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फसल बीमा योजना: कंपनियों के पास जमा हुआ 248 करोड़, बागवानों को मिला सिर्फ 128 करोड़, सरकार लेगी एक्शन

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Published : Mar 19, 2021, 7:35 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी फसल बीमा योजना में अजब-गजब धंधा हो रहा है. हिमाचल के बागवानों को 2019-20 का तय मुआवजा नहीं मिला है.ये खुलासा हिमाचल विधानसभा के बजट सत्र में फसल बीमा योजना से जुड़े सवाल के जवाब में हुआ.

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फोटो.

शिमलाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी फसल बीमा योजना में अजब-गजब धंधा हो रहा है. हिमाचल के बागवानों को 2019-20 का तय मुआवजा नहीं मिला है. यही नहीं, केंद्र सरकार, राज्य सरकार व बागवानों ने तीन बीमा कंपनियों को 248 करोड़ रुपए की प्रीमियम राशि दी, परंतु बागवानों को अपना हक नहीं मिला. ऐसे में मौसम आधारित फसल बीमा योजना संदेह के घेरे में है. ये खुलासा हिमाचल विधानसभा के बजट सत्र में फसल बीमा योजना से जुड़े सवाल के जवाब में हुआ.

बीमा कंपनियों ने बागवानों को नहीं दिया मुआवजा

बीमा कंपनियों ने बागवानों को 2019-20 का मुआवजा नहीं दिया है. जलशक्ति व बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ने विधानसभा में बताया कि राज्य सरकार ने कंपनियों को दिए जाने वाला 2020-21 का प्रीमियम रोक दिया है. तीनों कंपनियों को सरकार तलब भी करेगी. बैठक में केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाएगा. ये सवाल भाजपा विधायक नरेंद्र बरागटा ने किया था.

मुआवजे को लेकर अभी भी कन्फ्यूजन

महेंद्र सिंह ने कहा कि योजना के प्रीमियम और मुआवजे को लेकर अभी भी कन्फ्यूजन बना हुआ है. वर्ष 2016-17 से लेकर 2019-20 तक बागवानों, राज्य सरकार, केंद्र सरकार ने प्रीमियम के तौर पर 248 करोड़ 88 लाख जमा किए हैं. वहीं, बागवानों को 2018-19 तक 128 करोड़ ही मुआवजा मिला है. कंपनियों की तरफ से 2019-20 का मुआवजा नहीं दिया गया है. इस कारण सरकार ने राज्य का प्रीमियम शेयर रोक दिया है. बागवान कुल बीमित राशि का पांच प्रतिशत जमा करवाते हैं. शेष प्रीमियम राज्य व केंद्र सरकार चुकाती है.

बागवानी मंत्री ने दी जानकारी

बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने सदन में खुद स्वीकार किया कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि बागवानों से कंपनियों ने 101.08 करोड़ रुपए से अधिक का प्रीमियम कैसे वसूल लिया? तथ्य ये है कि फसल बीमा योजना के तहत कुल प्रीमियम का सिर्फ 5 फीसदी हिस्सा ही बागवानों को देना होता है. शेष हिस्सा केंद्र और प्रदेश सरकार को आधा-आधा चुकाना होता है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 से 31 जनवरी 2021 तक प्रदेश सरकार ने फसल बीमा के एवज में इन कंपनियों को 74.02 करोड़ रुपए, केंद्र सरकार ने 73.77 करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्रीमियम के रूप में जमा करवाई है. इस योजना में अधिकतर बागवान वैसे हैं, जिन्होंने बैंकों से कर्जा लिया है. कर्जा लेने वाले बागवानों के खाते से बैंक वाले सीधे ही बीमा राशि काट देते हैं. शायद बागवानों को इसका पता भी नहीं चलता है.

प्रदेश में अप्रैल 2016 से लागू की गई थी फसल बीमा योजना

बागवानी मंत्री ने माना कि बागवानी को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के बाद इसके आकलन के लिए बीमा कंपनियों के लोग नहीं मिलते और बाद में यही लोग कह देते हैं कि नुकसान के आकलन का समय खत्म हो चुका है.

उन्होंने कहा कि फसल बीमा योजना प्रदेश में पहली अप्रैल 2016 को लागू हुई थी और इस योजना के तहत वर्ष 2016 से 2020 के बीच 424311 बागवान पंजीकृत हुए थे. इस योजन के तहत उद्यान विभाग रबी की फसल का ही बीमा करता है.

ये हैं बीमा कंपनियां

इस कार्य के लिए एआईसी, इफको टोक्यो, आईसीआईसीआी लम्बार्ड, एचडीएफसी एरगो और रिलायंस जीआईसी इत्यादि कंपनियों से अनुबंध किया गया है. उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत वर्ष 2016-17 में 95283 पंजीकृत बागवानों को 34.62 करोड़ रुपए, वर्ष 2017-2018 में 161524 बागवानों को 49.93 करोड़ तथा वर्ष 2018-2019 में 82881 बागवानों को 44.08 करोड़ रुपये की धनराशि मुआवजे के तौर पर दी गई.

