शिमला: कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच सबसे ज्यादा परेशानी उन मजदूरों को हो रही है जो अपने घर से दूर पेट पालने के लिए दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने गए और लॉकडाउन के बाद जैसे कैद होकर रह गए. फिलहाल काम धंधे बाद होने से मजदूरी नहीं मिल रही तो इनके सामने सबसे बड़ी समस्या रहने और खाने की है.
हिमाचल सरकार के मुताबिक 15 फरवरी 2020 के बाद हिमाचल प्रदेश के गांवों में 6,943 मजदूर आए, जिनमें से एक भी मजदूर कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं था. लॉकडाउन और कर्फ्यू के दौरान मजदूर और बेघर परिवारों के सामने खाने की समस्या सबसे बड़ी है. हिमाचल के 9,629 प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन वितरित किया गया है और 1,735 प्रवासी मजदूरों के ठहरने का इंतजाम विभिन्न पंचायतों में किया गया है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 9030 मजदूर राज्य के विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए हैं. जिनके रहने खाने का पूरा बंदोबस्त सरकार कर रही है. 10 हजार झुग्गी झोपड़ियां प्रदेश में हैं जहां राशन और दूसरी रोजमर्रा की चीजें मुहैया करवाई जा रही हैं. 334 परिवारों को आश्रय की आवश्यकता थी जो प्रदान कर दी गई है.
कोविड-19 के इस संकट काल में हिमाचल सरकार सभी जरूरतमंदों को राशन व अन्य जरूरी वस्तुएं उपलब्ध करवा रही है. हर घर को भरपूर अन्न मिले, इसके लिए राज्य सरकार ने जिला प्रशासन के माध्यम से अभियान चलाया हुआ है. प्रदेश भर में रोजी-रोटी की तलाश में प्रवासी श्रमिक आते हैं.
लॉकडाउन के कारण वे अपने घरों को नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे में सरकार ने सभी को घर-द्वार पर खाद्य वस्तुएं उपलब्ध करवाई हैं. राज्य की आबादी सत्तर लाख से अधिक है. जाहिर है, छोटे राज्य में सरकार को सभी के पास पहुंचने में आसानी होती है.
हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्य में बेघरों की संख्या न के बराबर है. आपात परिस्थितियों में राज्य सरकार ने 811 लोगों को आवास भी इस दौरान उपलब्ध करवाया है. इसके अलावा बाहरी राज्यों के 13249 प्रवासी श्रमिकों को भी पर्याप्त राशन दिया गया है.
राज्य सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री राजीव सैजल ने बताया कि सरकार हर जरूरतमंद तक पहुंच रही है. प्रदेश में कुछ लोग बाहरी राज्यों से काम की तलाश में आते हैं और खाली जगहों पर झुग्गियों में रहते हैं. हिमाचल में झुग्गियों में रहने वाले 10 हजार परिवारों को भी राशन दिया गया है.
पढ़ेंः COVID-19 को लेकर कितना तैयार है हिमाचल, जानें प्रदेश में मौजूद वेंटिलेटर्स की संख्या
इसके अलावा धार्मिक संस्थान और स्वयंसेवी संस्थाएं भी शहरों, कस्बों व ग्रामीण इलाकों में कम्युनिटी किचन चला रही हैं। शिमला में नोफल वेलफेयर सोसायटी, ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स, सनातन धर्म सभा व अन्य कई संस्थाएं घर-घर जाकर भी जरूरतमंदों को भोजन दे रही हैं.
बीते दिनों देश की राजधानी दिल्ली समेत समेत कई शहरों से मजदूर अपने घरों के लिए निकले. लगभग सबके सामने या तो दो जून की रोटी की दिक्कत थी या फिर एक अदद छत की. 2001 की जनगणना के मुताबिक देशभर में 19 लाख से ज्यादा लोग बेघर थे, जबकि साल 2011 में ये आंकड़ा 18 लाख से ज्यादा था.
हिमाचल के बात करें तो साल 2001 की जनगणना के मुताबिक 8,364 लोग बेघर थे जबकि साल 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक ये आंकड़ा 4119 था. राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि हिमाचल में कोई भी बेघर परिवार नहीं है.
आपात स्थितियों में जर्जर आवास की मरम्मत के लिए तुरंत पैसा जारी किया जाता है. हिमाचल में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सभी कच्चे घर वाले परिवारों को 2022 तक साफ-सुथरा व सुविधाओं से युक्त आवास बनाकर दिया जाएगा. इसके तहत 759 लाभार्थी स्वीकृत किए गए हैं.
इनमें से 65 परिवारों को आवास बनाकर दे दिया गया है. मुख्यमंत्री आवास योजना में 558 घर बनाए जा रहे हैं. सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने बताया कि सरकार की सभी एजेंसियां व जिला प्रशासन सभी जरूरतमंदों के पास पहुंच रहा है और उनके खाने से लेकर रहने तक के बंदोबस्त किए जा रहे हैं. इसके अलावा कोरोना वायरस को लेकर जागरुकता भी फैलाई जा रही है.
ये भी पढ़ेंः VIDEO: यही है देशभक्ति! ऊना का ये परिवार लॉकडाउन में ड्यूटी पर तैनात लोगों की सेवा में जुटा