाब से सेब का भाड़ा निर्धारित करने के आदेश: बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि अबकी बार वजन के हिसाब से सेब का भाड़ा तय करने के आदेश दिए गए हैं. उनका तो यह भी कहना है कि बागवानी निदेशक ने भाड़े को लेकर ट्रांसपोर्टरों के साथ बैठक भी की है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि अगर सरकार वजन के हिसाब से सेब का भाड़ा लेने का आदेश दिए हैं तो प्रशासन पेटियों के हिसाब से भाड़ा कैसे तय कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें: Danger! हिमाचल में सेब पर मंडरा रहा खतरे का बादल, मौसम में बदलाव के चलते घटा उत्पादन