मंडी: जाली दस्तावेज के आधार पर अवार्ड की राशि गबन करने के मामले में मंडी जिला की अदालत ने आरोपी को दोषी करार दिया. साथ ही मामले में कोर्ट ने दोषी को 5 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई है. इसके अलावा कोर्ट ने 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. वहीं, जुर्माना की राशि अदा नहीं करने पर दोषी को एक साल अतिरिक्त कारावास की सजा काटनी होगी.
मंडी जिला की अदालत ने जाली दस्तावेज तैयार कर क्लेम याचिका की राशि गबन करने के आरोपी नायब नाजिर को 5 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई है. इसी के साथ दोषी को 30 हजार जुर्माना देने के आदेश दिए हैं. वहीं, नायाब नाजिर अगर जुर्माने की राशि अदा न करता है तो उसे एक साल का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एक) की अपीलीय अदालत ने सरकार की ओर से दायर की गई याचिका को स्वीकारते हुए अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को निरस्त करने का फैसला सुनाया है.
अपीलीय अदालत ने इस मामले में नायब नाजिर के पद पर तैनात न्यायिक कर्मी इंदर कुमार वर्मा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 467, 471, 420, 466 और 468 के तहत अभियोग साबित होने पर क्रमशः पांच साल और चार साल का कठोर कारावास और पांच-पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. ये सभी सजाएं एक साथ चलेंगी.
अदालत में दायर अपील के मुताबिक जिला एवं सत्र न्यायाधीश मंडी ने 20 अप्रैल 2007 को जिला पुलिस अधीक्षक के माध्यम से पुलिस को एक पत्र प्रेषित किया था, जिसमें आरोपी के खिलाफ राशि गबन करने का मामला दर्ज करने के लिए कहा था. इस पत्र के मुताबिक मैना देवी बनाम एचआरटीसी मामले में मोटर एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ताओं को दो लाख रुपये का अवार्ड देने का फैसला सुनाया था. याचिकाकर्ताओं में से एक याचिकाकर्ता अवार्ड के समय नाबालिग थी. ऐसे में उसकी राशि को एक एफडीआर के रूप में हिमाचल ग्रामीण बैंक के पास रखा गया था.
कुछ समय बाद याचिकाकर्ता को उनके अधिवक्ता से पता चला कि उसके पैसे को नायब नाजिर इंदर कुमार ने निकाल लिया है. ऐसे में शिकायत मिलने पर जिला एवं सत्र न्यायालय ने नायब नाजिर के खिलाफ जांच करवाई थी. जांच में यह तथ्य सत्यापित हुआ था कि आरोपी नायब नाजिर ने जाली दस्तावेज तैयार करके अवार्ड की राशि का गबन किया है. जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पत्र के आधार पर पुलिस ने मामला दर्ज करके आरोपी के खिलाफ अदालत में अभियोग चलाया था, लेकिन अधीनस्थ न्यायालय ने आरोपी को बरी कर दिया था.
सरकार की ओर से आरोपी को बरी करने के फैसले को अपीलीय अदालत में चुनौती दी गई थी. अपीलीय अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले के रिकॉर्ड से जाहिर होता है कि आरोपी उस समय अदालत में बतौर नायब नाजिर कार्यरत था और न्यायिक कर्मी होने के कारण उसे ईमानदारी, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा का परिचय देना चाहिए था, लेकिन आरोपी ने याचिकाकर्ता को मिली मुआवजा राशि को जाली दस्तावेज बनाकर गबन करने के बहुत गंभीर अपराध को अंजाम दिया है. आरोपी ने संस्थान की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाई है. जिसके कारण दोषी के प्रति नरम रुख नहीं अपनाया जा सकता. ऐसे में अदालत ने दोषी को 5 साल कठोर कारावास की सजा और 30 हजार का जुर्माने का फैसला सुनाया है.