शिमला: हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इस समय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर की खूब चर्चा है. कौल सिंह के समर्थक आपसी चर्चा में ये बात कह रहे हैं कि सीएम की कुर्सी को लेकर उनके नेता किस बात में कम हैं? न तो अनुभव की कमी और न ही कोई और नेगेटिव पहलू, आखिर कांग्रेस के सत्ता में आने पर सीएम फेस के रूप में कौल सिंह की दावेदारी को कैसे इग्नोर किया जा सकता है. खुद कौल सिंह भी ये बात बरसों से कहते आ रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद के लिए वे हर तरह से योग्यता रखते हैं. एक समय वे सीएम पद की रेस में आगे बढ़ने के प्रयास में थे कि वीरभद्र सिंह के सियासी अनुभव के आगे उनका बस नहीं चला था. (himachal election 2022) (Congress leader Kaul Singh)
अलबत्ता, कौल सिंह के खाते में एक बात जरूर है कि जिस नेता की सरकार चलाने की ग्रूमिंग वीरभद्र सिंह के दौर में हुई हो, वो नौकरशाही से काम लेने की कला जानता ही होगा. उदाहरण के लिए, कौल सिंह ठाकुर लंबे समय तक कांग्रेस की सरकारों में मंत्री रहे हैं. इस दौरान उन्होंने आईपीएच (अब जलशक्ति), हैल्थ, रेवेन्यू, लॉ जैसे विभाग संभाले हैं. वीरभद्र सिंह 25 साल से अधिक समय मुख्यमंत्री रहे और इस दौरान कौल सिंह भी उनके मंत्रिमंडल में किसी न किसी रूप में मौजूद रहे. (Who Will be the next CM of Himachal)
अगर ढाई दशक के कार्यकाल में सीएम ने 400 कैबिनेट मीटिंग भी ली होगी, तो वीरभद्र सिंह के विजन को कौल सिंह ने घोट के पीने में कोई कमी नहीं रखी होगी. फिर कौल सिंह के पास पार्टी के अध्यक्ष पद से लेकर विधानसभा के अध्यक्ष पद का भी दायित्व रहा है. ऐसे में वे लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं के अनुभव से संपन्न हैं. ये सही है कि एक समय कौल सिंह ठाकुर और विद्या स्टोक्स कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के लिए चुनौती पेश करते रहे लेकिन तब 'राजा साहब' के सामने उनकी एक न चली. (Himachal Congress CM Face) (Kaul Singh Thakur Himachal CM Face)
अब कौल सिंह के पास सुनहरा मौका है. मुख्यमंत्री बनने की कौल सिंह की महत्वाकांक्षा रही है और इसे उन्होंने कभी छिपाया भी नहीं. हालांकि, अक्टूबर 2015 में कौल सिंह ने एक बयान दिया था कि राजनेताओं को 75 साल की आयु में खुद व खुद रिटायर होकर नई पीढ़ी के लिए रास्ता छोड़ना चाहिए, लेकिन छूटती नहीं है काफिर मुंह से लगी हुई. कौल सिंह 2017 का चुनाव हारे तो लगा कि सियासी पारी खत्म हो जाएगी. लेकिन वो एक बार फिर चुनाव लड़ रहे हैं और फिर से सीएम पद की रेस में हैं. कौल सिंह के अलावा सुखविंदर सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री जैसे चेहरे भी इस रेस में है लेकिन कौल सिंह सरकार से लेकर संगठन तक के अनुभव के मामले में इन दोनों से कहीं आगे हैं. कौल सिंह ने कानून की पढ़ाई की हुई है लेकिन राजनीति की पढ़ाई में भी वे किसी से कम नहीं हैं.
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वर्ष 1977 में स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक पार्टी कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले ठाकुर कौल सिंह केवल 1990 व 2017 का चुनाव हारे हैं. इसके अलावा उन्होंने सभी चुनाव जीते हैं. राजनीतिक सफर की शुरुआत करने के बाद वे वीरभद्र सिंह के साथ ही रहे. कौल सिंह ठाकुर उस समय भी वीरभद्र सिंह के साथ रहे, जब पंडित सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस बनाई और कांग्रेस को 1998 में सत्ता से बाहर होना पड़ा. हिमाचल में साल 2012 में कौल सिंह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे. उस समय उनकी छवि वीरभद्र सिंह विरोधी गुट के नेता के तौर पर बनी. तब वीरभद्र सिंह यूपीए सरकार में मंत्री थे.
