शिमला: कोविड संकट के दौर में हिमाचल प्रदेश की ग्रामीण जनता के लिए मनरेगा स्कीम वरदान साबित हुई. कोविड संकट के दौरान अनलॉक पीरियड शुरू होते ही प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में मनरेगा के तहत दिहाड़ी लगाने की होड़ लग गई.
कोरोना महामारी में 750 करोड़ के विकास कार्य
हिमाचल में इस पूरे संकट काल में मनरेगा के तहत ग्रामीण इलाकों में 750 करोड़ रुपये के विकास कार्य किए गए. कोविड संकट में हिमाचल सरकार ने भी ऐलान किया कि जिन लोगों का रोजगार छिन गया है, वो भी मनरेगा में दिहाड़ी के लिए अप्लाई कर सकते हैं. बड़ी संख्या में शहरों से ग्रामीण इलाकों में आए युवाओं को रोजगार मिला साथ ही सरकार ने ये भी फैसला लिया कि अपने ही खेतों में कृषि कार्य करने को भी मनरेगा में गिना जाएगा.
सरकार की इस पहल का लाभ ये हुआ कि बड़ी संख्या में सीमांत किसान और ग्रामीण युवा आर्थिक संकट से उबर गए. इस साल जब अनलॉक पीरियड शुरू हुआ तो मई, जून और जुलाई महीने में सरकार की आशा से कहीं अधिक लोगों ने रोजगार हासिल किया.
मनरेगा के तहत लगी रिकॉर्ड दिहाड़ियां
हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण विकास विभाग ने मई महीने में अनुमान लगाया था कि मनरेगा के तहत 31 लाख से कुछ अधिक कार्य दिवस बने, लेकिन मई में 32 लाख, 89 हजार, 412 दिहाड़ियां लगीं. इसी तरह जून महीने में सरकार की तरफ से संभावित दिहाड़ी की संख्या 49 लाख,43 हजार,724 थी, परंतु रिकार्ड तोड़ आंकड़ा सामने आया और 79 लाख, 61 हजार, 349 लाख दिहाड़ी बनीं.
इसी तरह जुलाई महीने में पिछले सारे रिकार्ड टूट गए. संभावित एक करोड़, 24 लाख ,75 हजार,133 कार्य दिवस यानी दिहाड़ी की तुलना में करीब करीब सवा करोड़ दिहाड़ी बनीं. फिर अगस्त महीने में भी 1.60 करोड़ व सितंबर महीने में 1.94 करोड़ दिहाड़ी मनरेगा के तहत लगी.
मनरेगा के तहत साल में 100 दिन का रोजगार देना होता है. यदि कोई ग्रामीण रोजगार मांगता है और एक पखवाड़े के भीतर उसे काम न मिले तो बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है. अगस्त के आखिरी दिनों में हिमाचल सरकार को केंद्र से मनरेगा के लिए 80.57 करोड़ रुपये की राशि मिली थी. प्रदेश के12 जिलों में पिछले वित्त वर्ष के दौरान 260 लाख कार्य दिवस सृजित हुए थे.
जनजातीय जिलों में मनरेगा का मानदेय अधिक
इसके तहत कुल 589 करोड़ रुपये खर्च किए गए. हिमाचल प्रदेश में भौगोलिक विशेषताओं की वजह से जनजातीय जिलों किन्नौर, लाहौल-स्पीति में मनरेगा का मानदेय 248 रुपये प्रतिदिन है. वहीं, प्रदेश के अन्य भागों में ये राशि 198 रुपये रोजाना है. हिमाचल प्रदेश के 80 विकास खंडों की 3221 पंचायतों में मनरेगा के तहत कार्य किए जा रहे हैं.
अब पंचायतों की संख्या बढ़कर 3615 हो गई है. राज्य में 13.39 लाख जॉब कार्ड हैं, जिनके जरिए 24.98 लाख लोग रजिस्टर्ड हैं. प्रदेश में सक्रिय श्रमिकों की संख्या 11 लाख के करीब है. अनुसूचित जाति के कामगारों की संख्या 26 फीसदी से अधिक है. ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर के अनुसार कोरोना संकट के समय में हिमाचल की ग्रामीण जनता को मनरेगा से सहारा मिला है. केंद्र सरकार ने भी प्रदेश की मदद की है.
ग्रामीणों में उत्साह
हिमाचल के मंडी जिला के ग्रामीणों ने मनरेगा को वरदान बताया है. करसोग उपमंडल के जगतराम ने बताया कि सिंचाई के लिए वॉटर टैंक बनाने को लेकर सरकार से समय पर पैसा मिला. इसी तरह ग्रामीण महिला गनी देवी ने बताया कि उन्हें पहले पैसे के लिए घर के पुरुष सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ता था. मनरेगा में जब रास्ते बनाने व खेतों में काम करने के लिए अवसर आया तो अब हमें भी दिहाड़ी लगाने पर पैसा मिलता है.
युवाओं को मनरेगा के तहत मिला रोजगार
इसी तरह हमीरपुर जिला के रहने वाले रवि कुमार दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते थे. लॉकडाउन लगने पर मजबूरी में गांव आना पड़ा. रोजगार का साधन कोई न था तो मनरेगा का जॉब कार्ड बनवाया. रवि का कहना है कि उन्हें मनरेगा में काम मिला और घर का खर्च आसानी से चल रहा है.
वर्ष 2019 और 2020 में मनरेगा के तहत दिहाड़ी का विवरण