ETV Bharat / state

अद्भुत हिमाचल: यहां लगती है देवी-देवताओं की संसद, आज भी 'जगती पट' लोगों की श्रद्धा का केंद्र

अद्भुत हिमाचल: ईटीवी भारत की खास सीरीज 'अद्भुत हिमाचल' में आज हम आपको जिला कुल्लू के एक ऐसे अनूठे धर्म संसद के बारे में बताएंगे जहां लोगों के वाद-विवादों के साथ देवी- देवताओं के मामले भी यहीं निपटाए जाते हैं.

अद्भुत हिमाचल: यहां लगती है ‘देवी-देवताओं’ की संसद, आज भी ‘जगती पट्ट’ लोगों की श्रद्धा का केंद्र
author img

By

Published : Nov 22, 2019, 12:29 PM IST

Updated : Nov 22, 2019, 12:35 PM IST

कुल्लू: देवभूमि हिमाचल में देव परंपरा वैदिक काल से ही चली आ रही है. इस परंपरा ने हमारी समृद्ध संस्कृति को भी जीवित रखा हुआ है. स्थानीय भाषा में इसे जगती कहते है. विश्व कल्याण या किसी अहम मुद्दे के लिए होने वाले इस जगती को देव संसद या धर्म संसद भी कहा जाता है.

वर्ष 2014 के बाद एक बार फिर जगती का आयोजन होने जा रहा है. देव परंपराओं से छेड़छाड़ के मामले को लेकर देवता धूम्मल नाग ने 24 नवंबर को धर्म संसद करवाने के आदेश दिए हैं. कुल्लू जिला के देव समाज की इस अद्भुत आयोजन में घाटी के देवता भाग लेते हैं.

राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य देवताओं के प्रतिनिधियों को निमंत्रण यानी छन्दा देते हैं. उसके बाद तय तिथि और स्थान पर सभी देवता जगती के लिए एकत्रित होते हैं. इस दिन भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह भगवान कि पूजा करने के बाद जगती में शामिल होने वाले सभी देवताओं के गुर के आगे पूछ (किसी भी विषय के बारे में देव गुर से पूछना) डालते हैं. पूछ के जरिए सभी गुर अपने देव वचन सुनाते हैं. देवताओं की संयुक्त विचार के बाद एक फैसला सुनाया जाता है.

वीडियो रिपोर्ट.

क्या है जगती?
जगती यानी के न्याय और पट की मूर्ति. जगती शब्द जगत से आया है और जगती पूछ का मतलब है कि ऐसा पवित्र स्थान जहां पर बैठकर जगत यानी पुरे ब्रह्मनाद के बारे में पूछताछ की जाए और किसी विपदा के बारे में जानकरी ली जाए. इस परंपरा को लोकतंत्र का एक बेहतर उदाहरण कहा जा सकता है, जिसमें देव समाज एकजुट होकर विश्व कल्याण के बारे में बात करते हैं. जगती में आने वाले निर्णय का पुरा समाज पालन करता है.

देवआस्था का प्रतिक है जगती पट!
मनाली से कुछ दूरी पर ऐतिहासिक गांव नग्गर कभी कुल्लू रियासत की राजधानी होती थी. मान्यता है कि सतुयग में हजारों देवी-देवताओं ने मधुमक्खियों का रूप धारण कर नेहरू कुंड पहाड़ से एक जगती स्थापित किया था.

आज भी जब कुल्लू मनाली पर कोई संकट या विपदा आती है तो देवी- देवता इस जगती पट में एकत्रित होकर उसका समाधान निकालते है. जगती पट का आदेश सभी लोगों को मानना पड़ता है. अवहेलना करने वाले को दंड का भागी बनना पड़ता है.

कहां-कहां होती है जगती
जगती का आयोजन भगवान रघुनाथ जी के मंदिर, नग्गर में स्थित जगती पट मन्दिर और ढालपुर मैदान में किया जाता है. कई बार राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य यानी राजा भी किसी विशेष समस्या या विश्व शांति के लिए इसे बुलाते हैं.

