ETV Bharat / state

प्राकृतिक रंगों की पाठशाला, फल-फूल से तैयार हो रहे होली के रंग

कोरोना वायरस के सामने होली के त्योहार का रंग फीका न हो, इसके लिए इंदौर की जनक पलटा फल-फूल और प्राकृतिक चीजों से हर्बल कलर बनाने की पाठशाला चला रही हैं.

author img

By

Published : Mar 9, 2020, 1:31 PM IST

herbal colour preparing indore by janak patla
प्राकृतिक रंगों की पाठशाला

इंदौर/शिमला: हर साल होली के अवसर पर शहर के लोगों को रंगों में मौजूद घातक केमिकल्स से बचाने के लिए इंदौर में इन दिनों होली के प्राकृतिक रंगों को तैयार करने की पाठशाला चलाई जा रही है. इस पाठशाला में न केवल रंग तैयार हो रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे को आत्मीयता के रंग लगाई भी लगाए जा रहे हैं.

वीडियो रिपोर्ट

दरअसल पद्मश्री एवं समाजसेवी जनक पलटा की पहल पर बीते 8 सालों से होली के सप्ताह भर पहले से उनके घर पर चलने वाली इस अनूठी पाठशाला में विभिन्न शिक्षण संस्थानों के छात्र-छात्राएं होली के प्राकृतिक रंग तैयार करने के लिए यहां पहुंच रहे हैं. यही नहीं वे प्राकृतिक संसाधनों जैसे फूलों और फलों से रंग तैयार करना भी सीख रहे हैं.

फल-फूल और पत्तों से बनते है ये रंग

केमिकल के बढ़ते उपयोग के कारण खुद कैंसर का शिकार रह चुकीं समाजसेवी जनक पलटा अब ठीक हो चुकी हैं. अब वे लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रही हैं. कैंसर को हराने के बाद अब होली के रंगों से जीवन में रंग भर रही हैं. दरअसल उनकी कोशिश है कि होली के दौरान उपयोग किए जाने वाले घातक रसायनों से मिश्रित रंग न केवल त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि यह अलग-अलग तरीके से शरीर पर घातक प्रभाव छोड़ते हैं. ऐसे में अगर प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से रंग तैयार कर लिए जाएं, तो आम लोग केमिकल रंगों के घातक प्रभाव से बच सकेंगे.

हर्बल कलर के फायदे

  • हर्बल रंग के साथ होली खेलने से स्किन को नुकसान नहीं, मिलता है प्रकृति का पोषण
  • गुड़हल, मेहंदी जैसे फूल-पत्ते से बने रंग बालों के लिए फायदेमंद हैं
  • हल्दी और संतरा से बने रंग त्वचा में देते हैं एंटी एजिंग इफेक्ट

यही वजह है कि पिछले 8 सालों से पद्मश्री जनक पलटा अपने सनावड़िया स्थित गांव के घर में पलाश, चुकंदर, गुलाब, बोगनवेलिया, पोई, गेंदा, टिकोमा, गुड़हल, परियार, मेहंदी, संतरे वगैरह से रंग बनाना सिखाती हैं, लिहाजा जो लोग प्राकृतिक संसाधनों से यहां रंग बनते देखते हैं, वह खुद भी इन रंगों के रंग में रंग जाते हैं.

ये भी पढ़ें: कुल्लू में छोटी होली की धूम,अधिष्ठाता देवता को गुलाल लगाने भारी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु

इंदौर/शिमला: हर साल होली के अवसर पर शहर के लोगों को रंगों में मौजूद घातक केमिकल्स से बचाने के लिए इंदौर में इन दिनों होली के प्राकृतिक रंगों को तैयार करने की पाठशाला चलाई जा रही है. इस पाठशाला में न केवल रंग तैयार हो रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे को आत्मीयता के रंग लगाई भी लगाए जा रहे हैं.

वीडियो रिपोर्ट

दरअसल पद्मश्री एवं समाजसेवी जनक पलटा की पहल पर बीते 8 सालों से होली के सप्ताह भर पहले से उनके घर पर चलने वाली इस अनूठी पाठशाला में विभिन्न शिक्षण संस्थानों के छात्र-छात्राएं होली के प्राकृतिक रंग तैयार करने के लिए यहां पहुंच रहे हैं. यही नहीं वे प्राकृतिक संसाधनों जैसे फूलों और फलों से रंग तैयार करना भी सीख रहे हैं.

फल-फूल और पत्तों से बनते है ये रंग

केमिकल के बढ़ते उपयोग के कारण खुद कैंसर का शिकार रह चुकीं समाजसेवी जनक पलटा अब ठीक हो चुकी हैं. अब वे लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रही हैं. कैंसर को हराने के बाद अब होली के रंगों से जीवन में रंग भर रही हैं. दरअसल उनकी कोशिश है कि होली के दौरान उपयोग किए जाने वाले घातक रसायनों से मिश्रित रंग न केवल त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि यह अलग-अलग तरीके से शरीर पर घातक प्रभाव छोड़ते हैं. ऐसे में अगर प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से रंग तैयार कर लिए जाएं, तो आम लोग केमिकल रंगों के घातक प्रभाव से बच सकेंगे.

हर्बल कलर के फायदे

  • हर्बल रंग के साथ होली खेलने से स्किन को नुकसान नहीं, मिलता है प्रकृति का पोषण
  • गुड़हल, मेहंदी जैसे फूल-पत्ते से बने रंग बालों के लिए फायदेमंद हैं
  • हल्दी और संतरा से बने रंग त्वचा में देते हैं एंटी एजिंग इफेक्ट

यही वजह है कि पिछले 8 सालों से पद्मश्री जनक पलटा अपने सनावड़िया स्थित गांव के घर में पलाश, चुकंदर, गुलाब, बोगनवेलिया, पोई, गेंदा, टिकोमा, गुड़हल, परियार, मेहंदी, संतरे वगैरह से रंग बनाना सिखाती हैं, लिहाजा जो लोग प्राकृतिक संसाधनों से यहां रंग बनते देखते हैं, वह खुद भी इन रंगों के रंग में रंग जाते हैं.

ये भी पढ़ें: कुल्लू में छोटी होली की धूम,अधिष्ठाता देवता को गुलाल लगाने भारी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.