लाहौल स्पीतिः लाहौल की पट्टन घाटी में गोशाल से तिंदी तक वीरवार को देवी-देवताओं को समर्पित हालड़ा उत्सव धूमधाम से मनाया गया. बर्फ से लकदक पूरी घाटी मशालों की रोशनी से जगमगा उठी और लोगों ने पारंपरिक परिधानों के साथ इस रस्म को निभाया. अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा की और बाद में ग्रामीणों ने मशालों को गांव के निर्धारित स्थान पर एकत्रित कर अलाव जलाया और बुरी आत्माओं को भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन व पिंड अर्पित कर भगाया. पट्टन घाटी में हालड़ा जिसे खोगल के नाम से जाना जाता है, पर्व की तिथि निर्धारित करने के लिए चंद्रमा के घटने व बढ़ने के पक्ष को तरजीह दी जाती है.
गणतंत्र दिवस पर मनाया हालड़ा
बरगुल स्थानीय निवासी संजय कटोच व अनिल ने बताया कि तोद, गाहर और तिनन घाटी में लामाओं की ओर से ग्रंथों के अनुसार हालड़ा और लोसर मनाने की तिथि तय की जाती है. कोकसर पंचायत के अंतर्गत तेंलंग से सरखंग और सिस्सू पंचायत के अंतर्गत छोकोर से रोपसंग तक 24 जनवरी को हालड़ा महोत्सव शुरू हुआ. गाहर वैली में गणतंत्र दिवस पर हालड़ा मनाया गया. लाहौल की पट्टन घाटी में हालड़ा उत्सव हर वर्ष सर्दियों के दौरान चंद्रमास की पूर्णिमा को मनाया जाता है.
बुरी शक्तियों से निजात पाने के लिए मशाल उत्सव का आयोजन
मान्यता है कि घाटी में सर्दियों के दौरान देवता स्वर्ग प्रवास पर चले जाते हैं, ऐसे में राक्षसों तथा आसुरी शक्तियों का बोलबाला अधिक रहता है. इन्हीं आसुरी शक्तियों और बुरी शक्तियों से निजात पाने के लिए मशाल उत्सव का आयोजन किया जाता है. छङ्क्षलग निवासी दोरजे लार्जे ने बताया कि सर्वप्रथम सद हालड़ा निकाला जाता है, जिसमें बच्चों को भाग लेने की मनाही होती है. इसमें लोग कई प्रकार के पकवान बनाते हैं. हालड़ा उत्सव के ठीक 15 दिन बाद अमावस्या के दिन से घाटी के सभी गांवों में फागली उत्सव का दौर आरंभ हो जाता है.
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