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एकीकृत विकास परियोजना के अमल पर आपसी तालमेल बिठाएं विभाग: मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर

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Published : Jul 18, 2020, 7:23 PM IST

वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने परियोजना के कार्यान्वयन को लेकर वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक का आयोजन किया. गोविंद ठाकुर ने वन विभाग के अधिकारियों को परियोजना के पहलुओं को बारीकी से समझने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इसमें एक छत्र के नीचे अलग-अलग विभागों के अधिकारी काम करेंगे.

minister govind thakur
minister govind thakur

कुल्लू: वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने परियोजना के कार्यान्वयन को लेकर वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक का आयोजन किया. एकीकृत विकास परियोजना हिमाचल प्रदेश के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना है. 700 करोड़ रुपये की यह परियोजना प्रदेश के 10 जिलों की 428 ग्राम पंचायतों में कार्यान्वित की जाएगी और कुल्लू जिला की 46 पंचायतों को कवर करेगी.

गोविंद ठाकुर ने वन विभाग के अधिकारियों को परियोजना के पहलुओं को बारीकी से समझने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इसमें एक छत्र के नीचे अलग-अलग विभागों के अधिकारी काम करेंगे. इनमें मुख्यतौर पर वन, पशु पालन, कृषि, बागवानी व जल शक्ति विभाग शामिल हैं.

इसलिए यह आवश्यक है कि संबद्ध विभागों का आपस में बेहतर तालमेल हो और परियोजना के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सभी अतिरिक्त प्रयास करें. उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने परियोजना से एक समय किनारा कर लिया था, जब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली से इसके लिए विशेष आग्रह किया था और आज प्रदेश को इतनी बड़ी परियोजना मिली है.

वन मंत्री ने अधिकारियों से टीम की भावना से कार्य करने को कहा. उन्होंने कहा कि रूटीन का कार्य तो सभी को करना ही होता है, लेकिन लीक से हटकर यदि किसी नए कार्य को अंजाम दिया जाए तो वह सभी के लिए उदाहरण बन जाता है.

अधिकारियों को नई सोच के साथ नई पहल करने के निरंतर प्रयास करने चाहिए. उन्होंने कहा कि हम इस परियोजना को हिमाचल में दृढ़ शक्ति के साथ कार्यान्वित करके इसका लाभ लोगों तक पहुंचाएंगे.

परियोजना की विशेषताओं पर प्रस्तुति देते हुए परियोजना अधिकारी एचएस पाल ने कहा कि परियोजना का कार्य पूरा करने के लिए 2024-25 तक की अवधि निर्धारित की गई है. जल धारा के प्रवाह में सुधार, वाटरशैड मैनेजमेंट, कृषि भूमि के लिए पानी की उत्पादकता परियोजना के मुख्य उद्देश्य हैं.

स्थाई भूमि और जल संसाधन प्रबंधन के तहत पौधरोपण, नर्सरी विकास, ट्रेंचिंग, घास का प्रबंधन, जल निकासी लाईनों का उपचार, आग से बचाव एवं जागरूकता, बसंत जल स्त्रोत विकास, लेंटाना घास को समाप्त करना, पारंपरिक कृषि प्रणाली विकास, जल संग्रहण एवं प्राथमिक भंडारण इत्यादि पहलुओं को परियोजना के प्रथम घटक में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.

इसी प्रकार, द्वितीय घटक में जल वितरण एवं जल प्रयोग क्षमता, जलवायु आधारित कृषि का प्रदर्शन एवं प्रोत्साहन, मूल्य श्रृंखला स्कूपिंग अध्ययन, कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए गरीब, कमजोर तथा महिला समूहों के लिए उप-परियोजना निवेश, क्लस्टर स्तर पर निवेश, कृषि प्रबंधन व मण्डी विकास के लिए तकनीक को विकसित करना शामिल है.

बैठक में अवगत करवाया गया कि परियोजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जिला स्तरीय समन्वय समिति का गठन किया गया है जो तीन माह में दो बार बैठकें करेंगी. अरण्यपाल अनिल शर्मा ने स्वागत किया और बैठक में बहुमूल्य सुझाव दिए और फील्ड अधिकारियों को परियोजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अभी से कार्य में जुट जाने को कहा.

