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चेरी की फसल पर मौसम की मार, बागवानों को हुआ भारी नुकसान

भारी ओलावृष्टि और तूफान ने चेरी की फसल को बर्बाद कर दिया है. मार्च महीने से ही हिमाचल के बागवानों पर मौसम ने अपना ऐसा सितम ढाया कि वह हालातों के आगे बेबस बन गए. लॉकडाउन के चलते अधिकतर मजदूर अपने घरों को लौट चुके हैं, ऐसे में बची हुई फसल की तुड़ाई के लिए बागवानों को खुद ही मश्कत करनी पड़ रही है.

Heavy damage to cherry crop due to bad weather
खराब मौसम की चेरी पर मार
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Published : Jun 21, 2020, 12:08 PM IST

शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना की मार हर वर्ग पर पड़ी है. लॉकडाउन के दौरान हर वर्ग के लोग इससे प्रभावित हुए हैं. चाहे वह बड़ा उद्योगपति हो फिर किसान-बागवान, कोरोना काल और उसमें लगाए गए लॉकडाउन इन सभी को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

कोरोना काल में किसान-बागवानों को उनकी फसल के सही दाम नहीं मिल रहे. उपर से हर रोज हो रहे मौसम में बदलाव की वजह से स्टोन फ्रूट की पकी हुई फसल को भी नुकसान हुआ है. प्रदेश में चेरी के उत्पादन में कमी दर्ज की गई है.

हिमाचल में सेब की फसलों पर आए दिन प्राकृतिक मार पड़ने और मुनाफा घटने के कारण बागवानों ने वैकल्पिक फसल के रूप में चेरी की बागवानी शुरू की थी, लेकिन किसे पता था की खराब मौसम इस फसल पर भी ऐसा कहर ढाएगा कि बागवानों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.

वीडियो रिपोर्ट.

ऊपरी शिमला की बार करें तो ठियोग, कोटखाई, रोहड़ू, कोटगढ़ में हर साल चेरी की बंपर पैदावार होती थी. वहीं, बाजार में चेरी के अच्छे दाम मिलने से बागवानों को हर साल काफी मुनाफा होता था, लेकिन साल खराब मौसम ने बागवानों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया.

हिमाचल प्रदेश में चेरी की खेती करने वाले बागवानों का कहना है कि प्रतिकूल मौसम और कोरोना वायरस की वजह से उन्हें नुकसान हुआ है. मौसम में बदलाव की वजह से इस साल उत्पादन काफी कम रहा है. भारी ओलावृष्टि और तूफान ने चेरी की फसल को बर्बाद कर दिया है. मार्च महीने से ही हिमाचल के बागवानों पर मौसम ने अपना ऐसा सितम ढाया कि वह हालातों के आगे बेबस बन गए. बागवान पेड़ों से फलों को तोड़कर गोबर के गड्ढों में दबाने को मजबूर हैं. उद्यान विभाग की टीम ने बागवानों के आग्रह पर प्रभावित क्षेत्र के बगीचों का दौरा भी किया था, लेकिन इस नुकसान की भरपाई करना शायद ही किसी के लिए आसान हो.

लॉकडाउन के चलते अधिकतर मजदूर अपने घरों को लौट चुके हैं, ऐसे में बची हुई फसल की तुड़ाई के लिए बागवानों को खुद ही मश्कत करनी पड़ रही है. कुछ जगह मजदूर हैं, लेकिन कई हेक्टेयर भूमि में लगी फसल को तोड़ने के लिए वह नाकाफी हैं.

हिमाचल प्रदेश में करीब 400 हेक्टेयर भूमि में चेरी का उत्पादन किया जाता है. राज्य में सेब बगीचों के साथ ही चेरी के पौधे भी लगाए जाते हैं, लेकिन चेरी 15 मार्च के बाद तैयार होती है और सेब के मुकाबले कम समय तक के लिए ही चेरी का सीजन चलता है. ऐसे में चेरी की पैदावार कम होने से इस साल ना तो बाजारों में चेरी की ज्यादा खपत है और न ही बागवानों को चेरी के अच्छे दाम मिल रहे हैं.

ये भी पढ़ें: रविवार को कोरोना काल में सदी का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण, जानें क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र

शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना की मार हर वर्ग पर पड़ी है. लॉकडाउन के दौरान हर वर्ग के लोग इससे प्रभावित हुए हैं. चाहे वह बड़ा उद्योगपति हो फिर किसान-बागवान, कोरोना काल और उसमें लगाए गए लॉकडाउन इन सभी को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

कोरोना काल में किसान-बागवानों को उनकी फसल के सही दाम नहीं मिल रहे. उपर से हर रोज हो रहे मौसम में बदलाव की वजह से स्टोन फ्रूट की पकी हुई फसल को भी नुकसान हुआ है. प्रदेश में चेरी के उत्पादन में कमी दर्ज की गई है.

हिमाचल में सेब की फसलों पर आए दिन प्राकृतिक मार पड़ने और मुनाफा घटने के कारण बागवानों ने वैकल्पिक फसल के रूप में चेरी की बागवानी शुरू की थी, लेकिन किसे पता था की खराब मौसम इस फसल पर भी ऐसा कहर ढाएगा कि बागवानों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.

वीडियो रिपोर्ट.

ऊपरी शिमला की बार करें तो ठियोग, कोटखाई, रोहड़ू, कोटगढ़ में हर साल चेरी की बंपर पैदावार होती थी. वहीं, बाजार में चेरी के अच्छे दाम मिलने से बागवानों को हर साल काफी मुनाफा होता था, लेकिन साल खराब मौसम ने बागवानों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया.

हिमाचल प्रदेश में चेरी की खेती करने वाले बागवानों का कहना है कि प्रतिकूल मौसम और कोरोना वायरस की वजह से उन्हें नुकसान हुआ है. मौसम में बदलाव की वजह से इस साल उत्पादन काफी कम रहा है. भारी ओलावृष्टि और तूफान ने चेरी की फसल को बर्बाद कर दिया है. मार्च महीने से ही हिमाचल के बागवानों पर मौसम ने अपना ऐसा सितम ढाया कि वह हालातों के आगे बेबस बन गए. बागवान पेड़ों से फलों को तोड़कर गोबर के गड्ढों में दबाने को मजबूर हैं. उद्यान विभाग की टीम ने बागवानों के आग्रह पर प्रभावित क्षेत्र के बगीचों का दौरा भी किया था, लेकिन इस नुकसान की भरपाई करना शायद ही किसी के लिए आसान हो.

लॉकडाउन के चलते अधिकतर मजदूर अपने घरों को लौट चुके हैं, ऐसे में बची हुई फसल की तुड़ाई के लिए बागवानों को खुद ही मश्कत करनी पड़ रही है. कुछ जगह मजदूर हैं, लेकिन कई हेक्टेयर भूमि में लगी फसल को तोड़ने के लिए वह नाकाफी हैं.

हिमाचल प्रदेश में करीब 400 हेक्टेयर भूमि में चेरी का उत्पादन किया जाता है. राज्य में सेब बगीचों के साथ ही चेरी के पौधे भी लगाए जाते हैं, लेकिन चेरी 15 मार्च के बाद तैयार होती है और सेब के मुकाबले कम समय तक के लिए ही चेरी का सीजन चलता है. ऐसे में चेरी की पैदावार कम होने से इस साल ना तो बाजारों में चेरी की ज्यादा खपत है और न ही बागवानों को चेरी के अच्छे दाम मिल रहे हैं.

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