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IIT मंडी के शोधकर्ताओं का दावा, अगले 100 वर्षों तक कमजोर रहेगा मानसून

आने वाले 100 वर्षों में भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून कमजोर रहेगा. भारत के चालीस फीसदी हिस्से में कमजोर मानूसन का प्रभाव ज्यादा रहेगा. आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसे ने अपने एक शोध में ये दावा किया है.

iit mandi
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Published : Aug 9, 2019, 12:31 PM IST

मंडी: आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने नई रिसर्च की है. रिसर्च के अनुसार आने वाले 100 वर्षों तक भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून कमजोर रहेगा. भारत के चालीस फीसदी हिस्से में कमजोर मानूसन का प्रभाव ज्यादा रहेगा. विशेष रूप से वर्ष 2100 तक भारत के दक्षिण-पश्चिम तटीय और उत्तरी व उत्तरपूर्वी-मध्य भागों पर त्रिवार्षिक मानसून के कमजोर चक्र का गंभीर प्रभाव दिखेगा.

बता दें कि आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज की असिस्टेंट प्रो. डॉ. सरिता आजाद और रिसर्च स्कॉलर प्रवात जेना, सौरभ गर्ग और निखिल राघा ने अपने एक शोध में ये दावा किया है. उन्होंने ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून से बारिश की पीरियॉडिसीटी में आए परिवर्तनों का अध्ययन कर भावी काल चक्र का पुर्वानुमान बताया. ये शोध प्रसिद्ध अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन (एजीयू) पीयर-रिव्यू इंटरनेशनल जर्नल अर्थ एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित किया जा चुका है.

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आईआईटी मंडी के शोधकर्ता

डॉ. सरिता ने बताया कि ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून से बारिश (आईएसएम) के आंकड़ों को प्रॉसेस करने के लिए एल्गोरिदम का शोध किया गया है. इसके तहत एल नीनो सदर्न ऑसिलेशन जैसे वैश्विक जलवायु परिघटनाओं के बारे में उपलब्ध जानकारी भी हासिल हो सकेगी. साथ ही इससे मजबूत और कमजोर मानसून वर्षों की पीरियॉडिसीटी (काल चक्र) का भी पता चलेगा.

ये भी पढ़ें-HRTC बस में नशे की खेप ले जा रहा था युवक, SIU टीम ने ऐसे किया गिरफ्तार

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सरकार भविष्य को ध्यान में रखकर आगामी नीतियां तैयार कर सकती हैं. उनके बताया कि त्रैवार्षिक उतार-चढ़ाव (ट्रायनियल ऑसिलेशन) के परिवर्तनों के प्रमाण का नीति निर्माता, किसान, जल प्रबंधक आदि उपयोग कर पाएंगे. कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के लिए कमजोर और जोरदार मानसून का कृषि पैदावार और इस तरह अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए ये जरूरी है कि पैटर्न और परिवर्तन की गहरी समझ विकसित कर बेहतर योजना और प्रबंधन करें.

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आईआईटी मंडी

वर्तमान में यह है चुनौती
ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून निसंदेह भारत की जीवन रेखा है. हवा के सालाना चक्र के साथ बारिश का मजबूत चक्र भी ये प्रदान करती है, लेकिन मानसून की स्टीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. हालांकि, ये स्थायी परिघटना है जो हर वर्ष तय समय पर होती है. इससे सालाना बारिश थोड़े समय के लिए कम-ज्यादा होती है और इसके बारे में पूर्वानुमान कठिन रहा है. जो हमारे देश की एक बड़ी चुनौती है.

इस तरह किया शोध
टीम ने 1901 से 2005 के दौरान 1260 महीनों के बारिश के डाटा का इस्तेमाल कर ट्रायनियल ऑसिलेशन का स्पेशियल डिस्ट्रिब्यूशन का परीक्षण किया. उन्होंने तय डाटा का अवलोकन किया और उसके पावर स्पेक्ट्रम का विश्लेषण किया.

भारत के 354 से ज्यादा ग्रिड के आधे से ज्यादा हिस्से में 95 प्रतिशत के साथ 2.85 वर्ष की पीरियॉडिसीटी (काल चक्र) थी. वहीं, रिसर्च टीम ने डेटा का एक सहयोगी फ्रेमवर्क-आधारित सिम्युलेशन, जिसे कपल्ड मॉडल इंटर कंपैरिजन प्रॉजेक्ट (सीएमआईपी) कहा जाता है, में आकलन किया है. आकलनों से पता चला कि ये उतार-चढ़ाव (ऑसिलेशन) वर्ष 2100 तक कमजोर होगा.