वीरभद्र सिंह हिमाचल वापस आए और कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाली. कांग्रेस सत्ता में आई और कौल सिंह सिर्फ कैबिनेट मंत्री ही रहे. कौल सिंह ठाकुर उस दौरान अपना सीएम बनने का सपना पूरा करने की दहलीज पर थे. साल 2012 में वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उस समय कौल सिंह ठाकुर वीरभद्र विरोधी खेमे के मुख्य चेहरे थे. प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए कौल सिंह ठाकुर पार्टी पर पकड़ मजबूत रख सकते थे और सत्ता में आने पर उनके सीएम बनने के पूरे चांस थे लेकिन वीरभद्र सिंह ने राजनीतिक चतुराई से सारे समीकरण बदल दिए.
उस समय हिमाचल कांग्रेस के प्रभारी चौधरी बीरेंद्र सिंह थे और वे कौल सिंह के करीबी भी थे. परिस्थितियां कुछ इस कदर बदलीं कि वीरभद्र सिंह के कद के आगे चौधरी बीरेंद्र भी अपने मित्र की खास सहायता नहीं कर पाए. वीरभद्र सिंह ने चौधरी को हिमाचल में प्रभाव ही नहीं जमाने दिया और हाईकमान से अडक़र अध्यक्ष पद अपने नाम कर लिया. इस तरह 2012 के चुनाव वीरभद्र सिंह की अगुवाई में हुए और कांग्रेस की जीत के बाद 25 दिसंबर 2012 को वीरभद्र सिंह ही सीएम बने. इस तरह कौल सिंह के अरमानों पर पानी फिर गया. उन्हें चुनाव जीतने के बावजूद सिर्फ कैबिनेट मंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा.
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कौल सिंह ठाकुर का चुनावी सफर वैसे जनता पार्टी से शुरू हुआ था. जनता पार्टी की टिकट पर उन्होंने साल 1977 में द्रंग से ही चुनाव जीता. उसके बाद कौल सिंह ने सियासत में सफलता के रास्ते पर तेजी से कदम रखे. उनकी चुनावी जीत का सफर 1982 व 1985 के विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा. साल 1990 के चुनाव में कौल सिंह राम लहर के कारण भाजपा के शास्त्री दीनानाथ से हार गए थे लेकिन 1990 के बाद कौल सिंह ने 2012 तक एक भी चुनाव नहीं हारा. वे लगातार 1993, 1998, 2003 व 2007 सहित 2012 का चुनाव भी जीते. वर्ष 2017 में वे भाजपा के जवाहर ठाकुर से हार गए थे.
इस तरह चार दशक के राजनीतिक जीवन में उनके पास ये आखिरी मौका है. वे अपने अनुभव को लेकर सीएम पद के लिए पैरवी कर सकते हैं. यदि हाईकमान ने ये सब कंसीडर किया तो कौल सिंह की लॉटरी लग सकती है. वरिष्ठ पत्रकार राजेश मंढोत्रा का कहना है कि कौल सिंह बेशक अनुभव संपन्न हैं लेकिन सत्ता में आने पर सीएम कौन होगा ? इसे तय करने वाला फैक्टर केवल एक नहीं है. कांग्रेस कई पैमानों पर विचार करेगी और विधायकों की राय से सर्वसम्मति फैसला होगा. कौल सिंह की दावेदारी में होली लॉज यानी वीरभद्र परिवार की हां होना भी जरूरी है. वीरभद्र सिंह भले आज ना हों लेकिन उनके चेहरे पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा है. वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह मौजूदा समय में कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष हैं, ऐसे में सीएम फेस तय होने का एक मानक हॉली लॉज की करीबी भी हो सकता है. हालांकि कौल सिंह एक बार होली लॉज जाकर प्रतिभा सिंह से मिल चुके हैं लेकिन राजनीति में कब कौन सा फैक्टर हावी हो जाए, कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता.
हिमाचल में उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद है और 8 दिसंबर को ईवीएम खुलेगी तो सबके भविष्य का फैसला हो जाएगा. लेकिन कांग्रेस में मतगणना और नतीजों से पहले सरकार बनाने और मुख्यमंत्री को लेकर दावेदारी ठोकी जा रही है. हिमाचल में कांग्रेस का सीएम फेस कौन होगा इसको लेकर कयासों का बाजार भी गर्म है लेकिन कांग्रेस, कौल सिंह या किसी अन्य कांग्रेसी को मुख्यमंत्री, सरकार या मंत्रीमंडल तक पहुंचने से पहले चुनाव जीतना होगा और जीत का वो जादुई आंकड़ा छूना होगा जिसकी बदौलत बीजेपी के रिवाज बदलने के दावे को धराशायी किया जा सके. (himachal assembly elections 2022) (himachal vote counting) (himachal exit polls 2022)