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कुलदेवता ने ऐसे तोड़ा था मंडी के राजा का अहंकार, 'खारा' को शिवरात्रि महोत्सव में लाने की थी जिद - सांस्कृतिक राजधानी मंडी

छोटीकाशी मंडी के अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की परंपरा और इससे जुड़े देवी देवताओं का इतिहास कई तथ्यों और कहानियों को अपने आप में संजोए हुए हैं. रियासतों के दौर में राजा और देवता की परीक्षा की कहानियां आज भी प्रदेश में प्रचलित हैं.

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Published : Mar 6, 2019, 1:47 PM IST

मंडी: छोटीकाशी मंडी के अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की परंपरा और इससे जुड़े देवी देवताओं का इतिहास कई तथ्यों और कहानियों को अपने आप में संजोए हुए हैं. रियासतों के दौर में राजा और देवता की परीक्षा की कहानियां आज भी प्रदेश में प्रचलित हैं.छोटी काशी मंडी को हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी का दर्जा भी प्राप्त है. यहां पर देव आस्था का अपना एक महत्व है. मंडी रियासत के कुलदेवता देव पराशर ऋषि और राजा की परीक्षा की एक कहानी बेहद ही रोचक है.

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दरअसल कुलदेवता पराशर ऋषि के रथ को जिसे कि स्थानीय भाषा में खारा कहा जाता है, शिवरात्रि महोत्सव में लाने के लिए जिद की, लेकिन देवता के गुरों ने इससे मना कर दिया. तर्क था कि शिवरात्रि महोत्सव में देवता का सूरज पंख ही शिरकत करता था. रथ सिर्फ दो ही उपलक्ष में अपने मूल स्थान से बाहर निकलता है, लेकिन राजा ने इस तर्क को नहीं माना और वह जिद पर अड़ गए की देवता के रथ को शिवरात्रि महोत्सव में आना होगा. अंत में जब राजा और देवता के गुरों की सहमति ना बनी तो कुलदेवता पराशर ऋषि को परीक्षा से गुजरना पड़ा.
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राजा ने शर्त रखी कि सोने की एक मूर्ति गुरु की तस्वीर यदि सुबह तक चांदी में बदल गई तो वह अपनी जिद छोड़ देंगे, लेकिन यदि ये सोने की ही रही तो देवता के रथ को महोत्सव में शिरकत करनी होगी. देव पराशर ऋषि ने राजा के शर्त को मान लिया. इससे देव के कारदार परेशान हो गए, लेकिन अगली सुबह ही जब तस्वीर को देखा गया तो ये चांदी में तब्दील हो गई थी. इस तरह से राजा का हठ टूट गया और सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी इस तरह से ही कायम है. अभी तक कुलदेवता देव पराशर ऋषि के सूरज पंख और छड़ी ही मेले में शिरकत करते हैं. देव पराशर ऋषि के पुजारी अमर सिंह ने बताया कि एक बार मंडी के राजा ने देवता के रथ (खारा) को शिवरात्रि महोत्सव में लाने की जिद कर देवता की परीक्षा ली थी. देव पराशर ऋषि ने इस परीक्षा के दौरान सोने की तस्वीर को चांदी में तब्दील कर दिया था. आज भी तस्वीर रुपी मूर्ति देवता के भंडार में मौजूद है.

मंडी: छोटीकाशी मंडी के अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की परंपरा और इससे जुड़े देवी देवताओं का इतिहास कई तथ्यों और कहानियों को अपने आप में संजोए हुए हैं. रियासतों के दौर में राजा और देवता की परीक्षा की कहानियां आज भी प्रदेश में प्रचलित हैं.छोटी काशी मंडी को हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी का दर्जा भी प्राप्त है. यहां पर देव आस्था का अपना एक महत्व है. मंडी रियासत के कुलदेवता देव पराशर ऋषि और राजा की परीक्षा की एक कहानी बेहद ही रोचक है.

