शिमला: हिमाचल प्रदेश एक बागवानी राज्य है, जहां सेब सहित अन्य फलों की बडे़ स्तर पर खेती की जा रही है. सेब यहां की बागवानी का एक बडा़ हिस्सा है. सेब की आर्थिकी करीब पांच हजार करोड़ के आसपास की है. समय के साथ अब सेब की नई वैरायटियां भी बागवान लगाने लगे हैं और बागवानी विभाग भी नई वैरायटियों के पौधों को विदेशों से आयात कर रहा है. बाहर से आने वाले पौधे या इसका मटेरियल स्वस्थ हो, यह सुनिश्चित करना जरूरी है. इसको सुनिश्चित करने के लिए हिमाचल सरकार पौधों की स्क्रीनिंग के लिए एक लैब स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. इसके लिए विदेशों की लैब की भी स्टडी जा रही है. हाल ही में बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी की अगुवाई में एक टीम ने ऑस्ट्रेलिया में प्लांट लैब को स्टडी किया, ताकि इस तरह की लैब हिमाचल में भी स्थापित की जा सके.
पौधों की जांच के लिए बनेगी लैब: हिमाचल अब सेब व अन्य फलों की पारंपरिक किस्मों से आगे निकलकर अब नई वैरायटी पर फोकस किया जा रहा है. हिमाचल में सेब व अन्य फलों की पुरानी वैरायटी की जगह विदेशों से नई वैरायटी के पौधे आयात किए जा रहे हैं. सरकारी स्तर के साथ-साथ बागवान भी अपने स्तर पर विदेशों से सेब के पौधे आयात कर रहे हैं. इन पौधों की गुणवत्ता की बात की जाती रही है, लेकिन ये पौधे गुणवत्ता की कसौटी पर कितना खरा उतरते हैं, मैनुअली इसकी पूरी तरह से जांच करना संभव नहीं है. यही नहीं मैनुअली जांच में समय भी लग रहा है. यही वजह है कि हिमाचल सरकार की प्रदेश में बाहर से आयातित किए जाने वाले पौधों के लिए एक टेस्टिंग और डायग्नोसिस लैब स्थापित की योजना है.
लैब में विदेशों से आए पौधों की होगी जांच: लैब में बाहर से आने वाले पौधों की स्कैनिंग हो सकेगी. बाहर से लाए गए पौधों में वायरस, फंगस, माइट, इनसेक्टस आदि का पता इस लैब में आसानी से लग सकेगा. अभी तक इन पौधों की मैनुअली जांच की जा रही है. हालांकि बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी में वायरस की जांच के लिए लैब है, लेकिन यह छोटे स्तर की है और इसकी क्षमता भी बहुत कम है. यही वजह कि बागवानी विभाग अब एडवांस लैब स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है. जिसके लिए विदेशों में इस तरह की लैब को देखा जा रहा है.
बाहर से आए पौधों को किया जा रहा क्वारंटाइन: अभी बाहर से आने वाले पौधों को क्वारंटाइन किया जा रहा है. बागवानी विभाग या नौणी विश्वविद्यालय अपने यहां नर्सरी में इन पौधों को लगाते हैं और इसकी ग्रोथ पर नजर रखते हैं. वह यह देखते हैं कि प्लांट में कोई कीड़ा या अन्य रोग तो नहीं पनप रहा. प्लांट की ग्रोथ सामान्य हो रही है या इसमें कोई असमान्य ग्रोथ तो नहीं हैं. इसके आधार पर विशेषज्ञ यह तय करते हैं कि बाहर से आए हुए पौधे रोग मुक्त है. इस तरह पौधों को एक से दो साल ऑब्जर्वेशन में रखना पड़ता है और इसके बाद ही इनको बागवानों को दिया जाता है.
विदेशों से सालाना 15.12 लाख पौधों का आयात: हिमाचल में सेब व अन्य फलों के लिए विश्व बैंक फंड 1066 करोड़ की बागवानी विकास परियोजना लागू की गई है. इस परियोजना के तहत विदेशों से नई वैरायटी सेब, आडू, खुमानी, पलम, नाशपाती व चेरी के पौधे आयात किए गए हैं. इस परियोजना के तहत अमेरिका से करीब विभिन्न किस्मों के सालाना 15.12 लाख पौधे आयात किए गए हैं. विदेश से आने वाले इन पौधों को बागवानी विभाग द्वारा एक वर्ष के लिए क्वारंटाइन करने के बाद बागवानों को प्रदान किया जा रहा है. इसके अलावा बागवानी विभाग अपनी नर्सरियों में भी नई वैरायटियों के पौधे लगा रहा है.
'लैब स्थापित करना होगा बड़ा कदम': बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने बताया कि इस तरह की लैब अगर स्थापित होती है तो इससे बाहर से आने वाले प्लांट मैटेरियल की स्कैनिंग की जा सकेगी. विशेषज्ञ यह आसानी से बता सकेंगे कि बाहर से आने वाले प्लांट में कोई बीमारी, वायरस, माइट, इंसेक्ट्स आदि तो नहीं है. एसपी भारद्वाज कहते हैं कि अगर कहीं बीमारी वाला पौधा लगता है या कोई प्लांट मटेरियल गलती से प्रदेश में आता है तो उसके एक बागीचे में लगाने से बीमारियां दूसरे बगीचों फैलती हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि पौधों की स्क्रीनिंग के लिए एक लैब हो. उनका कहना है कि इस तरह की लैब एडवांस होती हैं और अभी तक इस तरह की लैब नहीं है. ऐसे में यह एक अच्छा कदम होगा, अगर राज्य में इस तरह की लैब स्थापित की जाती है.
पौधों के लिए टेस्टिंग व डायग्नोस्टिक लैब की जरूरत: बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी का कहना है कि हिमाचल में बाहर से आने वाले पौधों और अन्य प्लांट मटेरियल की जांच के लिए एक टेस्टिंग व डायग्नोस्टिक लैब की जरूरत है. सरकार इस दिशा में काम कर रही है. इसके लिए विदेशों की लैब को भी देख रहा है. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के दौरे के दौरान वहां पर प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट के क्षेत्र में अपनाई जा रही स्क्रीनिंग, टेस्टिंग तकनीकों को स्टडी किया गया. बागवानी मंत्री ने कहा कि हिमाचल भी ऑस्ट्रेलिया में अपनाई जा रही इन तकनीकों को अपनाएगा. इसके तहत टेस्टिंग व डायग्नोसिस लैब स्थापित की जाएंगी जिससे कि बागवानों को अच्छे और गुणवत्ता वाले पौधे मिल सके.
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