लाहौल स्पीति: देशभर में सरकारी व अन्य समाजसेवी संस्थाएं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम को बल देने में जुटी हुई है. तो वहीं, कन्या भ्रूण हत्या के मामले को लेकर भी आमजन में विशेष जागरूकता फैलाई जा रही है. हालांकि इस मामले को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. लेकिन आहे बगाहे आज भी कन्या भ्रूण हत्या से संबंधित कई मामले देखने को मिल रहे हैं. जिनमें आज भी बेटी को समाज में अभिशाप के तौर पर देखा जाता है. लेकिन हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति का एक छोटा सा गांव प्यूकर सदियों से इन कुरीतियों के विपरीत एक अनोखी परंपरा निभा रहा है.
बेटी के जन्म पर प्यूकर गांव में मनाते हैं गोची उत्सव: जिले के प्यूकर गांव में बेटा-बेटी को लेकर कोई भेदभाव नहीं होता है. बल्कि बेटी के जन्म पर परिवार गोची उत्सव आयोजित करता है. जिसके लिए पूरे गांव और रिश्तेदारों को निमंत्रण भेजा जाता है. उत्सव के दौरान बेटी के खुशहाल भविष्य के लिए इष्ट देवता की पूजा अर्चना की जाती है. गांव के लोग घाटी के अराध्य देवता राजा घेपन के भाई राजा तंगजर की पूजा करते हैं.
बेटी पैदा होने की खुशी में मनाया जाता है जश्न: देवता तंगजर की विशेष पूजा अर्चना के बाद शाम को तीर-कमान का खेल-खेला जाता है. ग्रामीणों द्वारा पारंपरिक नृत्य किया जाता है और जश्न मनाया जाता है. हालांकि गाहर घाटी में आयोजित उत्सव में घर में बेटा होने की खुशी में ही गोची उत्सव का आयोजन किया जाता है. लेकिन प्यूकर गांव में बेटी के पैदा होने पर भी विशेष रूप से खुशियां मनाई जाती है और गोची उत्सव का आयोजन किया जाता है.
बेटा व बेटी में नहीं होता भेदभाव: स्थानीय ग्रामीण छेरिंग टशी व राजेंद्र का कहना है कि गांव में बीते 1 साल में दो बेटियों का जन्म हुआ है. ऐसे में प्यूकर गांव के दो घरों में गोची उत्सव का आयोजन किया गया है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में बेटियां अपनी मेहनत के बलबूते नई बुलंदियों को छू रही है और यहां पर बेटा व बेटी को एक समान दृष्टि से देखा जाता है. उन्होंने बताया कि घर में बेटी के जन्म पर गोची उत्सव का आयोजन कर परिवार के साथ पूरा गांव गर्व महसूस कर रहा है.
'देवता तंगजर ने दिया था आशीर्वाद': स्थानीय निवासियों का कहना है कि कई दशकों पहले प्यूकर गांव में दम्पतियों की संतान पैदा नहीं हो पा रही थी. ऐसे में ग्रामीणों ने देवता तंगजर की विशेष पूजा आराधना की और निर्णय लिया था कि इस गांव में बेटा व बेटी होने पर एक समान से उत्सव का आयोजन किया जाएगा. उसके बाद देवता तंगजर के आशीर्वाद से यहां पर निसंतान दंपतियों के बच्चे पैदा होने शुरू हो गए थे. ऐसे में कई दशकों से इस पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है और बेटा हो या बेटी दोनों के जन्म पर गोची उत्सव का आयोजन किया जाता है.
प्रदेश का इकलौता ऐसा गांव जहां बेटी होने पर होता है उत्सव: लाहौल के स्थानीय निवासी एवं जिला परिषद की अध्यक्ष अनुराधा राणा, मोहन लाल, कुंदन शर्मा का कहना है कि यह गांव संभवत: प्रदेश का ऐसा पहला गांव होगा जहां बेटियों के जन्म पर भी उत्सव मनाया जाता है. उनका कहना है कि निश्चित रूप से यह सराहनीय कदम है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. लिंगभेद करने वालों के लिए यह एक बेहतरीन आइना हो सकता है. उन्होंने सभी लोगों से भी अपील करते हुए कहा कि बेटा- बेटी में कभी भी भेदभाव न करें. बेटियां है तो संसार है.
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