मंडी : जिला के करसोग उपमंडल की पांगणा उपतहसील के पंजयाणु गांव ने सभी प्रदेश भर के गावों के लिए एक शानदार मिसाल पेश की है. पंजयाणु में एक- दो स्थानों पर प्रयोग के तौर पर शुरू हुई शून्य लागत प्राकृतिक खेती अब 35 से 40 बीघा जमीन पर की जा रही है.
गांव के 30 परिवार स्वेच्छा से इसे अपना चुके हैं. धीरे धीरे पूरा गांव सौ फीसदी प्राकृतिक खेती वाला गांव बनने की राह पर अग्रसर है. खास बात है कि गांव में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका महिलाएं निभा रही हैं. पंजयाणु गांव के लोगों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने में इस गांव की निवासी लीना शर्मा का बड़ा योगदान है. उन्होंने खुद उदाहरण पेश कर लोगों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित किया है.
प्राकृतिक खेती के लाभ देख कर गांव की करीब 30 महिलाओं ने इसे अपनाया है. गांव में अब ज्यादातर लोग पहाड़ी गाय पालते हैं. बता दें कि गांव की एक महिला भुवनेश्वरी देवी ने गोबर व गोमूत्र के लिए एक लावारिस देसी गाय को अपने पास रखा है.
प्राकृतिक खेती अपनाने वाले पंजयाणु गांव के एक किसान महेंद्र शर्मा का कहना हैं कि गांव में मुख्य फसल के साथ मूंगफली, लहसुन, मिर्च, दालें, बीन्स, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, अलसी, धनिया की खेती की जा रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है. इस खेती में इसमें बीज कम लगता है, उत्पादकता ज्यादा है.
करसोग के कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि पंचयाणु गांव की सफलता की देखादेखी आसपास के गांव थाच, फेगल और घण्डियारा भी शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे आए हैं. क्षेत्र के करीब 90 लोगों ने प्राकृतिक खेती सीखने के लिए प्रशिक्षण लिया है.
क्या कहते हैं जिलाधीश
जिलाधीश ऋग्वेद ठाकुर का कहना है कि मंडी जिला में शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्ररित किया जा रहा है. इस साल जिला के 3 हजार किसानों ने शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाई है. जहर मुक्त खेती से भंयकर बीमारियों से बचा जा सकता है.
सरकार दे रही सब्सिडी
कृषि विभाग मंडी के आत्मा परियोजना के उपनिदेशक शेर सिंह ने कहा कि हिमाचल सरकार शून्य लागत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है. किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं. 250 लीटर के ड्रम लेने पर 75 प्रतिशत सब्सिडी, पशुशाला में फर्श डालने, गोबर के चैंबर के लिए आठ हजार, संसाधन भंडार पर 10 हजार रुपये के अनुदान का प्रावधान है.