लाहौल-स्पीति: लाहौल स्पीति के उदयपुर उपमंडल में बसा त्रिलोकीनाथ गांव में भगवान शिव का मंदिर देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है. यहां खास बात यह है कि यहां बौद्ध और हिन्दू धर्म के अनुयायी भगवान शिव की आराधना करते हैं. दुनिया में शायद यह इकलौता मंदिर है, जहां एक ही मूर्ति की पूजा दोनों धर्मों के लोग एक साथ करते हैं. वहीं, अटल टनल के बनने से जहां लाहौल घाटी अब 12 माह वाहनों के लिए खुल गया है, वहीं पर्यटकों की आवाजाही भी यहां बढ़ने लगी है. इसके अलावा लाहौल घाटी के उदयपुर उपमंडल के त्रिलोकीनाथ मंदिर भी रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, लेकिन सड़क की दुर्दशा सैलानियों को हैरान कर रही है.
हिंदुओं में त्रिलोकीनाथ देवता को भगवान शिव का रूप माना जाता है, जबकि बौद्ध इनकी पूजा आर्य अवलोकीतेश्वर के रूप में करते हैं. हिंदुओं के बीच मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. वहीं, बौद्धों के अनुसार पद्मसंभव 8वीं शताब्दी में यहां पर आए थे और उन्होंने इसी जगह पर पूजा की थी.
इस मंदिर की एक अन्य खास बात है कि इसके अंदरूनी मुख्य द्वार के दोनों छोर पर बने 2 स्तम्भ मनुष्य के पाप-पुण्य का फैसला करते हैं. मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति को अपने पाप और पुण्य के बारे में जानना हो वह इन संकरे शिला स्तंभों के मध्य से गुजर सकता है. यदि मनुष्य ने पाप किया होगा तो भले ही वह दुबला-पतला ही क्यों न हो वह इनके पार नहीं जा पाता. वहीं, यदि किसी मनुष्य ने पुण्य कमाया हो तो भले ही उसका शरीर विशालकाय क्यों न हो वह इन स्तंभों के पार चला जाता है.
यहां एक ही छत के नीचे शिव और बुद्ध के लिए समर्पित दीप जलाए जाते हैं. लाहौल घाटी में हिंदू व बुद्धिष्ट दोनों ही धर्मों के लोग रहते हैं और सबका आपस में भाईचारे का रिश्ता है. मंदिर के कारदार वीर बहादुर सिंह का कहना है कि पाप-पुण्य की इस परंपरा का सदियों से निर्वहन होता आ रहा है. उन्होंने कहा कि स्तंभों के बीच फंसने वाला भविष्य में सद्मार्ग पर चलने का प्रण करके मंदिर से जाता है.इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने वनवास के दौरान किया था.
वहीं, अगस्त के महीने में त्रिलोकीनाथ के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, क्योंकि इस माहीने में पोरी मेला आयोजित होता है, जिसमें कई लोग शामिल होने आते हैं. पोरी मेला त्रिलोकीनाथ मंदिर और गांव में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला तीन दिनों का भव्य त्यौहार है, जिसमें हिंदू और बौद्ध दोनों बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं. इस पवित्र उत्सव के दौरान सुबह-सुबह, भगवान को दही और दूध से नहलाया जाता है और लोग बड़ी संख्या में मंदिर के आसपास इकट्ठा होते हैं और ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं. इस त्यौहार में मंदिर के अन्य अनुष्ठानों का पालन भी किया जाता है.
लाहौल घाटी के उदयपुर उपमंडल में भगवान त्रिलोकीनाथ का भव्य मंदिर बना हुआ है. भगवान त्रिलोकीनाथ के प्रति जहां हिमाचल के लोगों में काफी श्रद्धा है, वहीं अटल टनल बनने के बाद देश के विभिन्न राज्यों से भी श्रद्धालु भगवान त्रिलोकीनाथ के दर्शनों को पहुंच रहे हैं, लेकिन खराब सड़क की हालत को देखकर उनके मन को भी ठेस पहुंच रही है.
उदयपुर सड़क मार्ग से त्रिलोकीनाथ मंदिर के लिए करीब 8 किलोमीटर का सड़क मार्ग लिंक होकर जाता है. करीब 8 किलोमीटर सड़क जहां अधिकतर जगहों पर सिंगल है, वहीं सड़क पूरी तरह से कीचड़ से भी लबालब नजर आती है. इन दिनों बाहरी राज्यों के श्रद्धालु भी अपने वाहन लेकर त्रिलोकीनाथ पहुंच रहे हैं, लेकिन सड़क की बदहाली के चलते उन्हें खासी दिक्कतें उठानी पड़ रही है. कई जगहों पर वाहनों को पास देने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है.
त्रिलोकीनाथ मंदिर के कारदार वीर बहादुर ठाकुर का कहना है कि इस सड़क पर आज तक प्रशासन व सरकार का ध्यान भी नहीं गया है. अटल टनल बनने के बाद रोजाना यहां सैकड़ों पर्यटक पहुंच रहे हैं, लेकिन सड़क की दुर्दशा को देखते हुए वे भी काफी हैरान हैं. विश्व प्रसिद्ध त्रिलोकीनाथ मंदिर के रास्ते पर आखिर क्यों सरकार व प्रशासन की नजर नहीं पड़ी. स्थानीय लोगों ने भी समस्या के समाधान की मांग उठाई है.
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