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कई चुनौतियों के साथ खुलेंगे स्कूल, अभिभावकों को मिली डबल टेंशन

सरकार ने दो नवंबर को स्कूल खोलने का फैसला तो लिया है. लेकिन चुनौतियां बहुत ज्यादा है. अभिभावकों को बच्चों की चिंता के साथ ही भारी भरकम फीस का डर सता रहा है.

challenges to open schools in Himachal
challenges to open schools in Himachal
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Published : Oct 31, 2020, 10:17 PM IST

Updated : Nov 1, 2020, 2:28 PM IST

शिमला: प्रदेश सरकार ने राज्य में 2 नवंबर से शैक्षणिक संस्थानों को खोलने का फैसला ले लिया गया है. इस तय तिथि से प्रदेश में जहां नौंवी कक्षा से लेकर बाहरवीं कक्षा के छात्रों की नियमित कक्षाएं स्कूलों में लगाई जाएंगी तो वहीं सभी कॉलेजों में छात्रों की कक्षाएं सुचारू रूप से लगाई जाएंगी.

सरकार ने स्कूल खोलने का फैसला कर लिया है और अब मार्च माह से बंद पड़े यह स्कूल नवंबर माह में खुलने जा रहे हैं. स्कूल तो खोले जा रहे हैं, लेकिन इसे खोलने को लेकर चुनौतियां कम नहीं है. कोविड-19 का खतरा अभी टला नहीं है और रोजना स्कूलों ने शिक्षक और गैर शिक्षक कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव आ रहे हैं.

ऐसे में अभिभावकों के लिए अब यह समझना ही मुश्किल हो गया है कि वह किस तरह से नियमित कक्षाओं को लगाने के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजें. वो भी तब जब सरकार किसी भी तरह की कोई जिम्मेदारी बच्चों की नहीं लेना चाहती है और सारी बात अभिभावकों पर छोड़ी जा रही है.

वीडियो रिपोर्ट.

वहीं, विभाग भी यह बोल कर अपना पल्ला झाड़ता दिख रहा है की स्कूलों को खोलने का यह फ़ैसला अभिभावकों की राय के आधार पर ही लिया गया है. अलग-अलग तरीके से और ई-पीटीएम के माध्यम से विभाग और स्कूलों ने स्कूल खोलने और नियमित कक्षाएं लगाने को लेकर राय अभिभावकों से मांगी थी, जिसके आधार पर ही अब नौंवी से बाहरवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए अब स्कूल खोले जा रहे हैं.

हालांकि विभाग इसकी जिम्मेदारी अभिभावकों पर ही छोड़ते हुए यह कह रहा है कि छात्रों को स्कूल आने के लिए अपने अभिभावकों का अनुमति पत्र साथ में लाना होगा, जिसने अभिभावकों की चिंता को और अधिक बढ़ा दिया है.

अभिभावकों की चिंता तो लाजमी है ही, लेकिन स्कूल प्रबंधन की भी मुश्किलें स्कूलों को खोलने को लेकर कम नहीं है. हर स्कूल ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर के अनुसार छात्रों की नियमित कक्षाएं लगाने को लेकर अपना माइक्रो प्लान तो तैयार कर दिया है, लेकिन अब जब स्कूलों में शिक्षक और स्टाफ ही पॉजिटिव आने लगा है तो किस तरह से व्यवस्था को बनाया जाए यह बड़ी परेशानी बन रहा है.

अपनी तरफ से थर्मल सकैंनिग के साथ ही हैंड सेनिटाइजेशन और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कक्षाएं लगाने की तैयारी तो स्कूलों ने कर ली है, लेकिन अब विभाग ने यह निर्देश जारी कर दिए हैं कि फ्लू के लक्षण वाले शिक्षकों, गैर शिक्षकों के साथ ही छात्रों को स्कूल ने प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

वहीं अभिभावकों का स्कूल प्रबंधन से भी यही कहना है कि स्कूल बच्चों की जिम्मेदारी ले उसके बाद ही वह अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे. अगर बच्चे स्कूल आते हैं तो उनसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाना स्कूल के लिए बेहद मुश्किल कार्य हो जाता है. छात्रों को अपने दोस्तों से अलग कर पाना स्कूल प्रबंधन के लिए आसान नहीं हो पाएगा और छात्र कहीं ना कहीं आपस में जरूर मिलेंगे- जुलेंगे. इसकी जिम्मेवारी स्कूल प्रबंधन में नहीं ले सकता.

