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हिमाचल को रास नहीं आई "आप", पहाड़ पर पहली चढ़ाई में फिसले केजरीवाल

प्रदेश की राजनीति में आम आदमी पार्टी ने चार नगर निगम चुनाव में दस्तक देकर हिमाचल की राजनीतिक फिजाओं में अपना रंग घोलने की कोशिश की और एक भी जगह खाता नहीं खोल पाई. निगम चुनाव से पहले केजरीवाल के सिपाहियों ने हिमाचल पहुंचकर अपनी जमीन तलाशने की खूब कोशिश की, लेकिन निगम के नतीजों से तो लगता है कि हिमाचल को आम आदमी पार्टी कुछ खास रास नहीं आई. पहाड़ पर पहली ही चढ़ाई में केजरीवाल और उनकी सेना फिसलती नजर आई.

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हिमाचल को रास नहीं आई आप
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Published : Apr 8, 2021, 12:28 PM IST

शिमला: प्रदेश के चार शहरों की जनता ने यह तय कर दिया है कि आम आदमी पार्टी का दिल्ली वाला मॉडल उन्हें फिलहाल रास नहीं आ रहा हैं. यही कारण है कि चारों नगर निगम में आम आदमी पार्टी अपना खाता खोलना तो दूर, दूसरे नंबर पर भी कहीं खड़ी नजर नहीं आई. पार्टी ने जब प्रदेश की सियासत में एंट्री की थी, तो दिल्ली से आला नेताओं ने यहां आकर दिल्ली की तर्ज पर प्रदेश को सजाने-संवारने की जगह-जगह मुनादी कर रिझाने की कोशिश की थी, लेकिन झाड़ू का सिक्का हिमाचल में अभी तक तो चलता नजर नहीं आया.

41 वार्ड में आजमाया भाग्य

आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में चार निगमों में 41 वार्ड में अपने प्रत्याशियों का खड़ा कर भाग्य आजमाया, लेकिन सभी जगह हार का सामना करना पड़ा. पार्टी ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में खड़े किए. यहां से 13 प्रत्याशियों को हार मिली. वहीं, उसके बाद मशरूम सिटी सोलन में 12 प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा.

वहीं, खूबसूरत शहर धर्मशाला में 9 प्रत्याशी खाता खोलने में नाकामयाब रहे. धौलाधार नगरी पालमपुर में सभी 7 उम्मीदवारों को हार का स्वाद चखना पड़ा.

आप को जमने में समय लगेगा

राजनीति के जानकारों की मानें, तो प्रदेश की सियासत में आम आदमी पार्टी को अपना वर्चस्व जमाने में समय लगेगा. पार्टी का भविष्य इस बात पर भी निर्भर करेगा कि चुनाव हारने के बाद पार्टी संगठन को मजबूत करने पर ध्यान देती या फिर विधानसभा चुनाव में फिर मिलेंगे कि तर्ज पर अपने आपको तब तक अलग कर लेती है.

अगर पार्टी लगातार संगठन को प्रदेश में मजबूत करने की दिशा में बढ़ती है, तो आने वाले कुछ सालों में कुछ जगहों पर भाजपा-कांग्रेस के समीकरणों को बिगाड़ने की स्थिति में आ सकती है. इसके इतर अगर पार्टी चुनाव में बरसाती मेंढक की तरह आमद देगी तो कामयाबी की कहानी बहुत कठिन नजर आती है.

बागियों पर रहेंगी निगाहें

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो दूसरी ओर पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के बागियों पर नजर रख सकती है.अगर ऐसे किसी बड़े नेता को जिसे दोनों पार्टियों ने नजरअंदाज किया हो और वह अगर आप का दामन थामकर चुनावी मैदान में उतरे तो कुछ सीट पर पार्टी हाथ साफ कर सकती है, लेकिन इसका फायदा भी तभी मिलेगा जब पार्टी प्रदेश में अपना वोट बैंक बनाने का प्रयास नहीं छोड़े.

पढ़ेंः नो इफ, नो बट: भाजपा को ले डूबा ओवर कॉन्फिडेंस, पहली बार रुका जयराम का विजय रथ

शिमला: प्रदेश के चार शहरों की जनता ने यह तय कर दिया है कि आम आदमी पार्टी का दिल्ली वाला मॉडल उन्हें फिलहाल रास नहीं आ रहा हैं. यही कारण है कि चारों नगर निगम में आम आदमी पार्टी अपना खाता खोलना तो दूर, दूसरे नंबर पर भी कहीं खड़ी नजर नहीं आई. पार्टी ने जब प्रदेश की सियासत में एंट्री की थी, तो दिल्ली से आला नेताओं ने यहां आकर दिल्ली की तर्ज पर प्रदेश को सजाने-संवारने की जगह-जगह मुनादी कर रिझाने की कोशिश की थी, लेकिन झाड़ू का सिक्का हिमाचल में अभी तक तो चलता नजर नहीं आया.

41 वार्ड में आजमाया भाग्य

आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में चार निगमों में 41 वार्ड में अपने प्रत्याशियों का खड़ा कर भाग्य आजमाया, लेकिन सभी जगह हार का सामना करना पड़ा. पार्टी ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में खड़े किए. यहां से 13 प्रत्याशियों को हार मिली. वहीं, उसके बाद मशरूम सिटी सोलन में 12 प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा.

वहीं, खूबसूरत शहर धर्मशाला में 9 प्रत्याशी खाता खोलने में नाकामयाब रहे. धौलाधार नगरी पालमपुर में सभी 7 उम्मीदवारों को हार का स्वाद चखना पड़ा.

आप को जमने में समय लगेगा

राजनीति के जानकारों की मानें, तो प्रदेश की सियासत में आम आदमी पार्टी को अपना वर्चस्व जमाने में समय लगेगा. पार्टी का भविष्य इस बात पर भी निर्भर करेगा कि चुनाव हारने के बाद पार्टी संगठन को मजबूत करने पर ध्यान देती या फिर विधानसभा चुनाव में फिर मिलेंगे कि तर्ज पर अपने आपको तब तक अलग कर लेती है.

अगर पार्टी लगातार संगठन को प्रदेश में मजबूत करने की दिशा में बढ़ती है, तो आने वाले कुछ सालों में कुछ जगहों पर भाजपा-कांग्रेस के समीकरणों को बिगाड़ने की स्थिति में आ सकती है. इसके इतर अगर पार्टी चुनाव में बरसाती मेंढक की तरह आमद देगी तो कामयाबी की कहानी बहुत कठिन नजर आती है.

बागियों पर रहेंगी निगाहें

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो दूसरी ओर पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के बागियों पर नजर रख सकती है.अगर ऐसे किसी बड़े नेता को जिसे दोनों पार्टियों ने नजरअंदाज किया हो और वह अगर आप का दामन थामकर चुनावी मैदान में उतरे तो कुछ सीट पर पार्टी हाथ साफ कर सकती है, लेकिन इसका फायदा भी तभी मिलेगा जब पार्टी प्रदेश में अपना वोट बैंक बनाने का प्रयास नहीं छोड़े.

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