कैसे तय होता है जगती का दिन
जगती देव आदेश पर ही होती है. अगर इसका आयोजन नगर स्थित जगती पट में होना है तो उसके लिए माता त्रिपुरा सुंदरी को पूछा जाता है और जब रघुनाथ जी के यहां होनी हो तो भगवान रघुनाथ जी ही दिन तय करते हैं.

कब कब हुई जगती
कुल्लू में जब भीषण सूखा पडा था तब रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह के दादा ने जगती बुलाई थी. दूसरी बार घाटी में महामारी फैलने पर उनके पिता राजा महेन्द्र सिंह ने 16 फरवरी 1971 को जगती बुलवाई थी. तीसरी बार 16 फरवरी 2007 में स्की विलेज पर लोगों के विरोध और सरकार के निर्णय पर फैसला लेने पर जगती को बुलाया गया था.

इसके बाद आखिरी बार पशु बलि पर रोक लगाने के न्यायालय के फैसले पर निर्णय लेने के लिए 26 सितंबर 2014 को जगती बुलाई गई थी. अब एक बार फिर जगती पट का आयोजन होने जा रहा है.

ये भी पढ़ेंः अद्भुत हिमाचल: गद्दी समुदाय की अनूठी परंपरा, लिखित समझौते के बाद नहीं टल सकती शादी

कुल्लू: देवभूमि हिमाचल में देव परंपरा वैदिक काल से ही चली आ रही है. इस परंपरा ने हमारी समृद्ध संस्कृति को भी जीवित रखा हुआ है. स्थानीय भाषा में इसे जगती कहते है. विश्व कल्याण या किसी अहम मुद्दे के लिए होने वाले इस जगती को देव संसद या धर्म संसद भी कहा जाता है.

वर्ष 2014 के बाद एक बार फिर जगती का आयोजन होने जा रहा है. देव परंपराओं से छेड़छाड़ के मामले को लेकर देवता धूम्मल नाग ने 24 नवंबर को धर्म संसद करवाने के आदेश दिए हैं. कुल्लू जिला के देव समाज की इस अद्भुत आयोजन में घाटी के देवता भाग लेते हैं.

राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य देवताओं के प्रतिनिधियों को निमंत्रण यानी छन्दा देते हैं. उसके बाद तय तिथि और स्थान पर सभी देवता जगती के लिए एकत्रित होते हैं. इस दिन भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह भगवान कि पूजा करने के बाद जगती में शामिल होने वाले सभी देवताओं के गुर के आगे पूछ (किसी भी विषय के बारे में देव गुर से पूछना) डालते हैं. पूछ के जरिए सभी गुर अपने देव वचन सुनाते हैं. देवताओं की संयुक्त विचार के बाद एक फैसला सुनाया जाता है.

वीडियो रिपोर्ट.

क्या है जगती?
जगती यानी के न्याय और पट की मूर्ति. जगती शब्द जगत से आया है और जगती पूछ का मतलब है कि ऐसा पवित्र स्थान जहां पर बैठकर जगत यानी पुरे ब्रह्मनाद के बारे में पूछताछ की जाए और किसी विपदा के बारे में जानकरी ली जाए. इस परंपरा को लोकतंत्र का एक बेहतर उदाहरण कहा जा सकता है, जिसमें देव समाज एकजुट होकर विश्व कल्याण के बारे में बात करते हैं. जगती में आने वाले निर्णय का पुरा समाज पालन करता है.

देवआस्था का प्रतिक है जगती पट!
मनाली से कुछ दूरी पर ऐतिहासिक गांव नग्गर कभी कुल्लू रियासत की राजधानी होती थी. मान्यता है कि सतुयग में हजारों देवी-देवताओं ने मधुमक्खियों का रूप धारण कर नेहरू कुंड पहाड़ से एक जगती स्थापित किया था.

आज भी जब कुल्लू मनाली पर कोई संकट या विपदा आती है तो देवी- देवता इस जगती पट में एकत्रित होकर उसका समाधान निकालते है. जगती पट का आदेश सभी लोगों को मानना पड़ता है. अवहेलना करने वाले को दंड का भागी बनना पड़ता है.

