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1950 में मंडी को बनाया गया था नगर पालिका, स्वामी कृष्णनंद पहली बार चुनाव जीतकर बने थे अध्यक्ष

किसी समय नगर पालिका रही मंडी को अक्तूबर 2020 में नगर निगम का दर्जा दिया गया था. वहीं, अब आगामी सात अप्रैल को प्रदेश में नगर निगम के चुनाव होंगे जिसके लिए प्रत्याशियों की सूची जारी हो चुकी है. सात अप्रैल को सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक चुनाव के लिए मतदान होगा जिसके बाद परिणाम घोषित होंगे.

मंडी (फाइल)
मंडी (फाइल)
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Published : Mar 31, 2021, 2:35 PM IST

Updated : Mar 31, 2021, 6:50 PM IST

मंडी: प्रदेश में सात अप्रैल को चार नगर निगमों मंडी, पालमपुर, सोलन और धर्मशाला में चुनाव होंगे. चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतार दिए हैं. मंडी नगर निगम की बात करें तो कुल 75 उम्मीदवार मंडी नगर निगम से चुनावी रण में हैं.

मंडी निगम का इतिहास

प्रदेश की सबसे पुराने स्थानीय निकायों में शुमार मंडी को 1950 में बनाया गया था. उस समय मंडी नगर पालिका थी और 1952 में पहली बार मतदान हुआ. स्वामी कृष्णानंद पहली बार चुनाव जीतकर यहां अध्यक्ष बने थे. साल 1994 में नगर पालिका से मंडी को नगर परिषद बनाया गया. इसके बाद 2009 में मंडी नगर परिषद को नगर निगम बनाने की कवायद शुरू हुई, जिसके बाद अक्टूबर 2020 में नगर परिषद मंडी को नगर निगम का दर्जा दिया गया.

वीडियो रिपोर्ट

स्वामी कृष्णनंद पहली बार बने थे अध्यक्ष

साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार केके नूतन बताते हैं कि 1950 में मंडी नगर पालिका बनी और उस समय यहां 14 वार्ड थे. 1952 के चुनावों में स्वतंत्रता सेनानी स्वामी कृष्णनंद ने पहली बार शहर की सरकार के चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने. केके नूतन का कहना है कि इन चुनावों में उन्होंने भी सक्रिय भूमिका निभाई थी. मंडी की जनता जातिगत और समुदाय के समीकरण में बंटी है और चुनावों में उतरे प्रत्याशी को इसी आधार पर वोट डाले जाते हैं.

चुनाव में भाजपा को हो सकता है फायदा

वरिष्ठ पत्रकार केके नूतन का कहना है कि मंडी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह जिला है और मुख्यमंत्री मंडी से अधिक लगाव भी रखते हैं. उन्होंने कहा कि इस समय केंद्र और प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जिसका कुछ फायदा नगर निगम चुनावों में भाजपा को मिल सकता है.

मंडी में कांग्रेस का रहा है बोलबाला

वरिष्ठ पत्रकार और हिमाचल गौरव से सम्मानित बीरबल शर्मा ने कहा कि मंडी नगर निगम बनने से पूर्व नगर परिषद पर अधिकतर समय कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. मंडी की राजनीति पंडित सुखराम और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है. पूर्व यूपीए सरकार के समय में पंडित सुखराम केंद्रीय संचार मंत्री रह चुके हैं. वहीं, अनिल शर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम के बेटे हैं और वे तीन बार कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मंडी सदर विधायक भी रह चुके हैं. उन्होंने कहा कि नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों को टिकट आवंटन में सुखराम परिवार की पूरी दखल रही है और परिवार की अनुशंसा के आधार पर ही टिकट आवंटन हुआ है.

