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आज से मलमास की शुरुआत, 165 साल बाद श्राद्ध और नवरात्रों के बीच आया ये महीना

इस बार नवरात्रों के लिए श्राद्ध के बाद 1 महीने का लंबा इंतजार करना पड़ेगा. इसके पीछे की वजह यह है कि आज से पुरुषोत्तम मास जिसे मलमास के नाम से भी जाना जाता है उसकी शुरुआत हो रही है. यह मलमास पूरे एक महीने का है और इस माह के 30 दिनों में किसी भी तरह का कोई भी शुभ काम नहीं होगा. यही वजह भी है कि नवरात्रे भी इस बार 1 माह बाद यानी इस मलमास के खत्म होने के बाद ही शुरू हो रहे हैं.

Adhik maas or malamas 2020
अधिक मास.
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Published : Sep 18, 2020, 4:14 PM IST

Updated : Sep 18, 2020, 7:59 PM IST

शिमला: श्राद्ध के बाद जहां अगले दिन से ही नवरात्रों की शुरुआत हो जाती थी, वहीं इस बार नवरात्रों के लिए श्राद्ध के बाद 1 महीने का लंबा इंतजार करना पड़ेगा. इसके पीछे की वजह यह है कि आज से पुरुषोत्तम मास जिसे मलमास के नाम से भी जाना जाता है उसकी शुरुआत हो रही है.

यह मलमास पूरे एक महीने का है और इस माह के 30 दिनों में किसी भी तरह का कोई भी शुभ काम नहीं होगा. यही वजह भी है कि नवरात्रे भी इस बार 1 माह बाद यानी इस मलमास के खत्म होने के बाद ही शुरू हो रहे हैं.

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक यह माना जाता है कि 3 सालों में एक बार चंद्र मास अत्तिरिक्त आता है, इस कारण से इस महीने को अधिक मास कहा जाता है. इस महीने को मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. यह महीना पूर्ण रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है.

मलमास की उत्तपति जो तिथियां क्षय होती है यानी एकादशी, चतुर्थी, तृतीया की जो तिथियां क्षय होती हैं उनसे मिलकर यह एक अधिकमास बनाता है. वैसे तो यह मलमास अप्रैल, मई माह में आता है, लेकिन 165 साल बाद यह श्राद्ध और नवरात्रों के बीच आया है.

इस मास में मुंडन संस्कार, शादी-विवाह जैसे शुभ काम वर्जित रहते हैं, जबकि दान का इस माह में अपना ही एक विशेष महत्व है. मलमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है और यही वजह भी है कि इस मास में किए गए दान पुण्य धर्म के कार्य भगवान विष्णु को अर्पित होते हैं.

भगवान विष्णु को भगवान पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है और यही वजह है कि इस माह में जो भी व्यक्ति दान, पुण्य, कर्म धर्म करता है उसका उसे अक्षय फल मिलता है और यह सभी दान पुण्य भगवान विष्णु को अर्पित होते हैं.

मलमास में इन कार्यों की मनाही

पंडित वासुदेव शर्मा ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है. उन्होंने बताया कि इस मास को अधिक मास के नाम से भी जाना जाता है और एक महीना अधिक होने के कारण इस मास में हिंदू धर्म के नामकरण, यज्ञोपवित, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार, गृहप्रवेश, बहुमूल्य वस्तुओं की खरीद नहीं किए जाते हैं.

वीडियो.

वहीं, ज्योतिषाचार्य पंडित शशिपाल डोगरा ने बताया कि इस मल मास जिसे अधिकमास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है, उसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं, लेकिन ग्रह शांति के अनुष्ठान और दान-पुण्य इस माह में किया जा सकता है.

मलमास का कोरोना महामारी पर असर

उन्होंने कहा कि इस अधिकमास में कोविड-19 का अधिक प्रकोप देखने को मिलेगा. यह श्मशान योग बना रहा है, जिससे इस वायरस की वजह से मौत का आंकड़ा भी बढ़ेगा. ऐसे में घर पर सुरक्षित रहना काफी जरूरी है.

वीडियो.

मलमास में करें भगवान विष्णु की पूजा

मलमास को पुरुषोत्तम मास कहे जाने के पीछे की कहानी यह है कि हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित है, लेकिन इस एक अतिरिक्त मास का कोई भी देवता बनने के लिए तैयार नहीं हुआ, जिसकी वजह से इस माह में सब धर्म कर्म बंद हो गए.

इसके बाद ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया की वह इस मलमास का भार अपने ऊपर ले लें. इसी आग्रह पर भगवान विष्णु ने इस मास का भार अपने ऊपर लिया और कहा कि इस माह में जो भी पुण्य काम होंगे वह उन्हें अर्पित होंगे और उसका 10 गुणा फल प्राप्त होगा.

हिरण्यकश्यप का वध और मलमास

इस मास की कहानी हिरण्यकश्यप से भी जुड़ी है. हिरण्यकश्यप ने ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु ना दिन में ना रात, ना घर के अंदर ना बाहर और ना ही 12 महीनों में हो. ना कोई अस्त्र ना कोई शस्त्र और ना नर ना नारी, पशु, देवता, असुर कोई भई उन्हें मार ना सके. ऐसे में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार ले कर हिरण्यकश्यप को इस अधिकमास यानी मलमास में मारा था.

अगर हिन्दू कैलेडर के अनुसार देखा जाए तो अधिकमास चन्द्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है जो हर 32 माह 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से आता है. इसकी वजह यह है कि सूर्य वर्ष और चन्द्र वर्ष के बीच अंतर बना रहे. इसके साथ ही भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है.