कहां-कहां होती है जगती
जगती का आयोजन भगवान रघुनाथ जी के मंदिर, नग्गर में स्थित जगती पट मन्दिर और ढालपुर मैदान में किया जाता है. कई बार राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य यानी राजा भी किसी विशेष समस्या या विश्व शांति के लिए इसे बुलाते हैं.

कैसे तय होता है जगती का दिन
जगती देव आदेश पर ही होती है. अगर इसका आयोजन नगर स्थित जगती पट में होना है तो उसके लिए माता त्रिपुरा सुंदरी को पूछा जाता है और जब रघुनाथ जी के यहां होनी हो तो भगवान रघुनाथ जी ही दिन तय करते हैं.

कब कब हुई जगती
कुल्लू में जब भीषण सूखा पडा था तब रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह के दादा ने जगती बुलाई थी. दूसरी बार घाटी में महामारी फैलने पर उनके पिता राजा महेन्द्र सिंह ने 16 फरवरी 1971 को जगती बुलवाई थी. तीसरी बार 16 फरवरी 2007 में स्की विलेज पर लोगों के विरोध और सरकार के निर्णय पर फैसला लेने पर जगती को बुलाया गया था.

इसके बाद आखिरी बार पशु बलि पर रोक लगाने के न्यायालय के फैसले पर निर्णय लेने के लिए 26 सितंबर 2014 को जगती बुलाई गई थी. अब एक बार फिर जगती पट का आयोजन होने जा रहा है.

ये भी पढ़ेंः अद्भुत हिमाचल: गद्दी समुदाय की अनूठी परंपरा, लिखित समझौते के बाद नहीं टल सकती शादी

Intro:देव संस्कृति को लेकर अहम फैसले लेती है देव संसद

अदभुत हिमाचल के लिएBody:देव समाज में आज भी बहुत से ऐसी परम्पराए है, जो इसे दुनिया से अलग बनाती है। कुल्लु जनपद में ऐसी ही परम्परा है जगती पूछ। अक्सर विश्व कल्याण या किसी अहम मुद्दे के लिए होने वाले इस जगती को देव संसद या धर्म संसद भी कहा जाता है। वर्ष 2014 के बाद अब जगती पुनः कुल्लु के हर नागरिक की जुबान पर है। इसका कारण है, की 5 साल बाद एक बार फिर इसका आयोजन होने जा रहा है ।
इस बार देवता धूम्मल नाग ने इसे करवाने के आदेश दिए है ओर कारण देव परम्पराओ से छेड़छाड़ का है। कुल्लु जिला के देव समाज की इस अद्भुत आयोजन में घाटी के देवता भाग लेते है। इसमें पहले राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य जो राजा होता है ओर वह देवताओ के प्रतिनिधियों यानी गुर, पुजारी ओर कारदार को निमंत्रण यानी छन्दा देता है। उंसके बाद तय तिथि ओर स्थान पर सभी देवता जगती के लिए एकत्रित होते हैं। इसमे देवता के गुर उनके निशाना जिसमें घण्टी या धडछ आदि सहित आते हैं। इस दिन भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह सबसे पहले भगवान कि पूजा करने के बाद जगती में शामिल होने वाले अभी देवताओ की गुर के आगे पूछ डालते है और जिस विषय पर जगती बुलाई जाती है उस पर राय ली जाती जाती है। पुछ के जरिये सभी गुर अपने देव वचन सुनाते है। देवताओं की संयुक्त विचार के बाद एक फैसला सुनाया जाता है।

क्या है जगती
जगती शब्द जगत से आया है और जगती पूछ का मतलब है कि वह पवित्र स्थान जहाँ पर बैठकर जगत यानी पुरे ब्रह्मनाद के बारे में पूछताछ की जाए और किसी विपदा के बारे में जानकरी ली जाए। सदियों पुरानी इस परम्परा को कुल्लु में आज भी कायम रखा गया है। इस परम्परा को लोकतंत्र का एक बेहतर उदाहरण कहा जा सकता है, जिसने देव समाज एकजुट होकर संस्क्रति के बचाव और विश्व कल्याण बारे बात करता है । जगती में आने वाले निर्णय का पुरा समाज पालन करता है ।

