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एक क्लिक पर जानिए लॉकडाउन में क्यों वरदान साबित हुई सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक - सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक

वैश्विक कोरोना संकट के बीच जहां देश भर के किसान अपनी फसल के लिए परेशान हैं, वहीं करसोग के पजयानु गांव के किसान इस समय सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक अपनाने के कारण कोरोना की मार से बच गए हैं. इस तकनीक से किसानों ने घर पर ही उपलब्ध संसाधनों से जीवामृत, घन जीवामृत सहित कीटनाशकों को तैयार किया. जिस वजह से इन्हें मंडियों में कम दाम मिलने के बाद भी ज्यादा नुकसान नहीं झेलना पड़ रहा है.

natural farming  in karsog
करसोग में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक से किसान खुश
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Published : Apr 26, 2020, 7:42 PM IST

करसोग/मंडीः वैश्विक कोरोना संकट ने भले ही देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी हो, लेकिन करसोग का एक पजयानु गांव ऐसा भी है, जहां एक महीने से जारी लॉकडाउन के बावजूद किसानों की आर्थिक व्यवस्था पटरी से नहीं उतरी है.

कोरोना संकट से मंडियों में किसानों को फसलों के दाम उम्मीद के मुताबिक नहीं मिल रहे हैं. खेती पर लगातार बढ़ रही लागत से किसान पहले ही परेशान हैं. इन सभी दिक्कतों के बीच पजयानु गांव का किसान खुश नजर आ रहे हैं.

natural farming in karsog
करसोग में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक से किसान खुश

इनकी खुशी की वजह है सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती. जिसमें कम लागत आने से किसानों को दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है. यहां अधिकतर किसानों ने प्राकृतिक तकनीक से मटर सहित अन्य नकदी फसलों की मिश्रित खेती की है. इस तकनीत से किसानों ने घर पर ही उपलब्ध संसाधनों से जीवामृत, घन जीवामृत सहित कीटनाशकों में अपने आसपास की जड़ी बूटियों से निर्मित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र दशपर्णी अर्क, सपतधान्य अर्क तैयार किया है.

वीडियो.

वहीं, घर पर तैयार इन संसाधनों पर शून्य लागत की वजह से मंडियों में फसलों के कम रेट मिलने से किसानों को अधिक नुकसान नहीं उठाना पड़ा है. लॉकडाउन के कारण किसानों को महंगी रासायनिक खाद व कीटनाशक स्प्रे खरीदने के लिए भी भटकना पड़ा.

कुल मिलाकर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती इस गांव के किसानों के लिए कोरोना की इस सकंट की घड़ी में अब किसानों की जेब और स्वास्थ्य के लिए वरदान साबित हो रही है. पजयानु गांव की तारा शर्मा का कहना है कि वह सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती कर रही हैं. घर पर खुद ही खाद और स्प्रे तैयार की थी. जिस कारण बिना खर्च के अच्छी फसल तैयार हुई है. सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की मास्टर ट्रेनर लीना शर्मा का कहना है कि इन दिनों लॉकडाउन के कारण मंडियों में कम रेट मिलने से किसान परेशान हैं.

खासकर रासायनिक खेती कर रहे किसानों को लागत अधिक आने के कारण अधिक परेशानी हो रही है. वहीं प्राकृतिक तकनीक खेती करने वाले किसानों को शून्य लागत आने से कम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

पढ़ेंः सरकार की पहल: चंडीगढ़ से छात्रों को लाने का सिलसिला शुरू, 15 बसों में आएंगे स्टूडेंट्स

करसोग/मंडीः वैश्विक कोरोना संकट ने भले ही देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी हो, लेकिन करसोग का एक पजयानु गांव ऐसा भी है, जहां एक महीने से जारी लॉकडाउन के बावजूद किसानों की आर्थिक व्यवस्था पटरी से नहीं उतरी है.

कोरोना संकट से मंडियों में किसानों को फसलों के दाम उम्मीद के मुताबिक नहीं मिल रहे हैं. खेती पर लगातार बढ़ रही लागत से किसान पहले ही परेशान हैं. इन सभी दिक्कतों के बीच पजयानु गांव का किसान खुश नजर आ रहे हैं.

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करसोग में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक से किसान खुश

इनकी खुशी की वजह है सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती. जिसमें कम लागत आने से किसानों को दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है. यहां अधिकतर किसानों ने प्राकृतिक तकनीक से मटर सहित अन्य नकदी फसलों की मिश्रित खेती की है. इस तकनीत से किसानों ने घर पर ही उपलब्ध संसाधनों से जीवामृत, घन जीवामृत सहित कीटनाशकों में अपने आसपास की जड़ी बूटियों से निर्मित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र दशपर्णी अर्क, सपतधान्य अर्क तैयार किया है.

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वहीं, घर पर तैयार इन संसाधनों पर शून्य लागत की वजह से मंडियों में फसलों के कम रेट मिलने से किसानों को अधिक नुकसान नहीं उठाना पड़ा है. लॉकडाउन के कारण किसानों को महंगी रासायनिक खाद व कीटनाशक स्प्रे खरीदने के लिए भी भटकना पड़ा.

कुल मिलाकर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती इस गांव के किसानों के लिए कोरोना की इस सकंट की घड़ी में अब किसानों की जेब और स्वास्थ्य के लिए वरदान साबित हो रही है. पजयानु गांव की तारा शर्मा का कहना है कि वह सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती कर रही हैं. घर पर खुद ही खाद और स्प्रे तैयार की थी. जिस कारण बिना खर्च के अच्छी फसल तैयार हुई है. सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की मास्टर ट्रेनर लीना शर्मा का कहना है कि इन दिनों लॉकडाउन के कारण मंडियों में कम रेट मिलने से किसान परेशान हैं.

खासकर रासायनिक खेती कर रहे किसानों को लागत अधिक आने के कारण अधिक परेशानी हो रही है. वहीं प्राकृतिक तकनीक खेती करने वाले किसानों को शून्य लागत आने से कम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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