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एचपीयू 2014 से अभी तक कैंपस में नहीं बना पाया बोटैनिकल गार्डन, यूजीसी से मिली है निर्माण के लिए ग्रांट

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कैंपस में प्रस्तावित बोटैनिकल गार्डन का निर्माण विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक नहीं करवा पाया है. साल 2014 से इस कार्य के लिए राशि एचपीयू को मिली है, लेकिन निर्माण कार्य को एचपीयू ने अभी तक पूरा ही नहीं किया है.

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Published : Feb 24, 2019, 3:15 PM IST

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शिमला: प्रदेश विश्वविद्यालय के कैंपस में प्रस्तावित बोटैनिकल गार्डन का निर्माण विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक नहीं करवा पाया है. साल 2014 से इस कार्य के लिए राशि एचपीयू को मिली है, लेकिन निर्माण कार्य को एचपीयू ने अभी तक पूरा ही नहीं किया है. एचपीयू प्रशासन ने इस बोटैनिकल गार्डन को बनाने के लिए एचपीयू के कैंपस में ही स्थित हिमालयन एकीकृत शोध संस्थान के भवन के आस पास खाली पड़ी जमीन को चुना था. इस जमीन की खुदाई कर यहां गार्डन बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया था. 2016 में इस कार्य को एचपीयू के पूर्व कुलपति प्रो.एडीएन वाजपेयी के कार्यालय में शुरू किया गया था, लेकिन इसे बीच में ही अधूरा छोड़ दिया गया.

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एचपीयू कैंपस में बनाए जा रहे इस बोटैनिकल गार्डन के लिए बजट हिमालयन एकीकृत शोध अध्ययन संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से दिया गया है. तीन करोड़ से अधिक का यह बजट 2014 में यूजीसी ने अलग अलग कार्यों के लिए दिया था, जिसमें से 45 लाख का बजट एचपीयू ने बोटैनिकल गार्डन के निर्माण कार्य के लिए ही रखा था. इस गार्डन का आधा-अधूरा काम करने में भी एचपीयू ने इस राशि को खर्च किया, लेकिन इसके बाद औषधीय पौधे इस गार्डन में नहीं लगाए गए.एचपीयू ने गार्डन के निर्माण के लिए जमीन की खुदाई थी अब उसे भी दोबारा से करवाना होगा जिसके लिए बजट एचपीयू इस कार्य पर दोबारा खर्च करेगा. एचपीयू ने जब से इस गार्डन को बनाने का काम अधूरा छोड़ा हैं तब से इसकी सुध नहीं ली गई है और ना ही इसका काम पूरा करने में एचपीयू कोई दिलचस्पी दिखा रहा हैं.एचपीयू को कैंपस में इस गार्डन को बनाने का उद्देश्य जहां कैंपस की ब्यूटीफिकेशन करना था वही इस गार्डन में ऐसे औषधीय पौधे लगाना था जो छात्रों को शोध के लिए काम आ सके. एचपीयू में साइंस विषय के छात्रों के पास पौधों पर शोध करने के लिए कैंपस में कोई सुविधा ही नहीं है. छात्रों को जगंलों में जा कर पौधों पर शोध करना पड़गा है. अगर कैंपस में यह गार्डन बन जाता तो इससे छात्रों को कैंपस में ही वो औषधीय पौधे मिलते जिनपर छात्र कैंपस में ही शोध कर पाते.एचपीयू के इस गार्डन के निर्माण को लेकर नौणी विश्वविद्यालय के गार्डन के साथ ही अन्य गार्डन भी देखे है ताकि एचपीयू के इस गार्डन को भी उसी तर्ज पर तैयार किया जा सके, लेकिन एचपीयू ने इस ओर कोई कार्य शुरू ही नहीं किया. अब एचपीयू की लेटलतीफी के चलते यूजीसी से मिली ग्रांट भी लैप्स होने की कगार पर हैं. एचपीयू अगर पहले मिली राशि को खर्च नहीं करता है तो आगामी ग्रांट भी संकट आ सकता है.बता दें कि एचपीयू के इस बोटैनिकल गार्डन में इस तरह के पौधे लगाए जाने है जिनका प्रयोग औषधियों के रूप में किया जाता है और जो पौधे दवाई बनाने के काम आते हैं. शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्र में जो पौधे टिक सकते है, उन्हें इस गार्डन में लगा कर इसकी खूबसूरती को एचपीयू ने बढ़ाना है जिससे एचपीयू ओर यहां शिक्षा ग्रहन करने वाले छात्रों को इसका लाभ मिल सके.

