कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में पल-पल बदलता मौसम सेब की फसल के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है. ऐसे में आने वाले दिनों में भी अगर मौसम की यही स्थिति रही तो, सेब के दाम काफी बढ़ जाएंगे. ऐसे में हो सकता है कि इस साल लोगों को सेब डेढ़ सौ से ₹200 प्रति किलो से खरीदना पड़ेगा. हिमाचल प्रदेश में शिमला जिला के बाद कुल्लू जिला सेब की बागवानी के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन बार-बार बदल रहे मौसम के चलते कुल्लू जिला में सेब की डेढ़ लाख बेटियां बारिश, ओलावृष्टि और अंधड़ की चपेट में आ गई है. ऐसे में जिला कुल्लू के बागवान भी मौसम की स्थिति को लेकर खासे चिंतित हैं.
2745 हेक्टेयर में सेब की खेती प्रभावित: बागवानी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 1 मार्च से लेकर 8 जून तक से डेढ़ लाख सेब की पेटियां खराब हो गई है. इससे बागवानों को 13 करोड़ 16 लाख रुपए का नुकसान भी हुआ है. जिला कुल्लू में 27,000 हेक्टेयर में सेब की खेती की जाती है और जिला कुल्लू के 75 हजार बागवान सेब बागवानी से जुड़े हुए हैं. ऐसे में बागबानी विभाग के अनुसार 2745 हेक्टेयर का इलाका खराब मौसम के चलते प्रभावित हुआ है.
कुल्लू में 30 से 40% सेब की फसल खराब: जिला कुल्लू में अबकी बार मौसम की स्थिति कुछ ठीक नहीं है. क्योंकि लगातार आए दिन बारिश ओलावृष्टि व अंधड़ की स्थिति यहां पर बनी हुई है. वहीं, इस साल ठंड होने के चलते सेब की प्रक्रिया शुरू होने में अभी समय लगा है. सेब के बगीचों में फ्लावरिंग और सेटिंग के समय में भी मौसम लगातार खराब रहा. ऐसे में जिला कुल्लू में 30 से 40% सेब की फसल खराब हो गई है.
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हिमालय के ऊंचाई क्षेत्र पर सिमटी सेब पट्टी: सेब उत्पादकों और विशेषज्ञों के अनुसार, सेब का उत्पादन घटने के पीछे मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है. मौसम में आए बदलाव के कारण हिमाचल प्रदेश में सेब बेल्ट लगभग 1,000 फीट तक स्थानांतरित हो गई है. पहले हमें समुद्र तल से 4000 से 5000 फीट की ऊंचाई पर अच्छी गुणवत्ता वाले सेब मिलते थे. अब, अच्छी गुणवत्ता वाला सेब केवल 6,000 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित पेड़ों पर ही उगता है. तापमान में बढ़ोतरी के कारण यह सेब पट्टी हिमालय के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सिमट रही है. इससे सेब के उत्पादन में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है.
जलवायु परिवर्तन से सेब का उत्पादन घटा: सर्दियों के दौरान ठंड कम होने से कुल उत्पादन के साथ-साथ सेब की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है. सर्दियों के दौरान असामान्य रूप से गर्म मौसम, बेमौसम बारिश या बिल्कुल भी बारिश जैसा मौसम बदल रहा है. सेब के घटते उत्पादन में ये सभी जलवायु गड़बड़ी एक प्रमुख कारक रही है. रॉयल डिलीशियस जैसी पुरानी सेब किस्मों को 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान के 1200-1400 चिलिंग घंटों की आवश्यकता होती है. वहीं, नई किस्मों को ठीक से फूलने और फल देने के लिए 300-500 चिलिंग ऑवर्स की आवश्यकता होती है. हिमाचल प्रदेश में अभी भी सेब की पुरानी वैरायटी लगी हुई है. जिन पर सेब का उत्पादन पूरी तरह से मौसम पर निर्भर करता है.