ये भी पढ़ें-हिमाचल के किले: देश की सबसे पुरानी धरोहर कांगड़ा किला, महाभारत में भी है इसका उल्लेख

मंडी: आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने नई रिसर्च की है. रिसर्च के अनुसार आने वाले 100 वर्षों तक भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून कमजोर रहेगा. भारत के चालीस फीसदी हिस्से में कमजोर मानूसन का प्रभाव ज्यादा रहेगा. विशेष रूप से वर्ष 2100 तक भारत के दक्षिण-पश्चिम तटीय और उत्तरी व उत्तरपूर्वी-मध्य भागों पर त्रिवार्षिक मानसून के कमजोर चक्र का गंभीर प्रभाव दिखेगा.

बता दें कि आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज की असिस्टेंट प्रो. डॉ. सरिता आजाद और रिसर्च स्कॉलर प्रवात जेना, सौरभ गर्ग और निखिल राघा ने अपने एक शोध में ये दावा किया है. उन्होंने ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून से बारिश की पीरियॉडिसीटी में आए परिवर्तनों का अध्ययन कर भावी काल चक्र का पुर्वानुमान बताया. ये शोध प्रसिद्ध अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन (एजीयू) पीयर-रिव्यू इंटरनेशनल जर्नल अर्थ एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित किया जा चुका है.

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आईआईटी मंडी के शोधकर्ता

डॉ. सरिता ने बताया कि ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून से बारिश (आईएसएम) के आंकड़ों को प्रॉसेस करने के लिए एल्गोरिदम का शोध किया गया है. इसके तहत एल नीनो सदर्न ऑसिलेशन जैसे वैश्विक जलवायु परिघटनाओं के बारे में उपलब्ध जानकारी भी हासिल हो सकेगी. साथ ही इससे मजबूत और कमजोर मानसून वर्षों की पीरियॉडिसीटी (काल चक्र) का भी पता चलेगा.

ये भी पढ़ें-HRTC बस में नशे की खेप ले जा रहा था युवक, SIU टीम ने ऐसे किया गिरफ्तार

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सरकार भविष्य को ध्यान में रखकर आगामी नीतियां तैयार कर सकती हैं. उनके बताया कि त्रैवार्षिक उतार-चढ़ाव (ट्रायनियल ऑसिलेशन) के परिवर्तनों के प्रमाण का नीति निर्माता, किसान, जल प्रबंधक आदि उपयोग कर पाएंगे. कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के लिए कमजोर और जोरदार मानसून का कृषि पैदावार और इस तरह अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए ये जरूरी है कि पैटर्न और परिवर्तन की गहरी समझ विकसित कर बेहतर योजना और प्रबंधन करें.

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आईआईटी मंडी

वर्तमान में यह है चुनौती
ग्रीष्मकालीन भारतीय मानसून निसंदेह भारत की जीवन रेखा है. हवा के सालाना चक्र के साथ बारिश का मजबूत चक्र भी ये प्रदान करती है, लेकिन मानसून की स्टीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. हालांकि, ये स्थायी परिघटना है जो हर वर्ष तय समय पर होती है. इससे सालाना बारिश थोड़े समय के लिए कम-ज्यादा होती है और इसके बारे में पूर्वानुमान कठिन रहा है. जो हमारे देश की एक बड़ी चुनौती है.

इस तरह किया शोध
टीम ने 1901 से 2005 के दौरान 1260 महीनों के बारिश के डाटा का इस्तेमाल कर ट्रायनियल ऑसिलेशन का स्पेशियल डिस्ट्रिब्यूशन का परीक्षण किया. उन्होंने तय डाटा का अवलोकन किया और उसके पावर स्पेक्ट्रम का विश्लेषण किया.

भारत के 354 से ज्यादा ग्रिड के आधे से ज्यादा हिस्से में 95 प्रतिशत के साथ 2.85 वर्ष की पीरियॉडिसीटी (काल चक्र) थी. वहीं, रिसर्च टीम ने डेटा का एक सहयोगी फ्रेमवर्क-आधारित सिम्युलेशन, जिसे कपल्ड मॉडल इंटर कंपैरिजन प्रॉजेक्ट (सीएमआईपी) कहा जाता है, में आकलन किया है. आकलनों से पता चला कि ये उतार-चढ़ाव (ऑसिलेशन) वर्ष 2100 तक कमजोर होगा.

