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कुल्लू में जापानी फल बढ़ा रही बागवानों की आमदनी, सेब के वैकल्पिक रूप में अपना रहे बागवान

कुल्लू जिले में जापानी फल से बागवानों की आमदनी बढ़ रही है. जिसके कारण जापानी फल की ओर बागवानों का रुझान बढ़ता दिख रहा है. बता दें कि बागवान जापानी फल को सेब के वैकल्पिक रूप में भी अपना रहे हैं. जिले में बीते साल भी जापानी फल का बेहतर उत्पादन हुआ था. जिसको लेकर बागवानों में पोधो की मांग बढ़ गई है. पढ़ें पूरी खबर..

Japanese fruits increasing income in Kullu
कुल्लू में जापानी फल बढ़ा रही बागवानों की आमदनी
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 5, 2023, 5:06 PM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में सेब के बाद अब जापानी फल भी बागवानों की आमदनी को बढ़ाने की दिशा में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. जापानी फल के तुड़ान में इन दिनों बागवान व्यस्त है और बाहरी राज्यों के व्यापारी भी जापानी फल की खेप को बाहरी मंडियों में पहुंच रहे हैं. ऐसे में सेब, अनार के साथ-साथ जापानी फल भी कुल्लू में बागबानों की आर्थिक का एक अहम जरिया बन गया है. जिला कुल्लू की अगर बात करें तो यहां पर मात्र 283 हेक्टेयर भूमि में ही जापानी फल का उत्पादन होता है. अब बागवान इसे सेब के वैकल्पिक रूप में भी अपना रहे हैं.

दरअसल, कुल्लू के निचले इलाकों में मौसम में आए बदलाव के चलते सेब की खेती कम हो रही है और जापानी फल के प्रति अब लोगों का रुझान बढ़ रहा है. जापानी फल के प्रति रुझान का एक मुख्य कारण यह भी है कि इस फल के घर-द्वार पर ही बागवानों को ₹100 से लेकर ₹200 प्रति किलो तक दाम मिल रहे हैं. हालांकि इस बार पिछले साल की अपेक्षा उत्पादन कम रहा है, लेकिन अच्छे दाम मिलने से बागवान काफी खुश नजर आ रहे हैं.

Japanese fruits increasing income in Kullu
सेब के वैकल्पिक रूप में जापानी फल को अपना रहे बागवान

जापानी फल की बात करें तो इसमें न्यूट्रीशियन और विटामिन सी की मात्रा अधिक है. जिस कारण इस फल की डिमांड अधिक रहती है. बता दें कि कुल्लू में जब सेब का सीजन खत्म हो जाता है तो उसके बाद जापानी फल का सीजन शुरू हो जाता है. इन दिनों जापानी फल से भरे हुए पेड़ लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. दिसंबर माह में सभी फलों के पौधे खाली हो गए हैं, लेकिन जापानी फल के पौधे फलों से भरे हुए हैं. लाल रंग का यह जापानी फल अब बाहरी राज्यों के लोगों की भी पहली पसंद बन रहा है.

हिमाचल प्रदेश में जापानी फल की फुयु और हेचिया प्रजाति पाई जा रही है. इसमें फुयु प्रजाति के फल की मांग बाजार में अधिक है और बागवानों को इस फल की कीमत ₹200 प्रति किलो मिल रही है. जापानी फल की फुयु प्रजाति का फल कच्चा खाने वाला फल है. जबकि हेचिया प्रजाति के फल को खाने के लिए उसके पकने का भी इंतजार करना पड़ता है. कुल्लू की लगघाटी, मणिकर्ण घाटी, गड़सा, बजौरा, झिड़ी, हुरला में जापानी फल का अधिक उत्पादन होता है. हालांकि ऊपरी इलाकों में भी अब बागवान जापानी फल के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, लेकिन कुल्लू के निचले इलाकों में बागवानों के द्वारा इसके पौधे लगाए गए हैं. पूरी दुनिया में जापानी फल की करीब 400 प्रजातियां है और हेचिया और फुयु पूरी दुनिया में बेहद लोकप्रिय है.

जानकारी के अनुसार, जापानी फल को सबसे पहले चीन में उगाया गया और उसके बाद चीन, जापान से होते हुए यह कोरिया पहुंचा. ऐसे में भारत में भी जापानी फल के पौधे यूरोपियन के द्वारा 1921 में ले गए थे. साल 1941 में शिमला के बागवानों ने सेब के पौधों में जापानी फल के पौधे लगाए थे और एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में करीब 10000 किसान अपनी भूमि पर जापानी फल की खेती करते हैं.

हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में भी बागवान अब जापानी फल की खेती कर रहे हैं और अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं. साल 2019-20 में कुल्लू खंड में 297 मीट्रिक टन, नग्गर में 185 मीट्रिक टन, बंजार में 324 मीट्रिक टन, आनी में 11 मीट्रिक टन और निरमंड में 22 मीट्रिक टन जापानी फल का उत्पादन रहा. साल 2020-21 में कुल्लू खंड में 275 मीट्रिक टन, नग्गर में 154 मीट्रिक टन, बंजार में 260 मीट्रिक टन, आनी में 2 मीट्रिक टन और निरमंड में 11 मीट्रिक टन जापानी फल का उत्पादन रहा. साल 2021_22 में कुल्लू खंड में 352 मीट्रिक टन, नग्गर में 221 मीट्रिक टन, बंजार में 334 मीट्रिक टन, आनी में 10 मीट्रिक टन और निरमंंड में 26 मीट्रिक टन उत्पादन रहा.

साल 2022-23 में जापानी फल के उत्पादन सबसे बढिय़ा वर्ष रहा. जब कुल्लू में जापानी फल का उत्पादन 1005 मीट्रिक टन रहा. जिसमें कुल्लू खंड में 324 मीट्रिक टन, नग्गर में 347 मीट्रिक टन, बंजार में 302 मीट्रिक टन, आनी में 12 मीट्रिक टन और निरमंड में 20 मीट्रिक टन जापानी फल का उत्पादन अर्जित किया, जो कि आठ वर्षों में सबसे अधिक उत्पादन रहा.

जापानी फल के बागवान दीप कुमार, विजय कुमार, रमेश, अमर ठाकुर का कहना है कि इस बार जापानी फल के ₹100 से लेकर 150 रुपए प्रति किलो तक दाम मिल रहे हैं. इस फल के लिए ना तो अधिक दवाइयां और ना ही अधिक कीटनाशकों का प्रयोग होता है. जिसके चलते यह फल खाने में भी काफी सुरक्षित है. बस इसे चिड़िया से बचाना पड़ता है और इसके लिए बागवानों के द्वारा जापानी फल के पौधों के ऊपर जालीदार नेट बिछाया जाता है.

उद्यान विभाग कुल्लू के उपनिदेशक बीएम चौहान ने बताया कि कुल्लू में इस बार जापानी फल के फुयु प्रजाति के 42000 पौधों की डिमांड बागवान के द्वारा भेजी गई है. इसमें आनी में 12000, निरमंड में 1000, बंजार में 7000, नग्गर से 10000 और कुल्लू से 12000 पौधों की डिमांड भेजी गई है. कुल्लू में जापानी फल के बागवान को अच्छे दाम मिल रहे हैं और इसकी पैदावार भी अच्छी होती है. जिसके चलते सेब के बाद अब बागवानों का जापानी फल की ओर रुझान बढ़ रहा है.

ये भी पढ़ें: राहत राशि वितरण में फर्जीवाड़ा सामने आने पर प्रशासन सख्त, कुल्लू में 4700 परिवारों के दस्तावेजों की होगी फिर से जांच

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में सेब के बाद अब जापानी फल भी बागवानों की आमदनी को बढ़ाने की दिशा में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. जापानी फल के तुड़ान में इन दिनों बागवान व्यस्त है और बाहरी राज्यों के व्यापारी भी जापानी फल की खेप को बाहरी मंडियों में पहुंच रहे हैं. ऐसे में सेब, अनार के साथ-साथ जापानी फल भी कुल्लू में बागबानों की आर्थिक का एक अहम जरिया बन गया है. जिला कुल्लू की अगर बात करें तो यहां पर मात्र 283 हेक्टेयर भूमि में ही जापानी फल का उत्पादन होता है. अब बागवान इसे सेब के वैकल्पिक रूप में भी अपना रहे हैं.

दरअसल, कुल्लू के निचले इलाकों में मौसम में आए बदलाव के चलते सेब की खेती कम हो रही है और जापानी फल के प्रति अब लोगों का रुझान बढ़ रहा है. जापानी फल के प्रति रुझान का एक मुख्य कारण यह भी है कि इस फल के घर-द्वार पर ही बागवानों को ₹100 से लेकर ₹200 प्रति किलो तक दाम मिल रहे हैं. हालांकि इस बार पिछले साल की अपेक्षा उत्पादन कम रहा है, लेकिन अच्छे दाम मिलने से बागवान काफी खुश नजर आ रहे हैं.

Japanese fruits increasing income in Kullu
सेब के वैकल्पिक रूप में जापानी फल को अपना रहे बागवान

जापानी फल की बात करें तो इसमें न्यूट्रीशियन और विटामिन सी की मात्रा अधिक है. जिस कारण इस फल की डिमांड अधिक रहती है. बता दें कि कुल्लू में जब सेब का सीजन खत्म हो जाता है तो उसके बाद जापानी फल का सीजन शुरू हो जाता है. इन दिनों जापानी फल से भरे हुए पेड़ लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. दिसंबर माह में सभी फलों के पौधे खाली हो गए हैं, लेकिन जापानी फल के पौधे फलों से भरे हुए हैं. लाल रंग का यह जापानी फल अब बाहरी राज्यों के लोगों की भी पहली पसंद बन रहा है.