वहीं, स्कूल प्रबंधन का तो यह भी कहना है कि मात्र 15 फीसदी के करीब ही अभिभावक ई-पीटीएम में उनसे मिले थे जो चाह रहे थे कि स्कूलों में छात्रों की नियमित कक्षाएं लगे, लेकिन उसके लिए भी वह स्कूल प्रबंधन इस बात का आश्वासन चाह रहे थे उनके बच्चे स्कूल में पूरी तरह सुरक्षित रहें.

अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ ही भारी भरकम फ़ीस को चुकाने की चिंता भी सत्ता रही है. सरकार ने तो स्कूलों को खोलने का फैसला ले लिया है, लेकिन परेशानी यह भी है कि अगर छात्र स्कूल जाएंगे तो स्कूल पूरी फीस के साथ ही अतिरिक्त फंड भी उनसे वसूलेंगे, जिसे कोविड के इस संकट के बीच में अभिभावकों के लिए चुकता करना आसान नहीं होगा.

विभाग ने माना चुनौतियां तो है लेकिन इनसे उभरना जरूरी

उच्च शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ. अमरजीत शर्मा ने माना की स्कूलों को खोलने ने चुनौतियां तो है लेकिन इन्हीं चुनौतियों को पार करना है और अब यह जरूरी है कि छात्रों को स्कूल बुलाया जाए और उनकी कक्षाओं ने नियमित पढ़ाई करवाई जाए.

स्कूलों के लिए प्लान के अनुसार काम करना और अभिभावकों का विश्वास जितना बड़ी चुनौतीसरकार ने तो स्कूल खोलने के आदेश जारी कर दिए हैं. वहीं, विभाग ने एसओपी और एडवाइजरी स्कूलों को जारी कर दी है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती स्कूल प्रबंधन के सामने हैं कि किस तरह से उस प्लान को सही तरीके से एग्जीक्यूट किया जाए.

इसके अलावा छात्रों-शिक्षकों और अपने स्टाफ को भी कोरोनावायरस से कैसे बचाया जा सके. सबसे बड़ी चुनौती इस समय यह है कि किस तरह से अभिभावकों का विश्वास जीता जाए, ताकि वह अपने बच्चों को नियमित कक्षाओं के लिए स्कूल भेज सकें.

शिमला: प्रदेश सरकार ने राज्य में 2 नवंबर से शैक्षणिक संस्थानों को खोलने का फैसला ले लिया गया है. इस तय तिथि से प्रदेश में जहां नौंवी कक्षा से लेकर बाहरवीं कक्षा के छात्रों की नियमित कक्षाएं स्कूलों में लगाई जाएंगी तो वहीं सभी कॉलेजों में छात्रों की कक्षाएं सुचारू रूप से लगाई जाएंगी.

सरकार ने स्कूल खोलने का फैसला कर लिया है और अब मार्च माह से बंद पड़े यह स्कूल नवंबर माह में खुलने जा रहे हैं. स्कूल तो खोले जा रहे हैं, लेकिन इसे खोलने को लेकर चुनौतियां कम नहीं है. कोविड-19 का खतरा अभी टला नहीं है और रोजना स्कूलों ने शिक्षक और गैर शिक्षक कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव आ रहे हैं.

ऐसे में अभिभावकों के लिए अब यह समझना ही मुश्किल हो गया है कि वह किस तरह से नियमित कक्षाओं को लगाने के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजें. वो भी तब जब सरकार किसी भी तरह की कोई जिम्मेदारी बच्चों की नहीं लेना चाहती है और सारी बात अभिभावकों पर छोड़ी जा रही है.

वीडियो रिपोर्ट.

वहीं, विभाग भी यह बोल कर अपना पल्ला झाड़ता दिख रहा है की स्कूलों को खोलने का यह फ़ैसला अभिभावकों की राय के आधार पर ही लिया गया है. अलग-अलग तरीके से और ई-पीटीएम के माध्यम से विभाग और स्कूलों ने स्कूल खोलने और नियमित कक्षाएं लगाने को लेकर राय अभिभावकों से मांगी थी, जिसके आधार पर ही अब नौंवी से बाहरवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए अब स्कूल खोले जा रहे हैं.