लंबे इंतजार के बाद मिला नगर निगम का दर्जा

गौरतलब है कि 2009 में नगर परिषद मंडी को नगर निगम का दर्जा देने की बात कही गई थी. 11 साल बाद यह कवायद सिरे चढ़ी है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने गृह जिला मुख्यालय को ये सौगात दी है. ऐसे में भाजपा नगर निगम मंडी पर अपना कब्जा चाह रही है, वहीं कांग्रेस भी इन चुनावों को जीतने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

ये भी पढे़ं- सत्ता का सेमीफाइनल: दाव पर साख, क्या नए नगर निगम फतह कर पाएगी जयराम सरकार

मंडी: प्रदेश में सात अप्रैल को चार नगर निगमों मंडी, पालमपुर, सोलन और धर्मशाला में चुनाव होंगे. चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतार दिए हैं. मंडी नगर निगम की बात करें तो कुल 75 उम्मीदवार मंडी नगर निगम से चुनावी रण में हैं.

मंडी निगम का इतिहास

प्रदेश की सबसे पुराने स्थानीय निकायों में शुमार मंडी को 1950 में बनाया गया था. उस समय मंडी नगर पालिका थी और 1952 में पहली बार मतदान हुआ. स्वामी कृष्णानंद पहली बार चुनाव जीतकर यहां अध्यक्ष बने थे. साल 1994 में नगर पालिका से मंडी को नगर परिषद बनाया गया. इसके बाद 2009 में मंडी नगर परिषद को नगर निगम बनाने की कवायद शुरू हुई, जिसके बाद अक्टूबर 2020 में नगर परिषद मंडी को नगर निगम का दर्जा दिया गया.

वीडियो रिपोर्ट

स्वामी कृष्णनंद पहली बार बने थे अध्यक्ष

साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार केके नूतन बताते हैं कि 1950 में मंडी नगर पालिका बनी और उस समय यहां 14 वार्ड थे. 1952 के चुनावों में स्वतंत्रता सेनानी स्वामी कृष्णनंद ने पहली बार शहर की सरकार के चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने. केके नूतन का कहना है कि इन चुनावों में उन्होंने भी सक्रिय भूमिका निभाई थी. मंडी की जनता जातिगत और समुदाय के समीकरण में बंटी है और चुनावों में उतरे प्रत्याशी को इसी आधार पर वोट डाले जाते हैं.

चुनाव में भाजपा को हो सकता है फायदा

वरिष्ठ पत्रकार केके नूतन का कहना है कि मंडी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह जिला है और मुख्यमंत्री मंडी से अधिक लगाव भी रखते हैं. उन्होंने कहा कि इस समय केंद्र और प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जिसका कुछ फायदा नगर निगम चुनावों में भाजपा को मिल सकता है.

मंडी में कांग्रेस का रहा है बोलबाला

वरिष्ठ पत्रकार और हिमाचल गौरव से सम्मानित बीरबल शर्मा ने कहा कि मंडी नगर निगम बनने से पूर्व नगर परिषद पर अधिकतर समय कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. मंडी की राजनीति पंडित सुखराम और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है. पूर्व यूपीए सरकार के समय में पंडित सुखराम केंद्रीय संचार मंत्री रह चुके हैं. वहीं, अनिल शर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम के बेटे हैं और वे तीन बार कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मंडी सदर विधायक भी रह चुके हैं. उन्होंने कहा कि नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों को टिकट आवंटन में सुखराम परिवार की पूरी दखल रही है और परिवार की अनुशंसा के आधार पर ही टिकट आवंटन हुआ है.

लंबे इंतजार के बाद मिला नगर निगम का दर्जा

गौरतलब है कि 2009 में नगर परिषद मंडी को नगर निगम का दर्जा देने की बात कही गई थी. 11 साल बाद यह कवायद सिरे चढ़ी है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने गृह जिला मुख्यालय को ये सौगात दी है. ऐसे में भाजपा नगर निगम मंडी पर अपना कब्जा चाह रही है, वहीं कांग्रेस भी इन चुनावों को जीतने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

ये भी पढे़ं- सत्ता का सेमीफाइनल: दाव पर साख, क्या नए नगर निगम फतह कर पाएगी जयराम सरकार

Last Updated : Mar 31, 2021, 6:50 PM IST
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