मंडी: लॉकडाउन और कोरोना वायरस इंसान के लिए एक सबक बन गया है. भले ही लॉकडाउन से करोड़ों लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि लॉकडाउन से मुरझाई हुई प्रकृति एक बार फिर खिलखिला उठी है. इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है मंडी की प्राचीन रिवालसर झील.
1360 मीटर ऊंचाई पर हिमालय की तलहटी में मौजूद प्राचीन रिवालसर झील का आकार चौकोर है. रिवालसर हिन्दू, सिख और बौद्ध की धार्मिक नगरी के रूप में पहचानी जाता है. दिनों दिन बढ़ रहे प्रदूषण के कारण झील पूरी तरह से दूषित हो गई थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण अब यह झील खुद ही साफ होती हुई नजर आ रही है. बैसाखी पर यहां आयोजित होने वाला तीन दिवसीय मेला भी इस बार स्थगित कर दिया गया है. जिससे झील के प्रदूषण को कम करने में काफी ज्यादा मदद मिली है.
झील में रहने वाली मछलियों को ना तो कोई बिस्किट खिला रहा है और ना ही अन्य प्रकार की खाद्य सामग्री इसमें डाली जा रही है. यही कारण है कि झील का पानी अब काफी साफ दिखने लगा है और इसमें रह रही मछलियां भी सुरक्षित माहौल में नजर आ रही हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई वर्षों पहले झील का पानी नीले रंग का हो गया था और इसी पानी को पीने के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. लॉकडाउन के बाद से झील के पानी का रंग फिर से साफ होने लगा है.
कहा जा सकता है कि जिस झील के बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार और प्रशासन काफी हद तक नाकाम. लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी इस झील की दशा नहीं सुधरी, लेकिन कोरोना ने इस झील के जख्मों पर मलहम लगाया है.
जानिए किससे जुड़ी है रिवालसर झील की कहानी
- ये कहानी जुड़ी है महान गुरु पद्मसंभव रिनपोचे से, जो तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रणेता माने जाते हैं.
- पौराणिक कथा के मुताबिक मंडी के राजा अर्शधर की बेटी मंदरवा गुरु पद्मसंभव से शिक्षा ले रही थी और वो दोनों एक दूसरे से अध्यात्म रूप से जुड़ना शुरू हो गए थे.
- जब राजा को यह पता चला तो उसने गुरु पद्मसंभव को आग में जला देने का आदेश दिया, क्योंकि उस वक्त बौद्ध धर्म को शंकाओं के आधार पर देखा जाता था.
- राजा ने गुरु पद्मसंभव की चिता इतनी बड़ी बनाई थी कि वह 7 दिन तक जलती रही.
- मान्यता है कि सात दिन के बाद वहां राख की जगह एक झील बन गई थी. इस झील में पद्मसंभव एक कमल पर प्रकट हुए. जिसके बाद राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ.
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