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Pithori Amavasya 2023: पिठोरी अमावस्या आज, जानिए क्यों खास है ये अमावस्या, पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

14 सितंबर यानी आज पिठोरी अमावस्या मनाई जा रही है. सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व है. इस दिन पितरों की पूजा और तर्पण किया जाता है. इस अमावस्या को कुश ग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. (Pithori Amavasya 2023) (Auspicious Time of Pithori Amavasya)

Pithori Amavasya 2023
पिठोरी अमावस्या 2023
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 14, 2023, 11:39 AM IST

Updated : Sep 14, 2023, 1:35 PM IST

कुल्लू: सनातन धर्म में अमावस्या को बहुत खास माना जाता है. अमावस्या के दिन पितरों की पूजा करने के साथ-साथ स्नान का भी काफी महत्व है. भाद्रपद मास की इस अमावस्या को पिठोरी अमावस्या या कुश ग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर मास के कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है और भाद्रपद की अमावस्या तिथि 14 सितंबर वीरवार, यानी की आज मनाई जा रही है.

पूजा का शुभ मुहूर्त: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि आज सुबह 4:48 से शुरू हो गई है. यह अमावस्या तिथि 15 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 7:09 पर समाप्त होगी. उदया तिथि होने के चलते भाद्रपद अमावस्या आज ही मनाई जा रही है. अमावस्या तिथि के दिन प्रदोष काल में पूजा अर्चना करना बेहद शुभ माना गया है. ऐसे में प्रदोष मुहूर्त आज शाम 6:28 से रात 8:45 तक रहेगा और शुभ मुहूर्त की अवधि 2 घंटे 20 मिनट की होगी.

पिठोरी अमावस्या का महत्व: अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म के लिए भी उत्तम माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ पितरों की भी पूजा की जाती है. वहीं, आज भाद्रपद अमावस्या के दिन फाल्गुनी नक्षत्र योग का भी निर्माण हो रहा है. इसी दिन शनि अपनी स्वराशि कुंभ में वक्री अवस्था में भी घूमेंगे. भाद्रपद अमावस्या के दिन मां दुर्गा सहित 64 देवियों की आटे की आकृति बनाकर पूजा की जाती है. पिठोरी में पीठ शब्द का अर्थ है आटा. इसी वजह से इसे पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है. वहीं, इस दिन नदी या मैदान में लगी हुई कुश नामक घास को भी घर लाया जाता है. जिसके चलते इसे कुश ग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है.

पिंडदान और तर्पण का महत्व: कुल्लू के आचार्य पुष्पराज ने बताया कि भाद्रपद अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करने, पिंडदान व तर्पण आदि करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके अलावा पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है. अमावस्या के दिन सूर्य उदय से पहले स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ दिया जाता है. उसके बाद भगवान भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. इसी दिन दोपहर के समय काला तिल, कुश और फूल डालकर पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी तर्पण किया जाता है.

ये भी पढ़ें: Ganesh Chaturthi 2023: इस दिन देश भर में मनाई जाएगी गणेश चतुर्थी, 10 दिनों तक घर में होगा गणपति का पूजन

कुल्लू: सनातन धर्म में अमावस्या को बहुत खास माना जाता है. अमावस्या के दिन पितरों की पूजा करने के साथ-साथ स्नान का भी काफी महत्व है. भाद्रपद मास की इस अमावस्या को पिठोरी अमावस्या या कुश ग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर मास के कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है और भाद्रपद की अमावस्या तिथि 14 सितंबर वीरवार, यानी की आज मनाई जा रही है.

पूजा का शुभ मुहूर्त: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि आज सुबह 4:48 से शुरू हो गई है. यह अमावस्या तिथि 15 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 7:09 पर समाप्त होगी. उदया तिथि होने के चलते भाद्रपद अमावस्या आज ही मनाई जा रही है. अमावस्या तिथि के दिन प्रदोष काल में पूजा अर्चना करना बेहद शुभ माना गया है. ऐसे में प्रदोष मुहूर्त आज शाम 6:28 से रात 8:45 तक रहेगा और शुभ मुहूर्त की अवधि 2 घंटे 20 मिनट की होगी.

पिठोरी अमावस्या का महत्व: अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म के लिए भी उत्तम माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ पितरों की भी पूजा की जाती है. वहीं, आज भाद्रपद अमावस्या के दिन फाल्गुनी नक्षत्र योग का भी निर्माण हो रहा है. इसी दिन शनि अपनी स्वराशि कुंभ में वक्री अवस्था में भी घूमेंगे. भाद्रपद अमावस्या के दिन मां दुर्गा सहित 64 देवियों की आटे की आकृति बनाकर पूजा की जाती है. पिठोरी में पीठ शब्द का अर्थ है आटा. इसी वजह से इसे पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है. वहीं, इस दिन नदी या मैदान में लगी हुई कुश नामक घास को भी घर लाया जाता है. जिसके चलते इसे कुश ग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है.

पिंडदान और तर्पण का महत्व: कुल्लू के आचार्य पुष्पराज ने बताया कि भाद्रपद अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करने, पिंडदान व तर्पण आदि करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके अलावा पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है. अमावस्या के दिन सूर्य उदय से पहले स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ दिया जाता है. उसके बाद भगवान भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. इसी दिन दोपहर के समय काला तिल, कुश और फूल डालकर पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी तर्पण किया जाता है.

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Last Updated : Sep 14, 2023, 1:35 PM IST
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