लाहौल स्पीतिः जनजातीय जिला गोशाल गांव में हिमधारा पर्यावरण समूह और सेव लाहौल-स्पीति संस्था ने जागरूकता शिविर लगाया. इसमें मेगा विद्युत परियोजनाओं के कारण होने वाले नुकसान के बारे में लोगों को जागरूक किया गया. इसी कड़ी में संस्था ने आज तांदी गांव में भी जागरूकता अभियान चलाकर परियोजनाओं से होने वाले नुकसान पर चिंतन किया.
उत्तराखंड के चमोली की अलकनंदा नदी में ग्लेशियर के कारण बांध टूटने से तबाही हुई है. इसे देखते हुए जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति की गोशाल पंचायत के प्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने चंद्रभागा घाटी में प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं को नहीं बनने देने का प्रण लिया है.
क्या कहना है गोशाल पंचायत के पूर्व प्रधान का
गोशाल पंचायत के पूर्व प्रधान मेघ सिंह ने कहा कि लाहौल की हिमालय घाटी ग्लेशियर टूटने और हिमखंड गिरने से सबसे ज्यादा प्रभावित रहती है, लेकिन सरकार इस क्षेत्र में 56 जलविद्युत परियोजनाएं बनाने की कवायद शुरू कर रही है. इससे पूरी लाहौल घाटी उत्तराखंड की तरह त्रासदी की राह पर चली जाएगी.
महिला मंडल गोशाल की सदस्य देकिद ने कहा कि लाहौल में वनों को लंबे समय से बचाया जा रहा है. महिला मंडल ने जंगल से लकड़ी लाने पर भी पाबंदी लगा रखी है.
क्या कहना है गोशाल पंचायत के प्रधान का
गोशाल पंचायत की प्रधान संगीता राणा ने कहा कि किसी भी सूरत में तांदी परियोजना 104 मेगावाट को अनापत्ति नहीं दी जाएगी. सेव लाहौल-स्पीति के उपाध्यक्ष विक्रम कटोच ने कहा कि लाहौल में विनाशकारी जलविद्युत परियोजनाओं के खिलाफ जन जागरण की मुहिम को मजबूती से आगे बढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के अलखनंदा में जो हुआ, उससे सभी आहत हैं.
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