हालांकि विभाग इसकी जिम्मेदारी अभिभावकों पर ही छोड़ते हुए यह कह रहा है कि छात्रों को स्कूल आने के लिए अपने अभिभावकों का अनुमति पत्र साथ में लाना होगा, जिसने अभिभावकों की चिंता को और अधिक बढ़ा दिया है.

अभिभावकों की चिंता तो लाजमी है ही, लेकिन स्कूल प्रबंधन की भी मुश्किलें स्कूलों को खोलने को लेकर कम नहीं है. हर स्कूल ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर के अनुसार छात्रों की नियमित कक्षाएं लगाने को लेकर अपना माइक्रो प्लान तो तैयार कर दिया है, लेकिन अब जब स्कूलों में शिक्षक और स्टाफ ही पॉजिटिव आने लगा है तो किस तरह से व्यवस्था को बनाया जाए यह बड़ी परेशानी बन रहा है.

अपनी तरफ से थर्मल सकैंनिग के साथ ही हैंड सेनिटाइजेशन और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कक्षाएं लगाने की तैयारी तो स्कूलों ने कर ली है, लेकिन अब विभाग ने यह निर्देश जारी कर दिए हैं कि फ्लू के लक्षण वाले शिक्षकों, गैर शिक्षकों के साथ ही छात्रों को स्कूल ने प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

वहीं अभिभावकों का स्कूल प्रबंधन से भी यही कहना है कि स्कूल बच्चों की जिम्मेदारी ले उसके बाद ही वह अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे. अगर बच्चे स्कूल आते हैं तो उनसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाना स्कूल के लिए बेहद मुश्किल कार्य हो जाता है. छात्रों को अपने दोस्तों से अलग कर पाना स्कूल प्रबंधन के लिए आसान नहीं हो पाएगा और छात्र कहीं ना कहीं आपस में जरूर मिलेंगे- जुलेंगे. इसकी जिम्मेवारी स्कूल प्रबंधन में नहीं ले सकता.

वहीं, स्कूल प्रबंधन का तो यह भी कहना है कि मात्र 15 फीसदी के करीब ही अभिभावक ई-पीटीएम में उनसे मिले थे जो चाह रहे थे कि स्कूलों में छात्रों की नियमित कक्षाएं लगे, लेकिन उसके लिए भी वह स्कूल प्रबंधन इस बात का आश्वासन चाह रहे थे उनके बच्चे स्कूल में पूरी तरह सुरक्षित रहें.

अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ ही भारी भरकम फ़ीस को चुकाने की चिंता भी सत्ता रही है. सरकार ने तो स्कूलों को खोलने का फैसला ले लिया है, लेकिन परेशानी यह भी है कि अगर छात्र स्कूल जाएंगे तो स्कूल पूरी फीस के साथ ही अतिरिक्त फंड भी उनसे वसूलेंगे, जिसे कोविड के इस संकट के बीच में अभिभावकों के लिए चुकता करना आसान नहीं होगा.

विभाग ने माना चुनौतियां तो है लेकिन इनसे उभरना जरूरी

उच्च शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ. अमरजीत शर्मा ने माना की स्कूलों को खोलने ने चुनौतियां तो है लेकिन इन्हीं चुनौतियों को पार करना है और अब यह जरूरी है कि छात्रों को स्कूल बुलाया जाए और उनकी कक्षाओं ने नियमित पढ़ाई करवाई जाए.

स्कूलों के लिए प्लान के अनुसार काम करना और अभिभावकों का विश्वास जितना बड़ी चुनौतीसरकार ने तो स्कूल खोलने के आदेश जारी कर दिए हैं. वहीं, विभाग ने एसओपी और एडवाइजरी स्कूलों को जारी कर दी है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती स्कूल प्रबंधन के सामने हैं कि किस तरह से उस प्लान को सही तरीके से एग्जीक्यूट किया जाए.

इसके अलावा छात्रों-शिक्षकों और अपने स्टाफ को भी कोरोनावायरस से कैसे बचाया जा सके. सबसे बड़ी चुनौती इस समय यह है कि किस तरह से अभिभावकों का विश्वास जीता जाए, ताकि वह अपने बच्चों को नियमित कक्षाओं के लिए स्कूल भेज सकें.

Last Updated : Nov 1, 2020, 2:28 PM IST
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