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दरअसल कुलदेवता पराशर ऋषि के रथ को जिसे कि स्थानीय भाषा में खारा कहा जाता है, शिवरात्रि महोत्सव में लाने के लिए जिद की, लेकिन देवता के गुरों ने इससे मना कर दिया. तर्क था कि शिवरात्रि महोत्सव में देवता का सूरज पंख ही शिरकत करता था. रथ सिर्फ दो ही उपलक्ष में अपने मूल स्थान से बाहर निकलता है, लेकिन राजा ने इस तर्क को नहीं माना और वह जिद पर अड़ गए की देवता के रथ को शिवरात्रि महोत्सव में आना होगा. अंत में जब राजा और देवता के गुरों की सहमति ना बनी तो कुलदेवता पराशर ऋषि को परीक्षा से गुजरना पड़ा.
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राजा ने शर्त रखी कि सोने की एक मूर्ति गुरु की तस्वीर यदि सुबह तक चांदी में बदल गई तो वह अपनी जिद छोड़ देंगे, लेकिन यदि ये सोने की ही रही तो देवता के रथ को महोत्सव में शिरकत करनी होगी. देव पराशर ऋषि ने राजा के शर्त को मान लिया. इससे देव के कारदार परेशान हो गए, लेकिन अगली सुबह ही जब तस्वीर को देखा गया तो ये चांदी में तब्दील हो गई थी. इस तरह से राजा का हठ टूट गया और सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी इस तरह से ही कायम है. अभी तक कुलदेवता देव पराशर ऋषि के सूरज पंख और छड़ी ही मेले में शिरकत करते हैं. देव पराशर ऋषि के पुजारी अमर सिंह ने बताया कि एक बार मंडी के राजा ने देवता के रथ (खारा) को शिवरात्रि महोत्सव में लाने की जिद कर देवता की परीक्षा ली थी. देव पराशर ऋषि ने इस परीक्षा के दौरान सोने की तस्वीर को चांदी में तब्दील कर दिया था. आज भी तस्वीर रुपी मूर्ति देवता के भंडार में मौजूद है.
Intro:पराशर ऋषि ने सोने की तस्वीर को चांदी में बदलकर तोड़ दिया था मंडी के राजा का हठ, महाराजा ने अपने कुल देवता की ली थी यह परीक्षा
मंडी.
छोटीकाशी मंडी के अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की परंपरा और इससे जुड़े देवी देवताओं का इतिहास कई तथ्यों और कहानियों को अपने आप में संजोए हुए हैं. रियासतों के दौर में राजा और देवता की परीक्षा की कहानियां आज भी हिमाचल प्रदेश में प्रचलित है. छोटीकाशी मंडी को हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी का दर्जा भी प्राप्त है. यहां पर देव आस्था का अपना एक महत्व है.


Body:मंडी रियासत के कुलदेवता देव पराशर ऋषि और राजा की परीक्षा की एक कहानी बेहद ही रोचक है. दरअसल कुलदेवता पराशर ऋषि के रथ को जिसे कि स्थानीय भाषा में खारा कहा जाता है शिवरात्रि महोत्सव में लाने के लिए ज़िद की। लेकिन देवता के गुरों ने इससे मना कर दिया। तर्क था की शिवरात्रि महोत्सव में देवता का सूरज पंख ही शिरकत करता था। रथ सिर्फ दो ही उपलक्ष में पर अपने मूल स्थान से बाहर निकलता है। लेकिन राजा ने इस तर्क को नहीं माना और वह जिद पर अड़ गए की देवता के रथ को शिवरात्रि महोत्सव में आना होगा। अंत में जब राजा और देवता के गुरों सहमति ना बनी तो कुलदेवता पराशर ऋषि को परीक्षा से गुजरना पड़ा।


Conclusion:राजा ने शर्त रखी कि सोने की एक मूर्ति गुरु की तस्वीर यदि सुबह तक चांदी में बदल गई तो वह अपनी जिद छोड़ देंगे। लेकिन यदि यह सोने की ही रही तो देवता के रथ को महोत्सव में शिरकत करनी होगी। देव पराशर ऋषि ने राजा के शर्त को मान लिया। इससे देव के कारदार चिंतित हो गए लेकिन अगली सुबह ही जब तस्वीर को देखा गया तो यह चांदी में तब्दील हो गई थी। इस तरह से राजा का हठ टूट गया और सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी इस तरह से ही कायम है की अभी तक कुलदेवता देव पराशर ऋषि के सूरज पंख और छड़ी ही मेले में शिरकत करते हैं।

देव पराशर ऋषि के पुजारी अमर सिंह ने बताया कि एक बार मंडी के राजा ने देवता के रथ (खारा) को शिवरात्रि महोत्सव में लाने की ज़िद कर देवता की परीक्षा ली थी. देव पराशर ऋषि ने इस परीक्षा के दौरान सोने की तस्वीर को चांदी में तब्दील कर दिया था. आज भी तस्वीर रुपी है मूर्ति देवता के भंडार में मौजूद है.
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