मंडी: आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने नई रिसर्च की है. रिसर्च के अनुसार आने वाले 100 वर्षों तक भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून कमजोर रहेगा. भारत के चालीस फीसदी हिस्से में कमजोर मानूसन का प्रभाव ज्यादा रहेगा. विशेष रूप से वर्ष 2100 तक भारत के दक्षिण-पश्चिम तटीय और उत्तरी व उत्तरपूर्वी-मध्य भागों पर त्रिवार्षिक मानसून के कमजोर चक्र का गंभीर प्रभाव दिखेगा.
बता दें कि आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज की असिस्टेंट प्रो. डॉ. सरिता आजाद और रिसर्च स्कॉलर प्रवात जेना, सौरभ गर्ग और निखिल राघा ने अपने एक शोध में ये दावा किया है. उन्होंने ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून से बारिश की पीरियॉडिसीटी में आए परिवर्तनों का अध्ययन कर भावी काल चक्र का पुर्वानुमान बताया. ये शोध प्रसिद्ध अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन (एजीयू) पीयर-रिव्यू इंटरनेशनल जर्नल अर्थ एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित किया जा चुका है.
डॉ. सरिता ने बताया कि ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून से बारिश (आईएसएम) के आंकड़ों को प्रॉसेस करने के लिए एल्गोरिदम का शोध किया गया है. इसके तहत एल नीनो सदर्न ऑसिलेशन जैसे वैश्विक जलवायु परिघटनाओं के बारे में उपलब्ध जानकारी भी हासिल हो सकेगी. साथ ही इससे मजबूत और कमजोर मानसून वर्षों की पीरियॉडिसीटी (काल चक्र) का भी पता चलेगा.
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वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सरकार भविष्य को ध्यान में रखकर आगामी नीतियां तैयार कर सकती हैं. उनके बताया कि त्रैवार्षिक उतार-चढ़ाव (ट्रायनियल ऑसिलेशन) के परिवर्तनों के प्रमाण का नीति निर्माता, किसान, जल प्रबंधक आदि उपयोग कर पाएंगे. कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के लिए कमजोर और जोरदार मानसून का कृषि पैदावार और इस तरह अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए ये जरूरी है कि पैटर्न और परिवर्तन की गहरी समझ विकसित कर बेहतर योजना और प्रबंधन करें.
वर्तमान में यह है चुनौती
ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून निसंदेह भारत की जीवन रेखा है. हवा के सालाना चक्र के साथ बारिश का मजबूत चक्र भी ये प्रदान करती है, लेकिन मानसून की स्टीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. हालांकि, ये स्थायी परिघटना है जो हर वर्ष तय समय पर होती है. इससे सालाना बारिश थोड़े समय के लिए कम-ज्यादा होती है और इसके बारे में पूर्वानुमान कठिन रहा है. जो हमारे देश की एक बड़ी चुनौती है.
इस तरह किया शोध
टीम ने 1901 से 2005 के दौरान 1260 महीनों के बारिश के डाटा का इस्तेमाल कर ट्रायनियल ऑसिलेशन का स्पेशियल डिस्ट्रिब्यूशन का परीक्षण किया. उन्होंने तय डाटा का अवलोकन किया और उसके पावर स्पेक्ट्रम का विश्लेषण किया.
भारत के 354 से ज्यादा ग्रिड के आधे से ज्यादा हिस्से में 95 प्रतिशत के साथ 2.85 वर्ष की पीरियॉडिसीटी (काल चक्र) थी. वहीं, रिसर्च टीम ने डेटा का एक सहयोगी फ्रेमवर्क-आधारित सिम्युलेशन, जिसे कपल्ड मॉडल इंटर कंपैरिजन प्रॉजेक्ट (सीएमआईपी) कहा जाता है, में आकलन किया है. आकलनों से पता चला कि ये उतार-चढ़ाव (ऑसिलेशन) वर्ष 2100 तक कमजोर होगा.
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