मंडी: हिमाचल प्रदेश के कम पानी वाले इलाकों में जल संग्रहण का सबसे बेहतर साधन खात्रियां(पहाड़ों के अंदर बनी गुफानुमा बाबड़ी) मिटने की कगार पर पहुंच चुकी हैं, लेकिन आईपीएच विभाग ने अब इसे पुर्नजीवित करने का बीड़ा उठाया है. ये खात्रियां हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर और मंडी जिलों में काफी संख्या में देखने को मिलती थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जल संरक्षण के आह्वान के बाद हिमाचल प्रदेश के सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने इन खात्रियों को साफ करने का अभियान छेड़ दिया है. चंगर क्षेत्र में मिटने की कगार पर पहुंच चुकी खातरियों को पुर्नजीवित करने के लिए विभाग ने पूरी योजना बना ली है.
कृष्ण चंद पराशर निवासी धर्मपुर ने कहा कि खात्रियों का पानी पूरी तरह से फिल्टर होकर आता है. खात्री में जमा पानी का साल भर बिना किसी डर से इस्तेमाल किया जा सकता था. इस क्षेत्र में पानी की समस्या इतनी विकराल होती थी कि जिस व्यक्ति ने अपने घर के पास खातरी बनाई होती थी वह उसमें ताला लगाकर रखता था. क्योंकि उन दिनों आभूषणों से ज्यादा डर पानी की चोरी का रहता था.
चंगर क्षेत्रों( सूखाग्रस्त इलाकों) में रियासतकाल से ही पानी की विकराल समस्या रही है. इस समस्या से पार पाने के लिए बुजुर्गों ने एक नायाब तरीका खोजा था. लोग अपने घर के पास मौजूद छोटी-बड़ी पहाड़ी के नीचले हिस्से पर छेनी और हथौड़े की मदद से एक गड्ढा खोदते थे. इसे खात्री कहा जाता है. यह खात्री कई फुट लंबी और गहरी होती थी. इसे बनाने में वर्षों लग जाते थे, क्योंकि इसका निर्माण कार्य काफी बारीकी से करना पड़ता था.
खातरी के तैयार होने पर इसमें बारिश के पानी संग्रहण किया जाता था. बारिश होने पर उस पहाड़ी पर गिरा पानी पूरी तरह से छनकर खातरी में जमा होता जाता था. बरसात के मौसम में जल संग्रहण के बाद इसका साल भर इस्तेमाल किया जाता था.
विश्व के सामने भविष्य में जल संकट सबसे बड़े संकट के रूप में उभरने वाला है. ऐसे में इस तरह के जल स्त्रोत अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं. इसलिए इनका संरक्षण जरूरी है ताकि भविष्य के संकट से पार पाने की अभी से तैयारी की जा सके.