लाहोल-स्पीति: जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति में पाए जाने वाले सीबकथोर्न (छरमा) से कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए दवा तैयार होगी. इसमें सरकारी और निजी क्षेत्र के सात संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं. इसके लिए 7.5 करोड़ रुपये का एक प्रोजेक्ट तैयार कर केंद्रीय आयुष मंत्रालय को मंजूरी के लिए भेजा गया है.
हालांकि छरमा से तैयार होने वाली दवा से कोरोना का इलाज नहीं होगा, लेकिन दवा कोरोना से लड़ने के लिए मानव शरीर में इम्यूनिटी बूस्टर का काम करेगी. इससे न तो इन्सान कोरोना की चपेट में आएगा और न दूसरे लोगों को फैलेगा. इस प्रोजेक्ट में आईआईटी रुड़की, आईआईटी मंडी, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, आयुर्वेद अस्पताल पपरोला, नाइपर चंडीगढ़ के अलावा एक निजी संस्था के साथ दिल्ली का एक संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं.
सीबकथोर्न एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव डॉ. वीरेंद्र सिंह ने दावा किया है कि दक्षिण कोरिया की अवहा वुमन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 वायरस की शरीर में वृद्धि को रोकने में सफलता पाई है. अब चीन, जर्मनी, रूस और फिनलैंड ने भी छरमा पर अनुसंधान शुरू कर दिया है. ऐसे में भारत में भी छरमा के फल व पत्तियों से इम्यूनिटी बूस्टर व ड्रग तैयार करने के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया है.
इस प्रोजेक्ट के लिए छरमा की मांग को देखते हुए लाहौल-स्पीति और किन्नौर जिला में करीब छह हजार हेक्टेयर बंजर भूमि पर छरमा लगाना होगा. इससे जहां स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं छरमा पर आधारित उद्योग भी स्थापित होंगे. कोरोना से लड़ने के लिए पूरे विश्व के वैज्ञानिक शोध कर रहे है. कोरोना से बचाव की अभी तक कोई भी दवाई तैयार नहीं हुई है.