हिमाचल प्रदेश में जापानी फल की फुयु और हेचिया प्रजाति पाई जा रही है. इसमें फुयु प्रजाति के फल की मांग बाजार में अधिक है और बागवानों को इस फल की कीमत ₹200 प्रति किलो मिल रही है. जापानी फल की फुयु प्रजाति का फल कच्चा खाने वाला फल है. जबकि हेचिया प्रजाति के फल को खाने के लिए उसके पकने का भी इंतजार करना पड़ता है. कुल्लू की लगघाटी, मणिकर्ण घाटी, गड़सा, बजौरा, झिड़ी, हुरला में जापानी फल का अधिक उत्पादन होता है. हालांकि ऊपरी इलाकों में भी अब बागवान जापानी फल के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, लेकिन कुल्लू के निचले इलाकों में बागवानों के द्वारा इसके पौधे लगाए गए हैं. पूरी दुनिया में जापानी फल की करीब 400 प्रजातियां है और हेचिया और फुयु पूरी दुनिया में बेहद लोकप्रिय है.

जानकारी के अनुसार, जापानी फल को सबसे पहले चीन में उगाया गया और उसके बाद चीन, जापान से होते हुए यह कोरिया पहुंचा. ऐसे में भारत में भी जापानी फल के पौधे यूरोपियन के द्वारा 1921 में ले गए थे. साल 1941 में शिमला के बागवानों ने सेब के पौधों में जापानी फल के पौधे लगाए थे और एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में करीब 10000 किसान अपनी भूमि पर जापानी फल की खेती करते हैं.

हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में भी बागवान अब जापानी फल की खेती कर रहे हैं और अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं. साल 2019-20 में कुल्लू खंड में 297 मीट्रिक टन, नग्गर में 185 मीट्रिक टन, बंजार में 324 मीट्रिक टन, आनी में 11 मीट्रिक टन और निरमंड में 22 मीट्रिक टन जापानी फल का उत्पादन रहा. साल 2020-21 में कुल्लू खंड में 275 मीट्रिक टन, नग्गर में 154 मीट्रिक टन, बंजार में 260 मीट्रिक टन, आनी में 2 मीट्रिक टन और निरमंड में 11 मीट्रिक टन जापानी फल का उत्पादन रहा. साल 2021_22 में कुल्लू खंड में 352 मीट्रिक टन, नग्गर में 221 मीट्रिक टन, बंजार में 334 मीट्रिक टन, आनी में 10 मीट्रिक टन और निरमंंड में 26 मीट्रिक टन उत्पादन रहा.

साल 2022-23 में जापानी फल के उत्पादन सबसे बढिय़ा वर्ष रहा. जब कुल्लू में जापानी फल का उत्पादन 1005 मीट्रिक टन रहा. जिसमें कुल्लू खंड में 324 मीट्रिक टन, नग्गर में 347 मीट्रिक टन, बंजार में 302 मीट्रिक टन, आनी में 12 मीट्रिक टन और निरमंड में 20 मीट्रिक टन जापानी फल का उत्पादन अर्जित किया, जो कि आठ वर्षों में सबसे अधिक उत्पादन रहा.

जापानी फल के बागवान दीप कुमार, विजय कुमार, रमेश, अमर ठाकुर का कहना है कि इस बार जापानी फल के ₹100 से लेकर 150 रुपए प्रति किलो तक दाम मिल रहे हैं. इस फल के लिए ना तो अधिक दवाइयां और ना ही अधिक कीटनाशकों का प्रयोग होता है. जिसके चलते यह फल खाने में भी काफी सुरक्षित है. बस इसे चिड़िया से बचाना पड़ता है और इसके लिए बागवानों के द्वारा जापानी फल के पौधों के ऊपर जालीदार नेट बिछाया जाता है.

उद्यान विभाग कुल्लू के उपनिदेशक बीएम चौहान ने बताया कि कुल्लू में इस बार जापानी फल के फुयु प्रजाति के 42000 पौधों की डिमांड बागवान के द्वारा भेजी गई है. इसमें आनी में 12000, निरमंड में 1000, बंजार में 7000, नग्गर से 10000 और कुल्लू से 12000 पौधों की डिमांड भेजी गई है. कुल्लू में जापानी फल के बागवान को अच्छे दाम मिल रहे हैं और इसकी पैदावार भी अच्छी होती है. जिसके चलते सेब के बाद अब बागवानों का जापानी फल की ओर रुझान बढ़ रहा है.

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