ETV Bharat / state

गोहाना की जलेबी के नेता तक हुए मुरीद, शादी से लेकर शपथ ग्रहण समारोह तक है डिमांड

इस जलेबी को इजाद करने वाले लाला मातूराम थे. वह मूल रूप से गोहाना के लाठ जोली गांव के निवासी थे. लाला मातूराम का पैतृक व्यवसाय कृषि था, लेकिन हलवाई के काम में भी उनकी रूचि थी. इस जलेबी को स्थानीय लोग जलेब के नाम से जानते हैं.

Gohana famous Jalebi lala Maturam halwai
गोहाना की जलेबी के नेता भी मुरीद.
author img

By

Published : Mar 1, 2020, 1:21 PM IST

सोनीपत: गोहाना की जलेबी हमेशा से लोगों की पहली पसंद रही है. गोहाना की जलेबी का जलवा ही ऐसा है कि इसके कदरदान हरियाणा में ही नहीं बल्कि देश और विदेश में भी है. अनूठी विशेषताओं की वजह से गोहाना की जलेबी के दिवाने विदेशों में भी हैं. इस जलेबी को पहचान देने का श्रेय स्वर्गीय लाला मातूराम को जाता है.

क्या है जलेबी में खास?

  • लाला मातूराम की जलेबी कोई सामान्य जलेबी नहीं है, इनका आकार सामान्य जलेबी से ज्यादा बड़ा है.
  • एक जलेबी का वजन 250 ग्राम. एक किलो में 4 जलेबी ही आती हैं.
  • मातूराम की जलेबी ऊपर से तो करारी है और अंदर से नरम है. जबकि सामान्य जलेबी बस करारी होती है.
  • सबसे बड़ी बात ये जलेबी देसी घी में बनाई जाती है. इसमें किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती.
  • जलेबी में किसी भी तरह का कोई रंग और रसायन नहीं डाला जाता. ग्राहकों को ताजा जलेबी दी जाती है.
  • मिलावट नहीं होने की वजह से ये जलेबी 10 से 12 दिन के बाद भी खराब नहीं होती और ना ही इसके स्वाद में कमी आती है.

कैसे हुई जलेब के स्वाद की शुरुआत?

इस जलेब यानी जलेबी को इजाद करने वाले थे लाला मातूराम, जो मूल रूप से गोहाना के लाठ जोली गांव के निवासी थे. लाला मातूराम का पैतृक व्यवसाय कृषि था, लेकिन हलवाई के काम में भी उनकी रूचि थी. अपनी रूचि के चलते लाला मातूराम हलवाई के रूप में दूर-दूर तक मशहूर हो गए.

वीडियो रिपोर्ट.

पेशे से किसान थे लाला मातूराम

साल 1955 में लाला मातूराम लाठ जोली गांव से गोहाना आ गए. यहां उन्होंने हलवाई के पेशे को जारी रखा. जलेबी के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को देखते हुए साल 1955 में ही लाला मातूराम ने पुरानी मंडी में लकड़ी का खोखा तैयार किया और उसमें जलेबी बनाने की काम शुरू कर दिया. जो साल 1968 तक जारी रहा.

इस तरह मिली नई पहचान

साल 1968 में सरकार ने गोहाना मंडी में आधा दर्जन दुकानें बनाई. इन दुकानों को सरकार ने व्यापारियों को 100 साल के लिए पट्टे पर दे दिया. सौभाग्य से इसमें से एक दुकान मातूराम को मिल गई. इसके बाद लोगों को लाला मातूराम की जलेबी एक सुनिश्चित स्थान पर सहज सुलभ होने लगी और दूर-दराज के लोगों का उसकी दुकान पर तांता लगने लगा.

शपथ ग्रहण समारोह में भी डिमांड

अब स्थिति ये है कि लाठ जोली गांव के आसपास के क्षेत्र में जब भी कोई शादी समारोह होता तो लाला मातूराम की मिठाईयां बनवाई जाती हैं. सिर्फ शादी समारोह में ही नहीं, बल्कि शपथ ग्रहण समारोह में लाला मातूराम की जलेबी नेताओं की पहली पसंद है. दिल्ली के मुख्यंमत्री अरविंद केजरीवाल के तीसरे शपथ ग्रहण समारोह में भी यहीं से जलेबी गई थीं.

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति चख चुके हैं गोहाना की जलेबी

बरसों पहले आगरा आए पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी ओम प्रकाश चौटाला ने सम्मान और उपहार के तौर पर गोहाना की जलेबी के 50 डिब्बे भिजवाए थे. जिसे पाकर परवेज मुशर्रफ बहुत खुश हुए और उन्होंने जलेबियों की तारीफ भी की.

पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल थे मुरीद

पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल तो लाला मातूराम की जलेबी के इस कद्र दीवाने थे कि वो जब भी मौका मिलता एक किलो जलेबी जरूर खाते थे. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर और उनके मंत्री ही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनकी पत्नी आशा हुड्डा के साथ-साथ पूरा हुड्डा परिवार मातूराम की जलेबी का मुरीद है.

विदेशों में भी बढ़ रही है जलेबी की मांग

लाला मातूराम की जलेबी का जायका देहात के साथ शहरी वर्ग में भी सिर चढ़कर बोलने लगा है. मेहनतकश किसान और पहलवान लाला मातूराम की जलेबी को सेहत के लिए वरदान समझते हैं. इस जलेबी की डिमांड पाकिस्तान, चीन, जापान, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, मलेशिया और सऊदी अरब तक है.