सेब उत्पादन घटने से दाम बढ़ने के आसार: बागवान प्रेम शर्मा और टीकम ठाकुर का कहना है कि सेब सीजन के दौरान बागवानों को 40 से लेकर ₹100 तक प्रति किलो दाम मिलते रहे हैं, लेकिन इस साल सेब का उत्पादन 50% तक कम होने का भी अनुमान लगाया जा रहा है. क्योंकि बारिश के चलते तापमान ठंडा हो रहा है और सेब भी सही आकार नहीं ले पा रहा है. ऐसे में आने वाले दिनों में सेब के दाम बढ़ सकते हैं और ग्राहकों को भी अधिक दाम पर सेब खरीदने पढ़ सकते हैं.
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बारिश की वजह से बागवानों को खासा नुकसान: बागवानी विभाग के विशेषज्ञ किशोरी लाल ठाकुर का कहना है कि जिला कुल्लू में सेब के लिए मौसम ठीक नहीं चल रहा है. यहां लगातार मौसम खराब के चलते सेब के विकास की सभी तरह की प्रक्रिया प्रभावित हुई है. अगर आने वाले दिनों में अभी मौसम की यही स्थिति रही तो सेब के बागवानों को खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
13 करोड़ 16 लाख रुपए का नुकसान: जिला कुल्लू बागवानी विभाग के उपनिदेशक बीएम चौहान का कहना है कि कुल्लू में सेब की फसल को 13 करोड़ 16 लाख रुपए का नुकसान पहुंचा है. वहीं, जिला कुल्लू में खराब मौसम के चलते 2770 हेक्टेयर में सेब की फसल प्रभावित हुई है. सबसे अधिक प्रभावित उपमंडल आनी और निरमंड का है. जहां पर ओलावृष्टि ने के कारण से सेब की फसल अधिक खराब हुई है.
अर्ली वैरायटी के सेब का उत्पादन: हिमाचल प्रदेश की मंडियों में अर्ली वैरायटी के सेब की फसल ने अपनी में देनी शुरू कर दी है. वहीं, जिला कुल्लू की अगर बात करें तो यहां पर सेब की फसल जुलाई माह में आना शुरू हो जाती है, जो सितंबर माह तक रहती है. अगस्त और जुलाई माह में सेब की फसल अपने यौवन पर रहती है और सबसे अधिक पेटियों का उत्पादन भी इन दिनों में किया जाता है. जिला कुल्लू में 2022 में 34 लाख 85 हजार से अधिक सेब की पेटिया सब्जी मंडी पहुंची थी.
सेब के लिए चिलिंग आवर्स की जरूरत: सेब की फसल के लिए सर्दियों में 13 डिग्री से नीचे तक का तापमान चाहिए होता है और उसके बाद मार्च माह के बाद तापमान में गिरावट नहीं होनी चाहिए. अगर सेब के पेड़ के चिलिंग आवर सर्दियों में पूरे नहीं होते तो उसे भी सेब की फसल बुरी तरह से प्रभावित होती है. वहीं, अप्रैल माह के बाद अगर तापमान ठंडा रहता है तो, इससे सेब की फ्लावरिंग और सेटिंग भी प्रभावित होती है.
75 हजार बागवान सेब बागवानी से जुड़े: बागवानी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 1 मार्च से लेकर 8 जून तक से डेढ़ लाख सेब की पेटियां खराब हो गई है. इससे बागवानों को 13 करोड़ 16 लाख रुपए का नुकसान भी हुआ है. जिला कुल्लू में 27000 हेक्टेयर में सेब की खेती की जाती है और जिला कुल्लू के 75 हजार बागवान सेब बागवानी से जुड़े हुए हैं. ऐसे में बागबानी विभाग के अनुसार 2745 हेक्टेयर का इलाका खराब मौसम के चलते प्रभावित हुआ है.
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