शिमला: प्रदेश विश्वविद्यालय के कैंपस में प्रस्तावित बोटैनिकल गार्डन का निर्माण विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक नहीं करवा पाया है. साल 2014 से इस कार्य के लिए राशि एचपीयू को मिली है, लेकिन निर्माण कार्य को एचपीयू ने अभी तक पूरा ही नहीं किया है. एचपीयू प्रशासन ने इस बोटैनिकल गार्डन को बनाने के लिए एचपीयू के कैंपस में ही स्थित हिमालयन एकीकृत शोध संस्थान के भवन के आस पास खाली पड़ी जमीन को चुना था. इस जमीन की खुदाई कर यहां गार्डन बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया था. 2016 में इस कार्य को एचपीयू के पूर्व कुलपति प्रो.एडीएन वाजपेयी के कार्यालय में शुरू किया गया था, लेकिन इसे बीच में ही अधूरा छोड़ दिया गया.

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एचपीयू कैंपस में बनाए जा रहे इस बोटैनिकल गार्डन के लिए बजट हिमालयन एकीकृत शोध अध्ययन संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से दिया गया है. तीन करोड़ से अधिक का यह बजट 2014 में यूजीसी ने अलग अलग कार्यों के लिए दिया था, जिसमें से 45 लाख का बजट एचपीयू ने बोटैनिकल गार्डन के निर्माण कार्य के लिए ही रखा था. इस गार्डन का आधा-अधूरा काम करने में भी एचपीयू ने इस राशि को खर्च किया, लेकिन इसके बाद औषधीय पौधे इस गार्डन में नहीं लगाए गए.एचपीयू ने गार्डन के निर्माण के लिए जमीन की खुदाई थी अब उसे भी दोबारा से करवाना होगा जिसके लिए बजट एचपीयू इस कार्य पर दोबारा खर्च करेगा. एचपीयू ने जब से इस गार्डन को बनाने का काम अधूरा छोड़ा हैं तब से इसकी सुध नहीं ली गई है और ना ही इसका काम पूरा करने में एचपीयू कोई दिलचस्पी दिखा रहा हैं.एचपीयू को कैंपस में इस गार्डन को बनाने का उद्देश्य जहां कैंपस की ब्यूटीफिकेशन करना था वही इस गार्डन में ऐसे औषधीय पौधे लगाना था जो छात्रों को शोध के लिए काम आ सके. एचपीयू में साइंस विषय के छात्रों के पास पौधों पर शोध करने के लिए कैंपस में कोई सुविधा ही नहीं है. छात्रों को जगंलों में जा कर पौधों पर शोध करना पड़गा है. अगर कैंपस में यह गार्डन बन जाता तो इससे छात्रों को कैंपस में ही वो औषधीय पौधे मिलते जिनपर छात्र कैंपस में ही शोध कर पाते.एचपीयू के इस गार्डन के निर्माण को लेकर नौणी विश्वविद्यालय के गार्डन के साथ ही अन्य गार्डन भी देखे है ताकि एचपीयू के इस गार्डन को भी उसी तर्ज पर तैयार किया जा सके, लेकिन एचपीयू ने इस ओर कोई कार्य शुरू ही नहीं किया. अब एचपीयू की लेटलतीफी के चलते यूजीसी से मिली ग्रांट भी लैप्स होने की कगार पर हैं. एचपीयू अगर पहले मिली राशि को खर्च नहीं करता है तो आगामी ग्रांट भी संकट आ सकता है.बता दें कि एचपीयू के इस बोटैनिकल गार्डन में इस तरह के पौधे लगाए जाने है जिनका प्रयोग औषधियों के रूप में किया जाता है और जो पौधे दवाई बनाने के काम आते हैं. शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्र में जो पौधे टिक सकते है, उन्हें इस गार्डन में लगा कर इसकी खूबसूरती को एचपीयू ने बढ़ाना है जिससे एचपीयू ओर यहां शिक्षा ग्रहन करने वाले छात्रों को इसका लाभ मिल सके.
Intro:हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कैंपस में प्रस्तावित बोटैनिकल गार्डन का निर्माण विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक नहीं करवा पाया है। वर्ष 2014 से इस कार्य के लिए राशि एचपीयू को मिली है लेकिन निर्माण कार्य को एचपीयू ने अभी तक पूरा ही नहीं किया है। एचपीयू प्रशासन ने इस बोटैनिकल गार्डन को बनाने के लिए एचपीयू के कैंपस में ही स्थित हिमालयन एकीकृत शोध संस्थान के भवन के आस पास खाली पड़ी जमीन को चुना था। इस जमीन की खुदाई कर यहां गार्डन बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया था। 2016 में इस कार्य को एचपीयू के पूर्व कुलपति प्रो.एडीएन वाजपेयी के कार्यालय में शुरू किया गया था लेकिन इसे बीच में ही अधूरा छोड़ दिया गया।


