कुल्लू: देवभूमि हिमाचल में देव परंपरा वैदिक काल से ही चली आ रही है. इस परंपरा ने हमारी समृद्ध संस्कृति को भी जीवित रखा हुआ है. स्थानीय भाषा में इसे जगती कहते है. विश्व कल्याण या किसी अहम मुद्दे के लिए होने वाले इस जगती को देव संसद या धर्म संसद भी कहा जाता है.
वर्ष 2014 के बाद एक बार फिर जगती का आयोजन होने जा रहा है. देव परंपराओं से छेड़छाड़ के मामले को लेकर देवता धूम्मल नाग ने 24 नवंबर को धर्म संसद करवाने के आदेश दिए हैं. कुल्लू जिला के देव समाज की इस अद्भुत आयोजन में घाटी के देवता भाग लेते हैं.
राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य देवताओं के प्रतिनिधियों को निमंत्रण यानी छन्दा देते हैं. उसके बाद तय तिथि और स्थान पर सभी देवता जगती के लिए एकत्रित होते हैं. इस दिन भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह भगवान कि पूजा करने के बाद जगती में शामिल होने वाले सभी देवताओं के गुर के आगे पूछ (किसी भी विषय के बारे में देव गुर से पूछना) डालते हैं. पूछ के जरिए सभी गुर अपने देव वचन सुनाते हैं. देवताओं की संयुक्त विचार के बाद एक फैसला सुनाया जाता है.
क्या है जगती?
जगती यानी के न्याय और पट की मूर्ति. जगती शब्द जगत से आया है और जगती पूछ का मतलब है कि ऐसा पवित्र स्थान जहां पर बैठकर जगत यानी पुरे ब्रह्मनाद के बारे में पूछताछ की जाए और किसी विपदा के बारे में जानकरी ली जाए. इस परंपरा को लोकतंत्र का एक बेहतर उदाहरण कहा जा सकता है, जिसमें देव समाज एकजुट होकर विश्व कल्याण के बारे में बात करते हैं. जगती में आने वाले निर्णय का पुरा समाज पालन करता है.
देवआस्था का प्रतिक है जगती पट!
मनाली से कुछ दूरी पर ऐतिहासिक गांव नग्गर कभी कुल्लू रियासत की राजधानी होती थी. मान्यता है कि सतुयग में हजारों देवी-देवताओं ने मधुमक्खियों का रूप धारण कर नेहरू कुंड पहाड़ से एक जगती स्थापित किया था.
आज भी जब कुल्लू मनाली पर कोई संकट या विपदा आती है तो देवी- देवता इस जगती पट में एकत्रित होकर उसका समाधान निकालते है. जगती पट का आदेश सभी लोगों को मानना पड़ता है. अवहेलना करने वाले को दंड का भागी बनना पड़ता है.
कहां-कहां होती है जगती
जगती का आयोजन भगवान रघुनाथ जी के मंदिर, नग्गर में स्थित जगती पट मन्दिर और ढालपुर मैदान में किया जाता है. कई बार राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य यानी राजा भी किसी विशेष समस्या या विश्व शांति के लिए इसे बुलाते हैं.
कैसे तय होता है जगती का दिन
जगती देव आदेश पर ही होती है. अगर इसका आयोजन नगर स्थित जगती पट में होना है तो उसके लिए माता त्रिपुरा सुंदरी को पूछा जाता है और जब रघुनाथ जी के यहां होनी हो तो भगवान रघुनाथ जी ही दिन तय करते हैं.
कब कब हुई जगती
कुल्लू में जब भीषण सूखा पडा था तब रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह के दादा ने जगती बुलाई थी. दूसरी बार घाटी में महामारी फैलने पर उनके पिता राजा महेन्द्र सिंह ने 16 फरवरी 1971 को जगती बुलवाई थी. तीसरी बार 16 फरवरी 2007 में स्की विलेज पर लोगों के विरोध और सरकार के निर्णय पर फैसला लेने पर जगती को बुलाया गया था.
इसके बाद आखिरी बार पशु बलि पर रोक लगाने के न्यायालय के फैसले पर निर्णय लेने के लिए 26 सितंबर 2014 को जगती बुलाई गई थी. अब एक बार फिर जगती पट का आयोजन होने जा रहा है.
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