साल 1987 में लाला मातूराम ने संसार को अलविदा कह दिया था. जिसके बाद साल 1990 में लाला मातूराम के बड़े बेटे राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने अपने पिता की जलेबी बनाने की कला को विरासत के रूप में विस्तार करने का फैसला किया. साल 2001 में राजेंद्र गुप्ता का निधन हो गया. जिसके बाद मातूराम की विरासत का विस्तार करने की जिम्मेदारी उनके 2 पौते नीरज और रमन गुप्ता को मिली.

सोनीपत: गोहाना की जलेबी हमेशा से लोगों की पहली पसंद रही है. गोहाना की जलेबी का जलवा ही ऐसा है कि इसके कदरदान हरियाणा में ही नहीं बल्कि देश और विदेश में भी है. अनूठी विशेषताओं की वजह से गोहाना की जलेबी के दिवाने विदेशों में भी हैं. इस जलेबी को पहचान देने का श्रेय स्वर्गीय लाला मातूराम को जाता है.

क्या है जलेबी में खास?

  • लाला मातूराम की जलेबी कोई सामान्य जलेबी नहीं है, इनका आकार सामान्य जलेबी से ज्यादा बड़ा है.
  • एक जलेबी का वजन 250 ग्राम. एक किलो में 4 जलेबी ही आती हैं.
  • मातूराम की जलेबी ऊपर से तो करारी है और अंदर से नरम है. जबकि सामान्य जलेबी बस करारी होती है.
  • सबसे बड़ी बात ये जलेबी देसी घी में बनाई जाती है. इसमें किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती.
  • जलेबी में किसी भी तरह का कोई रंग और रसायन नहीं डाला जाता. ग्राहकों को ताजा जलेबी दी जाती है.
  • मिलावट नहीं होने की वजह से ये जलेबी 10 से 12 दिन के बाद भी खराब नहीं होती और ना ही इसके स्वाद में कमी आती है.

कैसे हुई जलेब के स्वाद की शुरुआत?

इस जलेब यानी जलेबी को इजाद करने वाले थे लाला मातूराम, जो मूल रूप से गोहाना के लाठ जोली गांव के निवासी थे. लाला मातूराम का पैतृक व्यवसाय कृषि था, लेकिन हलवाई के काम में भी उनकी रूचि थी. अपनी रूचि के चलते लाला मातूराम हलवाई के रूप में दूर-दूर तक मशहूर हो गए.

वीडियो रिपोर्ट.

पेशे से किसान थे लाला मातूराम

साल 1955 में लाला मातूराम लाठ जोली गांव से गोहाना आ गए. यहां उन्होंने हलवाई के पेशे को जारी रखा. जलेबी के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को देखते हुए साल 1955 में ही लाला मातूराम ने पुरानी मंडी में लकड़ी का खोखा तैयार किया और उसमें जलेबी बनाने की काम शुरू कर दिया. जो साल 1968 तक जारी रहा.

इस तरह मिली नई पहचान

साल 1968 में सरकार ने गोहाना मंडी में आधा दर्जन दुकानें बनाई. इन दुकानों को सरकार ने व्यापारियों को 100 साल के लिए पट्टे पर दे दिया. सौभाग्य से इसमें से एक दुकान मातूराम को मिल गई. इसके बाद लोगों को लाला मातूराम की जलेबी एक सुनिश्चित स्थान पर सहज सुलभ होने लगी और दूर-दराज के लोगों का उसकी दुकान पर तांता लगने लगा.

शपथ ग्रहण समारोह में भी डिमांड

अब स्थिति ये है कि लाठ जोली गांव के आसपास के क्षेत्र में जब भी कोई शादी समारोह होता तो लाला मातूराम की मिठाईयां बनवाई जाती हैं. सिर्फ शादी समारोह में ही नहीं, बल्कि शपथ ग्रहण समारोह में लाला मातूराम की जलेबी नेताओं की पहली पसंद है. दिल्ली के मुख्यंमत्री अरविंद केजरीवाल के तीसरे शपथ ग्रहण समारोह में भी यहीं से जलेबी गई थीं.

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति चख चुके हैं गोहाना की जलेबी

बरसों पहले आगरा आए पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी ओम प्रकाश चौटाला ने सम्मान और उपहार के तौर पर गोहाना की जलेबी के 50 डिब्बे भिजवाए थे. जिसे पाकर परवेज मुशर्रफ बहुत खुश हुए और उन्होंने जलेबियों की तारीफ भी की.

पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल थे मुरीद

पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल तो लाला मातूराम की जलेबी के इस कद्र दीवाने थे कि वो जब भी मौका मिलता एक किलो जलेबी जरूर खाते थे. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर और उनके मंत्री ही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनकी पत्नी आशा हुड्डा के साथ-साथ पूरा हुड्डा परिवार मातूराम की जलेबी का मुरीद है.

विदेशों में भी बढ़ रही है जलेबी की मांग

लाला मातूराम की जलेबी का जायका देहात के साथ शहरी वर्ग में भी सिर चढ़कर बोलने लगा है. मेहनतकश किसान और पहलवान लाला मातूराम की जलेबी को सेहत के लिए वरदान समझते हैं. इस जलेबी की डिमांड पाकिस्तान, चीन, जापान, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, मलेशिया और सऊदी अरब तक है.

साल 1987 में लाला मातूराम ने संसार को अलविदा कह दिया था. जिसके बाद साल 1990 में लाला मातूराम के बड़े बेटे राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने अपने पिता की जलेबी बनाने की कला को विरासत के रूप में विस्तार करने का फैसला किया. साल 2001 में राजेंद्र गुप्ता का निधन हो गया. जिसके बाद मातूराम की विरासत का विस्तार करने की जिम्मेदारी उनके 2 पौते नीरज और रमन गुप्ता को मिली.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.