शिमला: राजधानी शिमला में ब्रिटिशकाल में स्थापित नलों से अब फिर से पानी निकलने लगा है. जल निगम शिमला ने शहर में अंग्रेजों के समय की विरासत को सहेजने का जिम्मा उठाया है और शहर में वर्षों से खराब पड़े शेर के मुंह वाले नलों को दोबारा से दुरुस्त करना शुरू कर दिया है. शहर में केवल ऐसे पांच ही नल बचे हैं. इनमें से ही केवल एक ही नल सभी हिस्सों के साथ सही सलामत बचा है. यह एक मात्र हेरिटेज नल मिडल बाजार में लगा है, जिसे जल निगम शिमला ने दुरुस्त कर दिया है और इसमें से लोगों को पीने को पानी मिल रहा है.
पुराने समय में लोग इस नल के लिए 'कान मरोड़ कर शेर के मुह से पानी निकालो ' जैसी लाइनों का इस्तेमाल करते थे. शेर के मुंह के ढांचा वाले यह नल कैसे बने, किस तकनीक से बनाए गए, इसकी जानकारी किसी को नहीं है. वहीं, अब न ही इसमें लगे पार्ट भी कही मिल रहे हैं, लेकिन जल निगम के मिस्त्री ने जुगाड़ लगा कर दोबारा से एक नल को ठीक कर दिया है, जिससे पानी निकल रहा है.
यह नल देखने में जितने खूबरसूरत है, उतना ही अलग अंदाज से इन नलों से पानी भी निकलता है. यह नल यहां घूमने आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है. स्थानीय लोग भी इस नलों के दोबारा से शुरू होने से काफी खुश हैं.
मिडल बाजार के लोगों का कहना है कि कई वर्षों से ये नल बंद पड़ा था, लेकिन इसका सामान चोरी होने से बचाया और अब दोबारा से इस नल से पानी आने लगा है. लोगों का कहना है कि शहर में बहुत कम नल मौजूद हैं. वह भी सालों से खराब पड़े थे और इन नलों का सामान भी चोरी हो गया था.
मिस्त्री ने जुगाड़ लगाकर शुरू किए ये ऐतिहासिक नल
जल निगम शिमला के मिस्त्री मस्तराम ने कहा कि यह काफी पुराने नल हैं और इसमें जो पार्ट लगे हैं, वह कहीं भी नहीं मिल रहे हैं, लेकिन इन नलों की मरम्मत कर फिर से ठीक कर दिया है. इनको खोला गया और जो पार्ट नहीं थे, उसकी जगह दूसरे पार्ट लगा कर अब इन्हें चलाया गया है.
सौ साल भी पुराने हैं यह नल
वहीं, जल निगम के एसडीओ मेहबूब शेख ने कहा कि मिडल बाजार में अंग्रेजों के समय का ये नल हैं. काफी समय से ये नल खराब पड़े थे. शहर में केवल पांच ही नल बचे हैं और उसमें से केवल एक ही नल पूरी तरह सही सलामत बचा हुआ था और अन्य सभी के पार्ट निकाल दिए गए हैं.
जल निगम शिमला ने इस नलों को दोबारा से शुरू करने का जिम्मा उठाया है और दो नलों को ठीक कर फिर से जनता को इस्तेमाल के लिए सौंप दिया है. हालांकि ये नल कब लगाए गए इसकी सही जानकरी तो नहीं है, लेकिन ये अंग्रेजों के जमाने के हैं, जिन्हें उस समय पानी पीने के साथ ही आग बुझाने के लिए प्रयोग किया जाता था.
यूं तो सरकार और प्रशासन पर हेरिटेज की ढंग से देख रेख न करने के आरोप लगते हैं, लेकिन शिमला प्रशासन का यह कदम सराहनीय है और शिमला में ही ऐसी कितनी ही ऐतिहासिक विरासत मौजूद हैं, जिसे सहेजने की जरूरत है.
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