मंडी: हिमाचल प्रदेश में नई सरकार के गठन और सीएम व डिप्टी सीएम के चयन के बाद अब मंत्रिमंडल को लेकर जबरदस्त लॉबिंग चली हुई है. हर कोई चाह रहा है कि उसे मलाईदार महकमे मिले, लेकिन आज हम आपको दो ऐसे मलाईदार महकमों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका कार्यभार संभालने के बाद अधिकतर नेताओं की राजनीतिक चुनावी पारियां ही समाप्त हो गई. यह दो महकमे हैं स्वास्थ्य और आबकारी एवं कराधान. यहां हम यह भी स्पष्ट कर दें कि इन विभागों को एडिशनल तौर पर या फिर सीएम के पास रहने का हम जिक्र नहीं कर रहे, बल्कि विशेषकर विभागीय मंत्री बनने का ही हवाला दे रहे हैं. हमने इस संदर्भ में वर्ष 1998 से लेकर अब तक के आंकड़े जुटाए हैं क्योंकि उससे पहले के अधिकतर नेता अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं. (Health and Excise and Taxation dept in Himachal)
इकलौते नड्डा ही बच पाए, प्रवीण शर्मा फिर लौटकर नहीं आए- 1998 से लेकर 2003 तक भाजपा और हिविकां की गठनबंधन की सरकार थी. इस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे जगत प्रकाश नड्डा. ये इकलौते ऐसे शख्स हैं जो इस विभाग को संभालने के बाद दोबारा चुनाव भी जीते और फिर केंद्र में मंत्री बनने के बाद राजनीति में संगठन के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए हैं. इसी सरकार में आबकारी एवं कराधान मंत्री थे स्व. प्रवीण शर्मा. प्रवीण शर्मा मंत्री रहते अपना चुनाव हारे और उसके बाद फिर कभी चुनावी राजनीति में वापिस नहीं लौट पाए.
रंगीला राम राव का समाप्त हुआ राजनीतिक सफर- वर्ष 2003 से 2007 तक वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार रही. इस सरकार में पहले स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व चंद्रेश कुमारी ने संभाला लेकिन बाद में उनसे यह मंत्रालय ले लिया गया और तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने इसका कार्यभार संभाले रखा. चंद्रेश कुमारी भी इसके बाद प्रदेश की राजनीति में नजर नहीं आई और जोधपुर से सांसद चुनी गई. इसी सरकार में आबकारी एवं कराधान मंत्री थे मंडी जिले के सरकाघाट क्षेत्र के विधायक रंगीला राम राव. रंगीला राम राव ने 2007 में मंत्री रहते चुनाव लड़ा और हार गए. 2012 में भी रंगीला राम राव को हार का सामना करना पड़ा और फिर कभी चुनावी राजनीति में नहीं लौट पाए.
चुनाव से पहले छोड़ दिया था मंत्रीपद, तभी जाकर बचे बिंदल- 2007 से 2012 तक प्रो. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी. इस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे डॉ. राजीव बिंदल, लेकिन राजीव बिंदल को आरोपों के चलते चुनावों से कुछ समय पहले मंत्रीपद से इस्तीफा देना पड़ा. उन्होंने मंत्री रहते चुनाव नहीं लड़ा और चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे. इस सरकार में आबकारी एवं कराधान विभाग का दायित्व खुद सीएम प्रो. प्रेम कुमार धूमल के पास ही था.
कौल सिंह और प्रकाश चौधरी भी नहीं आ सके लौटकर- इसके बाद 2012 से 2017 तक वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार बनी. इस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे कौल सिंह ठाकुर और आबकारी एवं कराधान मंत्री थे प्रकाश चौधरी. यह दोनों ही 2017 में मंत्री रहते अपना चुनाव हार गए. 2022 के चुनावों में इन्हें जीत की पूरी उम्मीद थी, लेकिन मात्र कुछ मतों के अंतर से दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा.
विपिन परमार को मंत्रालय छोड़ने का मिला लाभ, सैजल नहीं बचा पाए लाज- 2017 से 2022 की जयराम ठाकुर सरकार में स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व पहले सुलह के विधायक विपिन परमार ने संभाला, लेकिन आरोपों के चलते उन्हें मंत्रीपद छोड़ना पड़ा और उन्हें विधानसभा का अध्यक्ष बना दिया गया. बतौर विधानसभा अध्यक्ष उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत गए. वहीं, डॉ. राजीव सैजल को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था तो उन्होंने बतौर मंत्री चुनाव लड़ा और हार गए. इस सरकार में आबकारी एवं कराधान विभाग सीएम जयराम ठाकुर के पास ही था.
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