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Himachal Rivers: नदियों में हर साल जमा हो रही 7.5 करोड़ टन रेत-बजरी, खनन से निकलती है करीब 10 फीसदी मात्रा

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Published : Aug 3, 2023, 8:54 AM IST

हिमाचल की नदियों में हर साल करीब 7.5 करोड़ टन रेत बजरी जमा होता है, लेकिन खनन के माध्यम से महज 10 फिसदी ही रेत बजरी को निकाला जा रहा है. ऐसे में नदी का स्तर ऊपर उठने से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है. ये बाते उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कही. उन्होंने कहा इसके लिए सरकार हाई पावर टेक्निकल कमेटी गठित करेगी. पढ़िए पूरी खबर...(Himachal Rivers)

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शिमला: हिमाचल की नदियों ने इस साल भारी तबाही मचाई है. कई जगह सड़कें बह गई हैं और कई जगह मकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भी खतरा पहुंचा है. हिमाचल में इस बार हुई भारी बारिश की वजह हजारों करोड़ों का नुकसान हुआ है. वहीं, प्रदेश की नदियों में रेत और बजरी जमा होने से रिवर बेड लेवल भी हर साल बढ़ता जा रहा है.

हर साल नदियों में 7.5 करोड़ टन रेत-बिजरी जमा: एक अनुमान के अनुसार हिमाचल के नदियों में हर साल करीब 7.5 करोड़ टन रेत-बजरी जमा होती है. जबकि इसमें से करीब 10 फीसदी ही खनन के माध्यम से रेत और बजरी निकाली जाती है. बाकी करीब 6.5 करोड़ टन की रेत व बजरी हर साल इन नदियों में जमा हो रही है. ऐसे में भारी बारिश के दौरान नदियां अपने किनारों पर भारी तबाही मचाती है. प्रदेश में सतलुज, ब्यास, रावी, यमुना के साथ-साथ अन्य पब्बर आदि छोटी नदियां हैं जहां पर रेत व बजरी जमा हो रही हैं.

हाई पावर टेक्निकल कमेटी गठित करेगी सरकार: उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कहा हिमाचल में नदी नालों में 7.50 करोड़ टन हर साल पत्थर, रेत व मिट्टी आता है, जिसमें करीब 69 लाख टन ही रेत व बजरी ही निकालते हैं, जो दस फीसदी भी नहीं. कुछ छिटपुट गैर कानूनी माइनिंग को मिलाकर भी नदियों से 15 फीसदी से कम रेत-बजरी निकाल पा रहे हैं. इस तरह करीब 6.50 करोड़ टन रेत व बजरी हर साल नदियों में जमा हो रहा है. इसको निकालना जरूरी है और इसके लिए एक हाई पावर तकनीकी कमेटी का गठन जल्द ही किया जाएगा. इसमें आईआईटी मंडी, रुड़की और खड़कपुर के विशेषज्ञों को लिया जाएगा.

केंद्रीय मंत्री ने भी इस बारे में दिए सुझाव: केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने हिमाचल दौरे में इस बारे में सुझाव दिए हैं. नितिन गडकरी ने माना है कि नदियों के किनारे के क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ है. इसका एक बड़ा कारण नदियों में रेत व बजरी का इकट्ठा होना है. केंद्रीय मंत्री ने कहा इसके लिए ब्यास नदी को दो तीन मीटर नीचे करने के साथ ही इसके किनारों को भी मजबूत करने की जरूरत है.

नदियों को स्तर रेत बजरी के कारण ऊपर हुआ: हर्षवर्धन चौहान ने कहा बीते 10 सालों में प्रदेश की नदियों का स्तर 10 से 15 मीटर रेत व बजरी जमा होने के कारण उठ गया है, इससे इनके किनारे के आसपास बारिश में नुकसान हो रहा है. इसके चलते इन नदियों के किनारे रेत बजरी को निकालना होगा. नदियों के बोल्डर और पत्थर का इस्तेमाल एनएच के लिए किया जा सकता है. अगर नदियों में जमा रेत व बजरी को निकालेंगे तो इससे उतना नुकसान नहीं होगा.

एफसीए की मंजूरी नहीं मिलने से नहीं हो पा रहा खनन: हर्षवर्धन चौहान ने कहा नदियों के किनारों में खनन की नीलामी सरकार द्वारा की जा रही है, लेकिन इसको लेकर समय पर एफसीए की मंजूरी नहीं मिल रही. उन्होंने कहा हिमाचल में सरकारी भूमि पर एफसीए की क्लीयरेंस के बिना एक पत्थर नहीं निकाल सकते. ऐसे में एफसीए की मंजूरी केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय से लेना जरूरी है. उन्होंने कहा हिमाचल में पिछले छह सालो में नदियों के किनारे करीब 103 करोड़ की 232 क्षेत्रों की नीलामी उद्योग विभाग ने की थी, लेकिन उनमें से केवल 28 ही पर काम शुरू हो पाया हैं. इस तरह 204 एफसीए की क्लीयरेंस की वजह से रुके हुए हैं. उन्होंने कहा अगर रिवर बेल्ट की नीलामी की जाती है तो, इससे 200-250 करोड़ राजस्व मिलेगा मिलेगा.

हिमाचल में अवैध खनन बड़ा मुद्दा: गौरतलब है कि प्रदेश में अवैध खनन एक बहुत बड़ा मुद्दा है. नदियों के किनारे अवैध खनन के आरोप लगभग सभी सरकारों पर लगते रहे हैं. हालांकि हर्षवर्धन चौहान ने कहा गैर कानूनी खनन छिटपुट हर सरकारों के समय में होता है. इसके बावजूद भी 15 फीसदी से कम खनन नदी किनारों में ही हर साल पाता है. रीवर बेल्ट में जमा होने वाले रेत व बजरी भारी बारिश में नुकसान का कारण बनता है.

