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आर्थिक पैकेज का लंबे समय में किसानों को मिल सकता है लाभ,  मौजूदा समस्याएं नहीं हुई हल

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Published : May 15, 2020, 11:54 PM IST

कोरोना महामारी के इस दौर में केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज में से एग्रीकल्चर व अन्य सेक्टर को 1.63 लाख करोड़ रुपए मिले हैं. हिमाचल के संदर्भ में देखा जाए तो इस पैकेज से हिमाचल को दीर्घकाल में लाभ होगा, लेकिन यहां की कुछ ज्वलंत समस्याएं अभी भी हल नहीं हुई हैं.

green house in himachal pradesh
आर्थिक पैकेज का लंबे समय में किसानों को मिल सकता है लाभ

शिमलाः हिमाचल प्रदेश में 90 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और किसी न किसी रूप में खेती-बागवानी, पशुपालन आदि से जुड़ी है. हिमाचल प्रदेश में सात लाख से अधिक किसान परिवार व चार लाख के करीब बागवान परिवार हैं.

कोरोना महामारी के इस दौर में केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज में से एग्रीकल्चर व अन्य सेक्टर को 1.63 लाख करोड़ रुपए मिले हैं.

हिमाचल के संदर्भ में देखा जाए तो यहां की परिस्थितियां बायो-डायवर्सिटी के कारण अलग हैं. यहां के अधिकांश किसान लघु व सीमांत हैं, उनके पास छोटे-छोटे खेत हैं. प्रदेश में बेमौसमी सब्जियों का भी अच्छा खासा उत्पादन होता है.

हालांकि खेती-बागवानी व पशुपालन का प्रदेश की जीडीपी में अधिक योगदान नहीं है, लेकिन खेती-किसानी यहां आजीविका का आधार स्तंभ है. ये सही है कि इस पैकेज से हिमाचल को दीर्घकाल में लाभ होगा, लेकिन यहां की कुछ ज्वलंत समस्याएं अभी भी हल नहीं हुई हैं.

उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश में बंदर व जंगली जानवर फसल और फलों को सालाना पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान पहुंचाते हैं.

हालांकि हिमाचल सरकार ने सोलर फैंसिंग के लिए कई प्रावधान किए हैं, लेकिन समस्या का पूरी तरह से हल नहीं हुआ है. सोलर फैंसिंग के लिए हिमाचल सरकार ने 200 करोड़ रुपए केंद्र से मंजूर करवाए थे.

फिलहाल शुक्रवार को घोषित एक लाख करोड़ रुपए कृषि सेक्टर में इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए है. ये आने वाले समय में तो अहम साबित होगा, लेकिन अभी के लिए इसका खास फायदा नहीं है.

हिमाचल में बेमौसमी सब्जियों में से अभी मटर की बंपर पैदावार हुई थी. चूंकि देश की मंडियों में बिक्री का कोई मैकेनिज्म नहीं था, इसलिए किसानों की औने-पौने दामों में बेचना पड़ा, लागत भी नहीं मिल पाई.

इसी तरह गोभी की पैदावार का हाल है. कैटल फीड प्रोडक्शन के लिए 15 हजार करोड़ रुपए दिए गए हैं, लेकिन हिमाचल के पशुपालकों की मांग है कि उनके लिए दूध खरीद मूल्य बढऩा चाहिए.

हिमाचल में इस समय पशुपालक दूध खरीद मूल्य कम से कम 30 रुपए प्रति लीटर की मांग कर रहे हैं. मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपए दिए गए हैं.

हिमाचल प्रदेश में फलों में नब्बे फीसदी सेब पैदा होता है. फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स यहां समय की जरूरत हैं. इसी तरह हिमाचल प्रदेश में अस्सी करोड़ रुपए के फूल उत्पादन कारोबार पर भी मार पड़ी है.

फूल उत्पादन में लगे किसान निराश हैं. यही हाल, मशरूम उत्पादन, टमाटर उत्पादन का भी है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश के किसानों को नगद राहत की जरूरत है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 1.63 लाख करोड़ रुपए की 11 घोषणाओं का स्वागत किया है.

