कुल्लू: जिले में बेसहारा पशुओं के लिए पंचायत स्तर पर गोसदन बनाने की घोषणा जमीनी स्तर पर फाइलों तक ही दबकर रह गई है. भारी बारिश और बर्फबारी के बीच सड़कों पर घूम रहे बेसहारा पशुओं की हालत खराब हो रही है. वहीं, किसान-बागवान इनकी बढ़ती संख्या से परेशान हैं. (Cattle on road in Kullu ) ( gosadan in Kullu )
सड़कों पर घूम रहे बेसहारा गोवंश: कुल्लू जिले के मनाली, कुल्लू, बंजार, आनी और निरमंड विकास खंड में सैकड़ों बेसहारा पशु सड़कों पर बेमौत मर रहे हैं. जिले में इस समय चार सरकारी गोसदन सहित दस गोसदन चल रहे हैं. साढ़े 1300 क्षमता वाले इन गोसदनों में 1400 बेसहरा पशु पल रहे हैं लेकिन यह व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही है.
इन गांवों के लोगों की बढ़ी परेशानी: आंकड़े बताते हैं कि जिले में बेसहरा गोवंश की संख्या छह हजार के पार पहुंच चुकी है. बंजार, दलाश, कुल्लू, गडसा, सैंज, पतलीकुहल, निरमंड सहित कई कस्बों और गांव में गोवंश लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. इसके अलावा बेसहारा पशुओं की बढ़ती संख्या और किसानों की फसलों को हो रहे नुकसान पर हाईकोर्ट ने भी कड़ा संज्ञान लिया था.
बजट के अभाव में नहीं हो सका गोसदन का निर्माण: कोर्ट ने वर्ष 2015 में प्रत्येक पंचायत में गोसदन खोलने के लिए प्रदेश सरकार को निर्देश दिए थे. जिस पर काम भी शुरू हुआ लेकिन बजट के अभाव और अन्य खामियों के चलते योजना सिरे नहीं चढ़ पाई. किसान अब भी पहले की तरह परेशान हैं और समस्या से निजात पाने के लिए सरकार से आस लगाए हुए हैं। जिला में कुल 232 पंचायतें हैं. चनौन पंचायत में एक गोसदन बना है, लेकिन इस गोसदन में एक भी पशु को नहीं रखा गया है.
गायों की कीमत में आई कमी: कुल्लू के देवसमाज में गाय का खासा महत्व है. घरों और देवालयों की शुद्वी के लिए गोमुत्र और गोबर का उपयोग किया जाता है. बदलते दौर में गायों की बेकद्री हो रही है. रघुनाथ की नगरी कुल्लू शहर में ही सैकड़ों गाय सड़क पर हैं. पिछले डेढ़ साल में गायों की कीमत भी गिरी है. पहले दुधारू गाय की कीमत 25 से 35 हजार रुपये थी लेकिन अब सिर्फ 15 हजार कीमत रह गई है. देवभूमि में पशु खुले में छोड़ दिए जा रहे हैं और सर्दी के मौसम में दर्दनाक मौत मर रहे हैं.
गोवंश हो रहे दुर्घटना के शिकार: स्थानीय देवराज, मीना देवी, हरी राम कहते हैं कि सड़कों के किनारे बेसहारा पशुओं की भरमार है. बीती सर्दी में कई पशु ठंड से मर चुके हैं. इस बार भी इन पर मौसम की मार पड़ रही है. बेसहारा पशुओं की स्थिति दयनीय बनी हुई है. सड़कों पर पशु दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं. स्वास्थ्य की स्थिति भी गंभीर बनी हुई है. खाने के लिए उन्हें पर्यात चारा नहीं है और न ही छत नसीब है.
पूर्व अध्यक्ष ने कही ये बात: जिला परिषद कुल्लू की पूर्व अध्यक्ष रोहिणी चौधरी कहती हैं कि आए दिन बेसहारा पशु के स्थायी इंतजाम करने के लिए पंचायतें प्रशासन का सहयोग कर रही है. सड़कों पर गोवंश घूमने से रोकने संबंधी आदेशों को प्रभावी रूप से अमल में लाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि गोसदन के निर्माण के लिए पंचायत के पास अपनी भूमि होने की शर्त को हटा दिया जाना चाहिए.
'नए नियम शर्त बनाने की जरूरत': समाजसेवी दौलत भारती कहते हैं कि जनसहभागिता तय किए बिना गोसदन चलाना और पशुओं को बेसहारा छोड़ने से रोकना संभव नहीं है. सरकार को इस समस्या का हल निकालने के लिए जनता की भूमिका भी सुनिश्चित करनी होगी. समाजसेवी संस्था को इसके लिए आगे आना होगा और सरकार गोसदन के लिए औपचारिकताओं की शर्तें और नियम संस्था के हित में बनाने होंगे.
प्रशासन ने शुरू की मुहिम: डीसी कुल्लू आशुतोष गर्ग का कहना हैं कि वर्तमान में संचालित गोशालाओं के अलावा आश्रय स्थलों के निर्माण पर बल दिया जा रहा है. किसानों को भी इससे बड़ी राहत मिलेगी. गांवों में खेतों को उजाड़ रहे और शहरों में गंदा कूड़ा खाने को मजबूर गोवंश के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढने के लिए प्रशासन ने काम शुरू कर दिया है.
पढ़ें- डबल इंजन सरकार में भी हल नहीं हो पाया सेब आयात का मसला, संकट में हिमाचल की सेब आर्थिकी