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किसानों ने सीखे प्राकृतिक खेती के गुर, कृषि विभाग करसोग ने मैहरन गांव में लगाया कैंप

राज्य कृषि विभाग के विशेषज्ञ करसोग के किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखा रहे हैं. किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से मटर की अच्छी फसल हासिल करने के टिप्स दिए गए. जिसमें समीप के कई गांवों से किसानों ने भाग लिया.

agricultrural workshop organised in karsog
किसानों ने सीखे प्राकृतिक खेती के गुर
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Published : Dec 7, 2019, 6:58 PM IST

Updated : Dec 7, 2019, 7:11 PM IST

करसोगः प्राकृतिक खेती को शीर्ष पर पहुंचाने के राज्य कृषि विभाग के विशेषज्ञ किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखा रहे हैं. इसी कड़ी में कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने शनिवार को करसोग तहसील के मैहरन गांव में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक बताई.

किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से मटर की अच्छी फसल हासिल करने के टिप्स दिए गए. जिसमें आस पास के कई गांवों से किसानों ने भाग लिया. इसमें करसोग से आए कृषि विशेषज्ञ राम कृष्ण चौहान ने खेतों में जाकर किसानों को प्राकृतिक तरीके से मटर की बिजाई की तकनीक के बारे में अवगत करवाया.

किसानों ने सीखे प्राकृतिक खेती के गुर

इस दौरान किसानों को बताया गया कि प्राकृतिक खेती की तकनीक अपनाने से रासायनिक खेती की तुलना में कई गुणा अधिक पैदावार ली जा सकती है. जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ पेस्टिसाइड से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से भी बच सकेंगे.

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को लेकर अलग अलग पंचायतों में किसानों को इस तकनीक से होने वाले फायदों के बारे में भी जागरूक किया जा रहा है. कृषि विभाग ने बगशाड़ में भी कैंप लगाकर किसानों को प्राकृतिक तकनीक के बारे में जानकारी दी.

कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि करसोग विकासखंड के तहत मैहरन पंचायत में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती करने की तकनीक के बारे में जागरूक किया. उन्होंने कहा कि बगशाड और मैहरन पंचायत में किसानों को प्रेक्टिकल करके जीवामृत और घनजीवमृत तैयार करने की विधि बताई गई. इसके अतिरिक्त खेतों में जाकर प्राकृतिक खेती के तहत बिजाई करने की तकनीक बताई गई.

जीवामृत तैयार करने की विधि बताई:
रबी के इस सीजन में करसोग के अधिकतर क्षेत्रों में मटर की बिजाई का कार्य चल रहा है. इसको देखते हुए किसानों को प्राकृतिक तरीके से तैयार जीवामृत, घन जीवामृत सहित बीजामृत तैयार करने के बारे में जानकारी दी गई. जिसे देसी गाय के गोबर, बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि से तैयार किया जाता है. इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है.

इसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत व घन जीवामृत का छिड़काव किया जा सकता है. रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है. इसमें किसानों को खेत मे गोबर डालने की भी जरूरत नहीं है. इसके लिए देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत व बीजामृत बनाया जाता है.

इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है.. बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है.

रबी सीजन में मटर प्रमुख फसल:
रबी सीजन में करसोग के अधिकतर क्षेत्रों में मटर की सबसे अधिक बिजाई की जाती है. जिसमें किसान पेस्टिसाइड का अधिक प्रयोग करते है. इससे किसानों को आर्थिक तौर पर तो नुकसान होता था, इसके साथ स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. इसलिए कृषि विभाग अब किसानों प्राकृतिक खेती के गुर सीखा रहा है.

इसके लिए करसोग के सभी गांवों में चरणबद्ध तरीके से कैम्प लगाए जा रहे है. अब तक करसोग की कई पंचायतों में कैंप आयोजित किए जा चुके है.

करसोगः प्राकृतिक खेती को शीर्ष पर पहुंचाने के राज्य कृषि विभाग के विशेषज्ञ किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखा रहे हैं. इसी कड़ी में कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने शनिवार को करसोग तहसील के मैहरन गांव में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक बताई.

किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से मटर की अच्छी फसल हासिल करने के टिप्स दिए गए. जिसमें आस पास के कई गांवों से किसानों ने भाग लिया. इसमें करसोग से आए कृषि विशेषज्ञ राम कृष्ण चौहान ने खेतों में जाकर किसानों को प्राकृतिक तरीके से मटर की बिजाई की तकनीक के बारे में अवगत करवाया.

किसानों ने सीखे प्राकृतिक खेती के गुर

इस दौरान किसानों को बताया गया कि प्राकृतिक खेती की तकनीक अपनाने से रासायनिक खेती की तुलना में कई गुणा अधिक पैदावार ली जा सकती है. जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ पेस्टिसाइड से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से भी बच सकेंगे.

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को लेकर अलग अलग पंचायतों में किसानों को इस तकनीक से होने वाले फायदों के बारे में भी जागरूक किया जा रहा है. कृषि विभाग ने बगशाड़ में भी कैंप लगाकर किसानों को प्राकृतिक तकनीक के बारे में जानकारी दी.

कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि करसोग विकासखंड के तहत मैहरन पंचायत में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती करने की तकनीक के बारे में जागरूक किया. उन्होंने कहा कि बगशाड और मैहरन पंचायत में किसानों को प्रेक्टिकल करके जीवामृत और घनजीवमृत तैयार करने की विधि बताई गई. इसके अतिरिक्त खेतों में जाकर प्राकृतिक खेती के तहत बिजाई करने की तकनीक बताई गई.

