कुल्लू: सभी 24 एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. यह एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आती है. इस दिन कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और उपवास किया जाता है.
भगवान विष्णु को करें पुष्प अर्पित
ज्योतिषाचार्य मनोज शर्मा ने बताया कि प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें. इसके साथ ही सभी देवी-देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करते हुए भगवान विष्णु को पुष्प अर्पित करें. इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए. साथ ही अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें.
भगवान को लगाएं सात्विक चीजों का भोग
वहीं, भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु बिना तुलसी के भोग स्वीकार नहीं करते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है. इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें.
मां गायत्री का जन्मोत्सव
मनोज शर्मा ने बताया कि इसके अलावा 21 जून को ही मां गायत्री का जन्मोत्सव है. मां गायत्री को वेद माता कहा जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार गायत्री जयंती का पर्व भी प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन मां गायत्री की पूजा अर्चना और जप करना लाभकारी है.
निर्जला एकादशी का महत्व
मान्यता के अनुसार जो श्रद्धालु साल की सभी 24 एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है, उन्हें केवल निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए, क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से दूसरी सभी एकादशियों के व्रत के बराबर लाभ मिल जाता है.
निर्जला एकादशी: पाण्डव एकादशी और भीमसेनी या भीम एकादशी...
निर्जला एकादशी से संबंधित पौराणिक कथा के कारण इसे पांडव एकादशी और भीमसेनी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. पांडवों में महाबली भीम खाने-पीने के अत्यधिक शौकीन थे. इसी कारण महाबली भीम एकादशी व्रत को नहीं कर पा रहे थे. भीम के अलावा बाकि पाण्डव द्रौपदी सहित साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे.
भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान थे. भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी का व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहे हैं. इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गए. महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की 24 एकादशियों के तुल्य हैं. इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी, भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई.
इसलिए वर्जित है एकादशी के दिन चावल...
सनातन धर्म में कई प्रकार के व्रत और त्योहारों के माध्यम से मनुष्यों के नैतिक उत्थान का मार्ग बताया गया है. इन सबमें एकादशी व्रत का महात्म्य सबसे ज्यादा है. हर वर्ष में 24 एकादशी (हर महीने दो एकादशी) आती हैं. अधिक मास या मलमास में इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. धर्माचार्यों के अनुसार एकादशी के व्रत में चावल खाने की मनाही है. आइए जानते हैं कि आखिर एकादशी व्रत के दिन चावल को क्यों वर्जित बताया गया है?
एकादशी के दिन चावल को बिल्कुल वर्जित माना गया है. चावल नहीं खाना एकादशी नियमों में शामिल होता है और ऐसी मान्यता है कि जो इस दिन चावल खाता है. वह इंसान योनि से अलग होकर उसका जन्म प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में होता है.
एक पौराणिक कथा के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया. चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है.
जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी. इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया. मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है.
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