पढे़ंः विधानसभा में गूंजा सांसद रामस्वरूप की मौत का मामला, अग्निहोत्री ने जोर-शोर से की CBI जांच की मांग

शिमलाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी फसल बीमा योजना में अजब-गजब धंधा हो रहा है. हिमाचल के बागवानों को 2019-20 का तय मुआवजा नहीं मिला है. यही नहीं, केंद्र सरकार, राज्य सरकार व बागवानों ने तीन बीमा कंपनियों को 248 करोड़ रुपए की प्रीमियम राशि दी, परंतु बागवानों को अपना हक नहीं मिला. ऐसे में मौसम आधारित फसल बीमा योजना संदेह के घेरे में है. ये खुलासा हिमाचल विधानसभा के बजट सत्र में फसल बीमा योजना से जुड़े सवाल के जवाब में हुआ.

बीमा कंपनियों ने बागवानों को नहीं दिया मुआवजा

बीमा कंपनियों ने बागवानों को 2019-20 का मुआवजा नहीं दिया है. जलशक्ति व बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ने विधानसभा में बताया कि राज्य सरकार ने कंपनियों को दिए जाने वाला 2020-21 का प्रीमियम रोक दिया है. तीनों कंपनियों को सरकार तलब भी करेगी. बैठक में केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाएगा. ये सवाल भाजपा विधायक नरेंद्र बरागटा ने किया था.

मुआवजे को लेकर अभी भी कन्फ्यूजन

महेंद्र सिंह ने कहा कि योजना के प्रीमियम और मुआवजे को लेकर अभी भी कन्फ्यूजन बना हुआ है. वर्ष 2016-17 से लेकर 2019-20 तक बागवानों, राज्य सरकार, केंद्र सरकार ने प्रीमियम के तौर पर 248 करोड़ 88 लाख जमा किए हैं. वहीं, बागवानों को 2018-19 तक 128 करोड़ ही मुआवजा मिला है. कंपनियों की तरफ से 2019-20 का मुआवजा नहीं दिया गया है. इस कारण सरकार ने राज्य का प्रीमियम शेयर रोक दिया है. बागवान कुल बीमित राशि का पांच प्रतिशत जमा करवाते हैं. शेष प्रीमियम राज्य व केंद्र सरकार चुकाती है.

बागवानी मंत्री ने दी जानकारी

बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने सदन में खुद स्वीकार किया कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि बागवानों से कंपनियों ने 101.08 करोड़ रुपए से अधिक का प्रीमियम कैसे वसूल लिया? तथ्य ये है कि फसल बीमा योजना के तहत कुल प्रीमियम का सिर्फ 5 फीसदी हिस्सा ही बागवानों को देना होता है. शेष हिस्सा केंद्र और प्रदेश सरकार को आधा-आधा चुकाना होता है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 से 31 जनवरी 2021 तक प्रदेश सरकार ने फसल बीमा के एवज में इन कंपनियों को 74.02 करोड़ रुपए, केंद्र सरकार ने 73.77 करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्रीमियम के रूप में जमा करवाई है. इस योजना में अधिकतर बागवान वैसे हैं, जिन्होंने बैंकों से कर्जा लिया है. कर्जा लेने वाले बागवानों के खाते से बैंक वाले सीधे ही बीमा राशि काट देते हैं. शायद बागवानों को इसका पता भी नहीं चलता है.

प्रदेश में अप्रैल 2016 से लागू की गई थी फसल बीमा योजना

बागवानी मंत्री ने माना कि बागवानी को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के बाद इसके आकलन के लिए बीमा कंपनियों के लोग नहीं मिलते और बाद में यही लोग कह देते हैं कि नुकसान के आकलन का समय खत्म हो चुका है.

उन्होंने कहा कि फसल बीमा योजना प्रदेश में पहली अप्रैल 2016 को लागू हुई थी और इस योजना के तहत वर्ष 2016 से 2020 के बीच 424311 बागवान पंजीकृत हुए थे. इस योजन के तहत उद्यान विभाग रबी की फसल का ही बीमा करता है.

ये हैं बीमा कंपनियां

इस कार्य के लिए एआईसी, इफको टोक्यो, आईसीआईसीआी लम्बार्ड, एचडीएफसी एरगो और रिलायंस जीआईसी इत्यादि कंपनियों से अनुबंध किया गया है. उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत वर्ष 2016-17 में 95283 पंजीकृत बागवानों को 34.62 करोड़ रुपए, वर्ष 2017-2018 में 161524 बागवानों को 49.93 करोड़ तथा वर्ष 2018-2019 में 82881 बागवानों को 44.08 करोड़ रुपये की धनराशि मुआवजे के तौर पर दी गई.

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