धर्मपुर: जिला मंडी मुख्यालय से करीब 65 किमी. दूरी पर स्थित लघु हरिद्वार में गंगा दशहरा का अपना अलग ही महत्व है. यहां हर वर्ष गंगा दशहरा के मौके पर हजारों की तादात में श्रद्धालू पहुंचकर पूरी रात जागरण करते हैं और सुबह शुभ मुहुर्त में चार बजे से स्नान शुरू कर देते हैं, लेकिन इस बार यहां होने वाला गंगा दशहरा करोना की भेंट चढ़ गया और लोगों की आस्था धरी की धरी रह गई.
कोरोना वायरस के कारण इस बार यहां ना तो भागवत कथा का और ना ही जागरण का आयोजन हो पाया.
इस स्थान का महत्व
दंत कथा के अनुसार पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहां हरिद्वार बनाने का कार्य शुरू किया था और अढ़ाई पौड़ी सोने की तैयार भी कर ली थी, लेकिन सुबह के समय साथ लगते गांव की एक महिला सुबह करीब चार बजे ओखली में धान कूटने लगी और उसकी आवाज जब पांडवों तक पहुंची तो उन्होंने सोचा की सुबह हो गई है और वह अपना कार्य अधूरा छोड़कर वहां से आगे निकल गए. तब से इस स्थान को लघु हरिद्वार के नाम से जाना जाता है.
मान्यता है कि यहां पांडवों ने शिव तपस्या की थी और जो यहां शिवलिंग है वह स्वयंभू शिवलिंग है. श्रद्धालू गंगा स्नान के बाद गंगा माता के मदिंर व नीलकंठ महादेव मदिंर में पूजा अर्चना कर उनका आर्शीवाद लेते हैं और शिवलिंग के दर्शन को भी दूर दूर से लोग यहां पहुंचते हैं.
मान्यता है कि जो लोग अपने परिजनों की अस्थियां हरिद्वार नहीं ले जाते वह यहीं इसी स्थान पर उनका विसर्जन करते हैं और इस बार लॉकडाउन में तो जिन भी लोगों के परिजनों की मौत हुई है उन में से अधिकांश लोगों ने इसी स्थान पर उनकी अस्थियों का विसर्जन किया.
यहां करीब 15 पंचायतों का शमशानघाट है और आज भी लोग अपने परिजनों को यहीं जलाते हैं. धर्म शास्त्रों एवं पुराणों में गंगा दशमी एक ऐसा अनूठा धार्मिक पुण्य दिवस है जो बीते पूर्व दस जन्मों के पापों का नाश करता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ज्येष्ठ शुकल दशमी तिथि को गंगा दशमी मनाये जाने का विधान है. इस दिन को दशहरा नाम से भी जाना जाता है.
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