Body:एचपीयू कैंपस में बनाए जा रहे इस बोटैनिकल गार्डन के लिए बजट हिमालयन एकीकृत शोध अध्ययन संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से दिया गया है। तीन करोड़ से अधिक का यह बजट 2014 में यूजीसी ने अलग अलग कार्यों के लिए दिया था,जिसमें से 45 लाख का बजट एचपीयू ने बोटैनिकल गार्डन के निर्माण कार्य के लिए ही रखा था। इस गार्डन का आधा-अधूरा काम करने में भी एचपीयू ने इस राशि को खर्च किया लेकिन इसके बाद औषधीय पौधे इस गार्डन में नहीं लगाए गए। एचपीयू ने गार्डन के निर्माण के लिए जमीन की खुदाई थी अब उसे भी दोबारा से करवाना होगा जिसके लिए बजट एचपीयू इस कार्य पर दोबारा खर्च करेगा। एचपीयू ने जब से इस गार्डन को बनाने का काम अधूरा छोड़ा हैं तब से इसकी सुध नहीं ली गई है और ना ही इसका काम पूरा करने में एचपीयू कोई दिलचस्पी दिखा रहा हैं।


Conclusion:एचपीयू को कैंपस में इस गार्डन को बनाने का उद्देश्य जहां कैंपस की ब्यूटीफिकेशन करना था वही इस गार्डन में ऐसे औषधीय पौधे लगाना था जो छात्रों को शोध के लिए काम आ सके। एचपीयू में साइंस विषय के छात्रों के पास पौधों पर शोध करने के लिए कैंपस में कोई सुविधा ही नहीं है। छात्रों को जगंलों में जा कर पौधों पर शोध करना पड़गा है। अगर कैंपस में यह गार्डन बन जाता तो इससे छात्रों को कैंपस में ही वो औषधीय पौधे मिलते जिनपर छात्र कैंपस में ही शोध कर पाते। एचपीयू के इस गार्डन के निर्माण को लेकर नौणी विश्वविद्यालय के गार्डन के साथ ही अन्य गार्डन भी देखे है ताकि एचपीयू के इस गार्डन को भी उसी तर्ज पर तैयार किया जा सके,लेकिन एचपीयू ने इस ओर कोई कार्य शुरू ही नहीं किया। अब एचपीयू की लेटलतीफी के चलते यूजीसी से मिली ग्रांट भी लैप्स होने की कगार पर हैं। एचपीयू अगर पहले मिली राशि को खर्च नहीं करता है तो आगामी ग्रांट भी संकट आ सकता है।
बता दे कि एचपीयू के इस बोटैनिकल गार्डन में इस तरह के पौधे लगाए जाने है जिनका प्रयोग औषधियों के रूप में किया जाता है ओर जो पौधे दवाई बनाने के काम आते है। शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्र में जो पौधे टिक सकते है उन्हें इस गार्डन में लगा कर इसकी खूबसूरती को एचपीयू ने बढ़ाना है जिससे एचपीयू ओर यहां शिक्षा ग्रहन करने वाले छात्रों को इसका लाभ मिल सके।
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