शिमला: हिमाचल में सेब सीजन शुरू हो गया है और अर्ली वैरायटी के रसीले सेब मंडियों में पहुंचने लगे हैं. अर्ली वैरायटी का सेब टाइडमैन अमूमन जुलाई के दूसरे सप्ताह में बिकने के लिए पहुंचता था, लेकिन इस बार समय से पहले ही ये मार्किट में आने के लिए तैयार हो गया है जिसे मंडी पहुंचते ही अच्छे दाम भी मिल रहे हैं.
शिमला की भट्टाकुफर मंडी में टाइडमैन सेब का हर बॉक्स 2 हजार के हिसाब से बिका, जबकि समर क्वीन 1000 तक बेटी बिक रही है. बीते साल की बात करें तो समर क्वीन की एक पेटी 500 तक पेटी बिकी थी.. बागवान भी अच्छे दाम मिलने से खुश हैं. वहीं, सेब के साथ-साथ नाशपाती के भी अच्छे दाम मिल रहे हैं. नाशपाती हॉफ रेड किस्म की नाशपाती रिकॉर्ड 3000 रुपये प्रति पेटी की दर से बिक रही है.
अर्ली वैरायटी का सेब मंडी पहुंच चुका है और अगले एक हफ्ते में अपर हिमाचल का सेब भी मंडियों में दस्तक दे सकता है. अर्ली वैरायटी को दाम भले अच्छे मिल रहे हों, लेकिन बागवानों की चिंता मजदूरों की कमी ने बढ़ा रखी है. कोरोना संक्रमण के दौर में मजदूर अपने घर लौट गए जिसके चलते सेब सीजन में मजदूरों का टोटा बागवानों के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है. बगीचों से सेब तोड़ने से लेकर मंडी पहुंचाने तक के लिए इस बार बागवानों के पसीने छूट सकते हैं.
दरअसल सवाल सालभर की कमाई का है. सीजन में मजदूरों की कमी सारी मेहनत पर पानी फेर सकती है. हालांकि सरकार की तरफ से बागवानों को आश्वासन दिया गया है कि वक्त रहते मजदूरों का बंदोबस्त हो जाएगा. सेब सीजन की दस्तक के साथ प्रशासन भी तैयारियों का दावा कर रहा है. फिर चाहे मजदूरों को लाने की बात हो या फिर कोरोना संक्रमण के दौर में उन्हें क्वारंटाइन करने की.
रोहड़ू की मंडियों में भी अरली वैरायटी का सेब पहुंच चुका है, लेकिन मजदूरों की कमी, सेब को मंडी तक पहुंचाने जैसी समस्याओं के अलावा बागवानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मेहनत की कमाई का पैसा ना मिलना है. बीते सालों का तजुर्बा कुछ बागवानों को सरकार के आश्वासनों पर भरोसा नहीं करने दे रहा.
उधर हर चीज की तरह इस बार सेब सीजन पर भी कोरोना का साया पड़ना लाजमी है. आने वाले दिनों में मंडियों में उमड़़ने वाली भीड़ का अंदाज़ा अभी से लोगों को सता रहा है, क्योंकि सोशल डिस्टेसिंग से लेकर मास्क के इस्तेमाल तक के आदेश तो प्रशासन ने दिए हैं. लेकिन सेब सीजन में इन आदेशों की पालना कराना प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. साथ ही पेट्रोल और डीजल के बढ़े दाम पर, किराया बढ़ने के आसार लगातार बने हुए हैं, जिसका बोझ बागवानों और आम जनता पर पड़ने वाला है.
कुल मिलाकर इस बार हिमाचल का सेब सीजन कई चुनौतियों के साथ आया है. कोरोना के साये में बागवानों की अपनी चिंताएं और सरकार की अपनी, क्योंकि दोनों की आर्थिकी इसी सेब पर टिकी है. ऐसे में देखना ये होगा कि सरकार आने वाले दिनों में बागवानों की इस समस्या का कैसे समाधान करती है जबकि कोरोना बीमारी का खतरा अभी लगातार बना हुआ है.
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