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Intro:मंडी : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं ने 100 वर्षों के ग्रीष्मकालीन भारतीय माॅनसून से बारिश (आईएसएम) के आंकड़ों को प्राॅसेस करने के लिए एल्गोरिद्म का विकास किया है। इसके तहत एल नीनो सदर्न ऑसिलेशन जैसे वैश्विक जलवायु परिघटनाओं के बारे में उपलब्ध जानकारी का भी ध्यान रखा जाएगा। इससे मजबूत और कमजोर माॅनसून वर्षों की पीरियडीसीटी (काल चक्र) का पता चलेगा।Body:आईआईटी मंडी के स्‍कूल ऑफ बेसिक साइंसेज की एसिस्‍टेंट प्रोफेसर डाॅ. सरिता आजाद ने आईआईटी मंडी के रिसर्च स्काॅलरों प्रवात जेना, सौरभ गर्ग और निखिल राघा के साथ मिल कर यह शोध किया। उन्हाेंने ग्रीष्मकालीन भारतीय माॅनसून से बारिश की पीरियडीसीटी में आए परिवर्तनों का अध्ययन किया और इस डाटा के आधार पर भावी काल चक्र का पुर्वानुमान बताया। यह शोध प्रसिद्ध अमेरिकी जीयोफिजिकल यूनियन (एजीयू) पीयर-रिव्यू इंटरनेशनल जर्नल अर्थ एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित किया गया। ग्रीष्मकालीन भारतीय माॅनसून जो हवा के सालाना चक्र के साथ बारिश का मजबूत चक्र है निस्संदेह भारत की जीवन रेखा है। हालांकि माॅनसून एक स्थायी परिघटना है जो हर वर्ष नियत समय पर होती है पर इससे सालाना बारिश थोड़े समय के लिए कम-ज्यादा होती है और इसके बारे में पूर्वानुमान कठिन रहा है जो हमारे देश की एक बड़ी चुनौती है। डा. सरिता आजाद और उनकी टीम के एल्गोरिद्म से जोरदार बारिश के बारे में सटीक पूर्वानुमान मिलेगा। इसके तहत ‘ट्रायनियल ऑसिलेशन पीरियड’ (त्रैवार्षिक उतार-चढ़ाव) और ईएनएसओ जैसे अन्य कारकों पर भी विचार किया जाएगा। प्रवात जेना ने ग्रीष्मकालीन भारतीय माॅनसून में परिवर्तनों के विश्लेषण के लिए एल्गोरिद्म विकसित किया है। यह देश के अधिकांश हिस्सों (41 प्रतिशत क्षेत्र) के लिए बारिश की घटती तीव्रता की पूर्व सूचना देता है। टीम ने 1901 से 2005 के दौरान 1260 महीनों के बारिश के डाटा का इस्तेमाल कर ट्रायनियल ऑसिलेशन का स्पेशियल डिस्ट्रिब्यूशन का परीक्षण किया। उन्होंने जिस डाटा का अवलोकन किया उसके पावर स्पेक्ट्रम का विश्लेषण किया और भारत के 354 से अधिक ग्रिड के आधे से अधिक हिस्से में 95 प्रतिशत आत्मविश्वावस के साथ 2.85 वर्ष की पीरियडिसीटी (काल चक्र) का प्रदर्शन किया।
रिसर्च टीम ने डेटा का एक सहयोगी फ्रेमवर्क-आधारित साइम्युलेशन, जिसे कपल्ड माॅडल इंटरकम्पैरिजन प्राॅजेक्ट (सीएमआईपी) कहा जाता है, में आकलन किया है। आकलनों से पता चला कि यह उतार-चढ़ाव (ऑसिलेशन) वर्ष 2100 तक कमजोर होगा। शोधों से पता चला है कि ईएनएसओ का काल-चक्र ही कम हो रहा है, जिसका कारण संभवतः ग्लोबल वार्मिंग है, और भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के प्रबल व कमजोर काल-चक्र पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। अपनी खोजों के परिणामों के महत्व पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रवत जेना ने कहा, ‘‘खेती और जल संसाधन प्रबंधन पर विशेष रूप से भारत के दक्षिण-पश्चिम तटीय और उत्तरी और उत्तरपूर्वी-मध्य भागों पर त्रैवार्षिक मानसून के कमजोर चक्र का गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

Conclusion:त्रैवार्षिक उतार-चढ़ाव (ट्रायनियल ऑसिलेशन) के परिवर्तनों के प्रमाण का नीति निर्माता, किसान, जल प्रबंधक आदि उपयोग कर पाएंगे। कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के लिए कमजोर और जोरदार माॅनसून का कृषि पैदावार और इस तरह अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए यह जरूरी है कि हम पैटर्न और परिवर्तन की गहरी समझ विकसित कर बेहतर योजना और प्रबंधन करें।
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