शिमला: जिला शिमला की वन रेंज कोटी में 416 पेड़ों को अवैध रूप से काट डाला गया था. मामला 2018 का है. अब इस वन कटान मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से शपथ पत्र दाखिल करने को कहा है. साथ ही दोषी कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की रिपोर्ट भी तलब की है. दोषियों के खिलाफ अब तक क्या एक्शन लिए गए, इसका ब्यौरा भी पेश करने को कहा है. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ कर रही है. हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में अप्रैल 2021 को जारी किए गए आदेश के अनुसार विभागीय कार्रवाई की जानकारी मांगी है. इसके अलावा खंडपीठ ने दोषी वन कर्मियों की चल व अचल संपत्ति की जांच संबंधी जानकारी भी तलब की है.
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने इस मामले में 20 अप्रैल 2021 को वन विभाग के प्रधान सचिव को 16 आरोपी अधिकारियों से 34 लाख, 68 हजार 233 रुपये की वसूली के लिए जिम्मेवारी तय करने के आदेश दिए थे. इन अधिकारियों में दो वन अरण्यपाल, दो वन मंडल अधिकारी, तीन सहायक वन अरण्यपाल, दो रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, छह ब्लॉक ऑफिसर और एक फॉरेस्ट गार्ड शामिल है.
यह सभी अधिकारी व फॉरेस्ट ब्लॉक कोटी, वन बीट भलावाग, फॉरेस्ट रेंज कोटी, फॉरेस्ट डिवीजन शिमला और फॉरेस्ट सर्किल शिमला में वर्ष 2015 से 2018 के बीच तैनात थे. इसी अवधि में कोटी वन रेंज में 416 पेड़ों का अवैध कटान हुआ था. कोर्ट ने इन अधिकारियों को अदालत में उपस्थित होने का अवसर देते हुए कहा था कि यह कर्मी उपरोक्त रकम की वसूली और उनके सेवा रिकॉर्ड में दर्ज चूक की प्रविष्टि करने से पहले अपनी बात अदालत के समक्ष रख सकते हैं.
इस मामले में अदालत को बताया गया था कि अनिवार्य फील्ड निर्देशों के अनुसार विभिन्न वन अधिकारियों का यह कर्तव्य है कि वे अपने अधीन आने वाले क्षेत्र का निरीक्षण कर किसी भी रूप में पेड़ों की कटाई का पता लगाएं. विभाग ने उच्च अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय केवल उन अधिकारियों के खिलाफ एक्शन शुरू किया जो रैंक में सबसे कम हैं. विभाग ने केवल छोटे रैंक के कर्मचारियों को निशाना बनाया.
कोर्ट ने सभी पक्षकारों की दलीलों के सुनने के बाद कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले में बेशक काटे गए पेड़ों की लकड़ी की लागत वसूल कर ली होगी, लेकिन पेड़ों की सेवाओं का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता. पेड़ न केवल ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि वे डी-कार्बोनाइजर भी हैं. हाईकोर्ट ने कहा था कि जो अधिकारी 100 साल की उम्र के पेड़ों के इस नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें दंड देना ही होगा. मूल्यवान पेड़ों की इस तरह की अवैध कटाई की भरपाई किसी भी रूप से नहीं की जा सकती है. मामले पर अगली सुनवाई 26 मार्च को होगी.
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