वहीं, किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर का कहना है कि किसानों को इस समय फौरी राहत की जरूरत है. उनके खाते में डाले जाने वाली किसान सम्मान निधि को बढ़ाकर 18 हजार रुपए किया जाना चाहिए.

पढ़ेंः कोविड-19 ट्रैकर: हिमाचल में कोरोना वायरस से एक की मौत, 2 नए मामले आए सामने

शिमलाः हिमाचल प्रदेश में 90 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और किसी न किसी रूप में खेती-बागवानी, पशुपालन आदि से जुड़ी है. हिमाचल प्रदेश में सात लाख से अधिक किसान परिवार व चार लाख के करीब बागवान परिवार हैं.

कोरोना महामारी के इस दौर में केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज में से एग्रीकल्चर व अन्य सेक्टर को 1.63 लाख करोड़ रुपए मिले हैं.

हिमाचल के संदर्भ में देखा जाए तो यहां की परिस्थितियां बायो-डायवर्सिटी के कारण अलग हैं. यहां के अधिकांश किसान लघु व सीमांत हैं, उनके पास छोटे-छोटे खेत हैं. प्रदेश में बेमौसमी सब्जियों का भी अच्छा खासा उत्पादन होता है.

हालांकि खेती-बागवानी व पशुपालन का प्रदेश की जीडीपी में अधिक योगदान नहीं है, लेकिन खेती-किसानी यहां आजीविका का आधार स्तंभ है. ये सही है कि इस पैकेज से हिमाचल को दीर्घकाल में लाभ होगा, लेकिन यहां की कुछ ज्वलंत समस्याएं अभी भी हल नहीं हुई हैं.

उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश में बंदर व जंगली जानवर फसल और फलों को सालाना पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान पहुंचाते हैं.

हालांकि हिमाचल सरकार ने सोलर फैंसिंग के लिए कई प्रावधान किए हैं, लेकिन समस्या का पूरी तरह से हल नहीं हुआ है. सोलर फैंसिंग के लिए हिमाचल सरकार ने 200 करोड़ रुपए केंद्र से मंजूर करवाए थे.

फिलहाल शुक्रवार को घोषित एक लाख करोड़ रुपए कृषि सेक्टर में इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए है. ये आने वाले समय में तो अहम साबित होगा, लेकिन अभी के लिए इसका खास फायदा नहीं है.

हिमाचल में बेमौसमी सब्जियों में से अभी मटर की बंपर पैदावार हुई थी. चूंकि देश की मंडियों में बिक्री का कोई मैकेनिज्म नहीं था, इसलिए किसानों की औने-पौने दामों में बेचना पड़ा, लागत भी नहीं मिल पाई.

इसी तरह गोभी की पैदावार का हाल है. कैटल फीड प्रोडक्शन के लिए 15 हजार करोड़ रुपए दिए गए हैं, लेकिन हिमाचल के पशुपालकों की मांग है कि उनके लिए दूध खरीद मूल्य बढऩा चाहिए.

हिमाचल में इस समय पशुपालक दूध खरीद मूल्य कम से कम 30 रुपए प्रति लीटर की मांग कर रहे हैं. मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपए दिए गए हैं.

हिमाचल प्रदेश में फलों में नब्बे फीसदी सेब पैदा होता है. फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स यहां समय की जरूरत हैं. इसी तरह हिमाचल प्रदेश में अस्सी करोड़ रुपए के फूल उत्पादन कारोबार पर भी मार पड़ी है.

फूल उत्पादन में लगे किसान निराश हैं. यही हाल, मशरूम उत्पादन, टमाटर उत्पादन का भी है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश के किसानों को नगद राहत की जरूरत है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 1.63 लाख करोड़ रुपए की 11 घोषणाओं का स्वागत किया है.

वहीं, किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर का कहना है कि किसानों को इस समय फौरी राहत की जरूरत है. उनके खाते में डाले जाने वाली किसान सम्मान निधि को बढ़ाकर 18 हजार रुपए किया जाना चाहिए.

पढ़ेंः कोविड-19 ट्रैकर: हिमाचल में कोरोना वायरस से एक की मौत, 2 नए मामले आए सामने

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