जीवामृत तैयार करने की विधि बताई:
रबी के इस सीजन में करसोग के अधिकतर क्षेत्रों में मटर की बिजाई का कार्य चल रहा है. इसको देखते हुए किसानों को प्राकृतिक तरीके से तैयार जीवामृत, घन जीवामृत सहित बीजामृत तैयार करने के बारे में जानकारी दी गई. जिसे देसी गाय के गोबर, बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि से तैयार किया जाता है. इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है.

इसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत व घन जीवामृत का छिड़काव किया जा सकता है. रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है. इसमें किसानों को खेत मे गोबर डालने की भी जरूरत नहीं है. इसके लिए देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत व बीजामृत बनाया जाता है.

इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है.. बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है.

रबी सीजन में मटर प्रमुख फसल:
रबी सीजन में करसोग के अधिकतर क्षेत्रों में मटर की सबसे अधिक बिजाई की जाती है. जिसमें किसान पेस्टिसाइड का अधिक प्रयोग करते है. इससे किसानों को आर्थिक तौर पर तो नुकसान होता था, इसके साथ स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. इसलिए कृषि विभाग अब किसानों प्राकृतिक खेती के गुर सीखा रहा है.

इसके लिए करसोग के सभी गांवों में चरणबद्ध तरीके से कैम्प लगाए जा रहे है. अब तक करसोग की कई पंचायतों में कैंप आयोजित किए जा चुके है.

Intro:किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से मटर की अच्छी फसल हासिल करने के टिप्स दिए गए। जिसमें समीप के कई गांवों से किसानों ने भाग लिया। इसमें करसोग से आए कृषि विशेषज्ञ राम कृष्ण चौहान ने खेतों में जाकर किसानों को प्राकृतिक तरीके से मटर की बिजाई की तकनीक के बारे में अवगत करवाया।Body:यहां किसानों ने सीखे प्राकृतिक खेती के गुर, कृषि विभाग करसोग ने जेंस गांव में लगाया कैम्प
करसोग
प्राकृतिक खेती को शीर्ष पर पहुंचाने के राज्य कृषि विभाग के विशेषज्ञ किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखा रहे है। इसी कड़ी में कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने शनिवार को करसोग तहसील के मैहरन गांव में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक बताई. किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से मटर की अच्छी फसल हासिल करने के टिप्स दिए गए। जिसमें समीप के कई गांवों से किसानों ने भाग लिया। इसमें करसोग से आए कृषि विशेषज्ञ राम कृष्ण चौहान ने खेतों में जाकर किसानों को प्राकृतिक तरीके से मटर की बिजाई की तकनीक के बारे में अवगत करवाया। इस दौरान किसानों को बताया गया कि प्राकृतिक खेती की तकनीक अपनाने से रासायनिक खेती की तुलना में कई गुणा अधिक पैदावार ली जा सकती है। जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ पेस्टिसाइड से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से भी बच सकेंगे। सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को लेकर अलग अलग पंचायतों में किसानों को इस तकनीक से होने वाले फायदों के बारे में भी जागरूक किया जा रहा है। कृषि विभाग ने बगशाड में भी केम्प लगाकर किसानों को प्राकृतिक तकनीक के बारे में अवगत करवाया।

जीवामृत तैयार करने की विधि बताई:
रबी के इस सीजन में करसोग के अधिकतर क्षेत्रों में मटर की बिजाई का कार्य चल रहा है। इसको देखते हुए किसानों को प्राकृतिक तरीके से तैयार जीवामृत, घन जीवामृत सहित बीजामृत तैयार करने के बारे में जानकारी दी गई। जिसे देसी गाय के गोबर, बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि से तैयार किया जाता है। इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है। इसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत व घन जीवामृत का छिड़काव किया जा सकता है। रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है। इसमें किसानों को खेत मे गोबर डालने की भी जरूरत नहीं है। इसके लिए देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत व बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है।। बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।
रबी सीजन में मटर प्रमुख फसल:
रबी सीजन में करसोग के अधिकतर क्षेत्रों में मटर की सबसे अधिक बिजाई की जाती है। जिसमें किसान पेस्टिसाइड का अधिक प्रयोग करते है। इससे किसानों को आर्थिक तौर पर तो नुकसान होता था, इसके साथ स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए कृषि विभाग अब किसानों प्राकृतिक खेती के गुर सीखा रहा है। इसके लिए करसोग के सभी गांवों में चरणबद्ध तरीके से कैम्प लगाए जा रहे है। अब तक करसोग की कई पंचायतों में कैंप आयोजित किए जा चुके है।

किसानों को दी गई प्राकृतिक खेती की जानकारी: एसएमएस
कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि करसोग विकासखंड के तहत मैहरन पंचायत में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती करने की तकनीक के बारे में जागरूक किया। उन्होंने कहा कि बगशाड और मैहरन पंचायत में किसानों को प्रेक्टिकल करके जीवामृत और घनजीवमृत तैयार करने की विधि बताई गई। इसके अतिरिक्त खेतों में जाकर प्राकृतिक खेती के तहत बिजाई करने की तकनीक बताई गई। Conclusion:कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि करसोग विकासखंड के तहत मैहरन पंचायत में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती करने की तकनीक के बारे में जागरूक किया। उन्होंने कहा कि बगशाड और मैहरन पंचायत में किसानों को प्रेक्टिकल करके जीवामृत और घनजीवमृत तैयार करने की विधि बताई गई। इसके अतिरिक्त खेतों में जाकर प्राकृतिक खेती के तहत बिजाई करने की तकनीक बताई गई।
Last Updated : Dec 7, 2019, 7:11 PM IST
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