ये भी पढ़ें: Ram Subhag Singh Controversy: राम सुभग सिंह के बचाव में उतरे अनिरुद्ध और विक्रमादित्य, जयराम पर लगाया ओछी राजनीति करने का आरोप

शिमला: हिमाचल की नदियों ने इस साल भारी तबाही मचाई है. कई जगह सड़कें बह गई हैं और कई जगह मकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भी खतरा पहुंचा है. हिमाचल में इस बार हुई भारी बारिश की वजह हजारों करोड़ों का नुकसान हुआ है. वहीं, प्रदेश की नदियों में रेत और बजरी जमा होने से रिवर बेड लेवल भी हर साल बढ़ता जा रहा है.

हर साल नदियों में 7.5 करोड़ टन रेत-बिजरी जमा: एक अनुमान के अनुसार हिमाचल के नदियों में हर साल करीब 7.5 करोड़ टन रेत-बजरी जमा होती है. जबकि इसमें से करीब 10 फीसदी ही खनन के माध्यम से रेत और बजरी निकाली जाती है. बाकी करीब 6.5 करोड़ टन की रेत व बजरी हर साल इन नदियों में जमा हो रही है. ऐसे में भारी बारिश के दौरान नदियां अपने किनारों पर भारी तबाही मचाती है. प्रदेश में सतलुज, ब्यास, रावी, यमुना के साथ-साथ अन्य पब्बर आदि छोटी नदियां हैं जहां पर रेत व बजरी जमा हो रही हैं.

हाई पावर टेक्निकल कमेटी गठित करेगी सरकार: उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कहा हिमाचल में नदी नालों में 7.50 करोड़ टन हर साल पत्थर, रेत व मिट्टी आता है, जिसमें करीब 69 लाख टन ही रेत व बजरी ही निकालते हैं, जो दस फीसदी भी नहीं. कुछ छिटपुट गैर कानूनी माइनिंग को मिलाकर भी नदियों से 15 फीसदी से कम रेत-बजरी निकाल पा रहे हैं. इस तरह करीब 6.50 करोड़ टन रेत व बजरी हर साल नदियों में जमा हो रहा है. इसको निकालना जरूरी है और इसके लिए एक हाई पावर तकनीकी कमेटी का गठन जल्द ही किया जाएगा. इसमें आईआईटी मंडी, रुड़की और खड़कपुर के विशेषज्ञों को लिया जाएगा.

केंद्रीय मंत्री ने भी इस बारे में दिए सुझाव: केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने हिमाचल दौरे में इस बारे में सुझाव दिए हैं. नितिन गडकरी ने माना है कि नदियों के किनारे के क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ है. इसका एक बड़ा कारण नदियों में रेत व बजरी का इकट्ठा होना है. केंद्रीय मंत्री ने कहा इसके लिए ब्यास नदी को दो तीन मीटर नीचे करने के साथ ही इसके किनारों को भी मजबूत करने की जरूरत है.

नदियों को स्तर रेत बजरी के कारण ऊपर हुआ: हर्षवर्धन चौहान ने कहा बीते 10 सालों में प्रदेश की नदियों का स्तर 10 से 15 मीटर रेत व बजरी जमा होने के कारण उठ गया है, इससे इनके किनारे के आसपास बारिश में नुकसान हो रहा है. इसके चलते इन नदियों के किनारे रेत बजरी को निकालना होगा. नदियों के बोल्डर और पत्थर का इस्तेमाल एनएच के लिए किया जा सकता है. अगर नदियों में जमा रेत व बजरी को निकालेंगे तो इससे उतना नुकसान नहीं होगा.

एफसीए की मंजूरी नहीं मिलने से नहीं हो पा रहा खनन: हर्षवर्धन चौहान ने कहा नदियों के किनारों में खनन की नीलामी सरकार द्वारा की जा रही है, लेकिन इसको लेकर समय पर एफसीए की मंजूरी नहीं मिल रही. उन्होंने कहा हिमाचल में सरकारी भूमि पर एफसीए की क्लीयरेंस के बिना एक पत्थर नहीं निकाल सकते. ऐसे में एफसीए की मंजूरी केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय से लेना जरूरी है. उन्होंने कहा हिमाचल में पिछले छह सालो में नदियों के किनारे करीब 103 करोड़ की 232 क्षेत्रों की नीलामी उद्योग विभाग ने की थी, लेकिन उनमें से केवल 28 ही पर काम शुरू हो पाया हैं. इस तरह 204 एफसीए की क्लीयरेंस की वजह से रुके हुए हैं. उन्होंने कहा अगर रिवर बेल्ट की नीलामी की जाती है तो, इससे 200-250 करोड़ राजस्व मिलेगा मिलेगा.

हिमाचल में अवैध खनन बड़ा मुद्दा: गौरतलब है कि प्रदेश में अवैध खनन एक बहुत बड़ा मुद्दा है. नदियों के किनारे अवैध खनन के आरोप लगभग सभी सरकारों पर लगते रहे हैं. हालांकि हर्षवर्धन चौहान ने कहा गैर कानूनी खनन छिटपुट हर सरकारों के समय में होता है. इसके बावजूद भी 15 फीसदी से कम खनन नदी किनारों में ही हर साल पाता है. रीवर बेल्ट में जमा होने वाले रेत व बजरी भारी बारिश में नुकसान का कारण बनता है.

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