वही, चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है जो हर 3 वर्ष में लगभग 1 माह के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को बराबर करने के लिए हर 3 साल में एक चंद्रमास अस्तित्व में आता है और इसके अतिरिक्त होने के कारण ही इसको अधिक मास यानी मलमास का नाम दिया गया है.

शिमला: श्राद्ध के बाद जहां अगले दिन से ही नवरात्रों की शुरुआत हो जाती थी, वहीं इस बार नवरात्रों के लिए श्राद्ध के बाद 1 महीने का लंबा इंतजार करना पड़ेगा. इसके पीछे की वजह यह है कि आज से पुरुषोत्तम मास जिसे मलमास के नाम से भी जाना जाता है उसकी शुरुआत हो रही है.

यह मलमास पूरे एक महीने का है और इस माह के 30 दिनों में किसी भी तरह का कोई भी शुभ काम नहीं होगा. यही वजह भी है कि नवरात्रे भी इस बार 1 माह बाद यानी इस मलमास के खत्म होने के बाद ही शुरू हो रहे हैं.

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक यह माना जाता है कि 3 सालों में एक बार चंद्र मास अत्तिरिक्त आता है, इस कारण से इस महीने को अधिक मास कहा जाता है. इस महीने को मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. यह महीना पूर्ण रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है.

मलमास की उत्तपति जो तिथियां क्षय होती है यानी एकादशी, चतुर्थी, तृतीया की जो तिथियां क्षय होती हैं उनसे मिलकर यह एक अधिकमास बनाता है. वैसे तो यह मलमास अप्रैल, मई माह में आता है, लेकिन 165 साल बाद यह श्राद्ध और नवरात्रों के बीच आया है.

इस मास में मुंडन संस्कार, शादी-विवाह जैसे शुभ काम वर्जित रहते हैं, जबकि दान का इस माह में अपना ही एक विशेष महत्व है. मलमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है और यही वजह भी है कि इस मास में किए गए दान पुण्य धर्म के कार्य भगवान विष्णु को अर्पित होते हैं.

भगवान विष्णु को भगवान पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है और यही वजह है कि इस माह में जो भी व्यक्ति दान, पुण्य, कर्म धर्म करता है उसका उसे अक्षय फल मिलता है और यह सभी दान पुण्य भगवान विष्णु को अर्पित होते हैं.

मलमास में इन कार्यों की मनाही

पंडित वासुदेव शर्मा ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है. उन्होंने बताया कि इस मास को अधिक मास के नाम से भी जाना जाता है और एक महीना अधिक होने के कारण इस मास में हिंदू धर्म के नामकरण, यज्ञोपवित, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार, गृहप्रवेश, बहुमूल्य वस्तुओं की खरीद नहीं किए जाते हैं.

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वहीं, ज्योतिषाचार्य पंडित शशिपाल डोगरा ने बताया कि इस मल मास जिसे अधिकमास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है, उसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं, लेकिन ग्रह शांति के अनुष्ठान और दान-पुण्य इस माह में किया जा सकता है.

मलमास का कोरोना महामारी पर असर

उन्होंने कहा कि इस अधिकमास में कोविड-19 का अधिक प्रकोप देखने को मिलेगा. यह श्मशान योग बना रहा है, जिससे इस वायरस की वजह से मौत का आंकड़ा भी बढ़ेगा. ऐसे में घर पर सुरक्षित रहना काफी जरूरी है.

वीडियो.

मलमास में करें भगवान विष्णु की पूजा

मलमास को पुरुषोत्तम मास कहे जाने के पीछे की कहानी यह है कि हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित है, लेकिन इस एक अतिरिक्त मास का कोई भी देवता बनने के लिए तैयार नहीं हुआ, जिसकी वजह से इस माह में सब धर्म कर्म बंद हो गए.

इसके बाद ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया की वह इस मलमास का भार अपने ऊपर ले लें. इसी आग्रह पर भगवान विष्णु ने इस मास का भार अपने ऊपर लिया और कहा कि इस माह में जो भी पुण्य काम होंगे वह उन्हें अर्पित होंगे और उसका 10 गुणा फल प्राप्त होगा.

हिरण्यकश्यप का वध और मलमास

इस मास की कहानी हिरण्यकश्यप से भी जुड़ी है. हिरण्यकश्यप ने ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु ना दिन में ना रात, ना घर के अंदर ना बाहर और ना ही 12 महीनों में हो. ना कोई अस्त्र ना कोई शस्त्र और ना नर ना नारी, पशु, देवता, असुर कोई भई उन्हें मार ना सके. ऐसे में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार ले कर हिरण्यकश्यप को इस अधिकमास यानी मलमास में मारा था.

अगर हिन्दू कैलेडर के अनुसार देखा जाए तो अधिकमास चन्द्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है जो हर 32 माह 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से आता है. इसकी वजह यह है कि सूर्य वर्ष और चन्द्र वर्ष के बीच अंतर बना रहे. इसके साथ ही भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है.

वही, चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है जो हर 3 वर्ष में लगभग 1 माह के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को बराबर करने के लिए हर 3 साल में एक चंद्रमास अस्तित्व में आता है और इसके अतिरिक्त होने के कारण ही इसको अधिक मास यानी मलमास का नाम दिया गया है.

Last Updated : Sep 18, 2020, 7:59 PM IST
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