मंडी: कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों. दुष्यंत की लिखी ये पंक्ति मंडी की संगीता पर बिल्कुल सटीक बैठती है. मां-बांप के साथ मेलों में चूड़ी बेचने वाली संगीता ने अपनी प्रतिभा की राह में कभी भी आर्थिक हालात को आड़े नहीं आने दिया. इसी का नतीजा है कि अपनी लगन और कुछ कर गुजरने की चाहत की बदौलत संगीता आज असिस्टेंट प्रोफेसर बनी हैं. संगीता की संर्घष की कहानी आज हर किसी के लिए भी किसी प्रेरणा से कम नहीं है.
संगीता ने मेहनत से पाई सफलता: हुनर और प्रतिभा के मामले में हिमाचल प्रदेश की बेटियां भी किसी से कम नहीं. अपनी प्रतिभा और कुछ कर दिखाने की ख्वाहिश की वजह से मंडी की संगीता ने लोगों के लिए मिसाल बन गई है. संगीता का जन्म मंडी में हुआ. संगीता अपने माता-पिता के साथ मेलों में चूड़ियां बेचने का काम करती थी. इसके साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई भी पूरी की. उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज उनका चयन असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए हुआ है. उन्होंने साबित कर दिया कि मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है.
असिस्टेंट प्रोफेसर बनी संगीता: कामयाबी की कहानी लिखने वाली संगीता मंडी जिले के शिवाबदार की रहने वाली है. संगीता का चयन हिंदी विषय की असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हुआ है. असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के बाद जब संगीता अपने घर पहुंची तो परिजनों और ग्रामीणों ने उनका जोरदार स्वागत किया. संगीता ने बताया कि उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई शिवाबदार स्कूल से की. इसके बाद डिग्री कॉलेज कुल्लू से उन्होंने ग्रेजुएशन किया. वही, उन्होंने एमए और एमफिल हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से की. मौजूदा समय में वह हिंदी विषय में पीएचडी कर रही है. संगीता ने नवंबर 2022 में असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा दी थी. 19 जून 2023 को इस परीक्षा का रिजल्ट आया, जिसमें संगीता का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए हुआ.
चूड़ी बेचने के साथ पूरी की पढ़ाई: संगीता ने बताया कि वह एक गरीब परिवार से संबंध रखती हैं. पिता हरवंश लाल ग्रामीण रोजगार सेवक के पद पर कार्यरत हैं और अभी हाल ही में नियमित हुए हैं. इससे पहले इस पद पर उन्हें नाममात्र का ही वेतन मिलता था. माता सुरती देवी गृहणी हैं. उनकी एक छोटी बहन है, जिसकी शादी हो चुकी है. छोटा भाई बीटेक कर चुका है. माता-पिता घर चलाने के लिए मेलों में चूड़ियां और खिलौने बेचा करते थे और इस काम में वह भी उनका पूरा साथ देती थी. संगीता ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने तक मेलों में चूड़ियां और खिलौने बेचने का काम किया है. कभी इस काम को लेकर उन्हें कोई शर्म महसूस नहीं हुई. इसके बाद वह शिमला चली गई. अचानक उनके पिता बीमार पड़ गए तो, यह काम बंद करना पड़ा. उनके पिता कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं.
'शिक्षक या रिपोर्टर बनने का था सपना': संगीता ने बताया कि वह शिक्षक या रिपोर्टर बनना चाहती थी. इसके लिए वह दोनों क्षेत्र में प्रयास कर रही थी. वह कुछ समय से दूरदर्शन शिमला में एंकरिंग का काम कर रही थी. इसके साथ ही वह शिक्षक बनने की भी तैयारी कर रही थी. उन्होंने कहा अगर वह शिक्षक नहीं बनती तो रिपोर्टर बन जाती. अभी भी संगीता सोशल मीडिया पर एक पेज का संचालन कर रही है, जिसके माध्यम से वो हिमाचल की संस्कृति को प्रमोट कर रही हैं.
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