पढें: खुले आसमान के नीचे जिंदगी बिताने को मजबूर है ये गरीब परिवार, प्रशासन से नहीं मिली मदद

कुल्लू: वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने परियोजना के कार्यान्वयन को लेकर वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक का आयोजन किया. एकीकृत विकास परियोजना हिमाचल प्रदेश के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना है. 700 करोड़ रुपये की यह परियोजना प्रदेश के 10 जिलों की 428 ग्राम पंचायतों में कार्यान्वित की जाएगी और कुल्लू जिला की 46 पंचायतों को कवर करेगी.

गोविंद ठाकुर ने वन विभाग के अधिकारियों को परियोजना के पहलुओं को बारीकी से समझने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इसमें एक छत्र के नीचे अलग-अलग विभागों के अधिकारी काम करेंगे. इनमें मुख्यतौर पर वन, पशु पालन, कृषि, बागवानी व जल शक्ति विभाग शामिल हैं.

इसलिए यह आवश्यक है कि संबद्ध विभागों का आपस में बेहतर तालमेल हो और परियोजना के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सभी अतिरिक्त प्रयास करें. उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने परियोजना से एक समय किनारा कर लिया था, जब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली से इसके लिए विशेष आग्रह किया था और आज प्रदेश को इतनी बड़ी परियोजना मिली है.

वन मंत्री ने अधिकारियों से टीम की भावना से कार्य करने को कहा. उन्होंने कहा कि रूटीन का कार्य तो सभी को करना ही होता है, लेकिन लीक से हटकर यदि किसी नए कार्य को अंजाम दिया जाए तो वह सभी के लिए उदाहरण बन जाता है.

अधिकारियों को नई सोच के साथ नई पहल करने के निरंतर प्रयास करने चाहिए. उन्होंने कहा कि हम इस परियोजना को हिमाचल में दृढ़ शक्ति के साथ कार्यान्वित करके इसका लाभ लोगों तक पहुंचाएंगे.

परियोजना की विशेषताओं पर प्रस्तुति देते हुए परियोजना अधिकारी एचएस पाल ने कहा कि परियोजना का कार्य पूरा करने के लिए 2024-25 तक की अवधि निर्धारित की गई है. जल धारा के प्रवाह में सुधार, वाटरशैड मैनेजमेंट, कृषि भूमि के लिए पानी की उत्पादकता परियोजना के मुख्य उद्देश्य हैं.

स्थाई भूमि और जल संसाधन प्रबंधन के तहत पौधरोपण, नर्सरी विकास, ट्रेंचिंग, घास का प्रबंधन, जल निकासी लाईनों का उपचार, आग से बचाव एवं जागरूकता, बसंत जल स्त्रोत विकास, लेंटाना घास को समाप्त करना, पारंपरिक कृषि प्रणाली विकास, जल संग्रहण एवं प्राथमिक भंडारण इत्यादि पहलुओं को परियोजना के प्रथम घटक में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.

इसी प्रकार, द्वितीय घटक में जल वितरण एवं जल प्रयोग क्षमता, जलवायु आधारित कृषि का प्रदर्शन एवं प्रोत्साहन, मूल्य श्रृंखला स्कूपिंग अध्ययन, कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए गरीब, कमजोर तथा महिला समूहों के लिए उप-परियोजना निवेश, क्लस्टर स्तर पर निवेश, कृषि प्रबंधन व मण्डी विकास के लिए तकनीक को विकसित करना शामिल है.

बैठक में अवगत करवाया गया कि परियोजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जिला स्तरीय समन्वय समिति का गठन किया गया है जो तीन माह में दो बार बैठकें करेंगी. अरण्यपाल अनिल शर्मा ने स्वागत किया और बैठक में बहुमूल्य सुझाव दिए और फील्ड अधिकारियों को परियोजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अभी से कार्य में जुट जाने को कहा.

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