कहाँ कहाँ होती है जगती
जगती का आयोजन भगवान रघुनाथ जी के मंदिर, नग्गर में स्तिथ जगती पट्ट मन्दिर, ढालपुर मैदान में किया जाता है। इसमें देवता किसी समस्या पर इसे करवाने के लिए कहते है। कई बार रॉज परिवार के सबसे बड़े सदस्य यानी राजा भी किसी विशेष समस्या या विश्व शांति के लिए इसको बुलाते है।

इन देवताओं की विशेष भूमिका
जगती के दौरान इसमें भाग लेने वाले देवताओं को निमंत्रण के बाद इसमे भाग लेना न लेना उनकी मर्जी पर होता है, लेकिन इसमें नग्गर की देवी त्रिपुरा सुंदरी, कोटकण्डी के पंजवीर देवता, देवता जमलू ओर माता हिडिंबा की मुख्य भूमिका रहती है। पूछ के दौरान इनको विशेष तौर पर पुछा जाता है।।


कैसे तय होता है जगती का दिन
जगती के लिए दिन देवता ही तय करते हैं श्री रघुनाथ जी के छड़ीबरदार महेश सिंह ने बताया कि जगती देव आदेश पर ही होती है अगर इसका आयोजन नगर स्थित जगती पट में होना है तो उसके लिए माता त्रिपुरा सुंदरी को पूछा जाता है और जब रघुनाथ जी के यहां होने हो तो भगवान रघुनाथ जी ही दिन तय करते हैं इस बार होने वाले जगती का दिन भगवान रघुनाथ ही बताएंगे इसके लिए शुभ मुहूर्त देखकर उनसे आज्ञा ली जाएगी

कब कब हुई जगती
जानकारी के मुताबिक कुल्लू में जब भीषण सूखा पडा था तो रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह के दादा दादा ने जगती बुलाई थी। दूसरी बार उनके पिता राजा महेन्द्र सिंह ने 16 फरवरी 1971 में जब घाटी में महामारी फैली थी और तीसरी बार 16 फरवरी 2007 में स्की विलेज पर लोगों के विरोध और सरकार के निर्णय पर फैसला लेने पर जगती को बुलाया गया था। इसके बाद पशु बलि पर रोक लगाने के न्यायालय के फैसले पर निर्णय लेने के लिए 26 सितंबर 2014 को पजगती बुलाई गई है।


स्की विल्लेज तक का फैसला हुआ जगती में
वर्ष 2007 में ज। सरकार ने कुल्ली मनाली में स्की विल्लेज बनाने का निर्णय लिया था तो उस दौरान देव संस्क्रति ओर पहाड़ो से छेड़छाड़ के विरोध में लोग आ गए। इसके बाद सरकार ने जब तट किया कि स्की विल्लेज बनेगा तो, लोगों के विरोध को देखते हुए छड़ीबरदर महेश्वर सिंह ने जगती बुलाई । जगती में देवताओ में स्की विल्लेज का विरोध किया और उसके बाद से ये प्रोजेक्ट सिरे नही चढ़ा।


क्या है जगती पट
नगर कैसल में स्थित जगती पट्ट को देवताओं का सिहासन कहा जाता है यहां पर सभी देवताओं के गुरु एकत्रित होकर विश्वकल्याण या किसी समस्या के निवारण के लिए जगती पूछ आयोजित करते हैं जगती पट मंदिर के विषय में रोचक कथा है कहा जाता है कि जगती पट शीला को घाटी के समस्त देवी-देवता मधुमक्खियों का रूप धारण कर लाए थे भृगुतुंग पहाड़ी के छोटे भाग से इस शीला को काट कर यहां लाया गया था सिहासन आकार होने के कारण इसे समस्त देवी देवताओं का सिहासन माना जाता है यह शिला पांच बाई आठ बाई छ आकार की है नगर 1460 साल तक कुल्लू के राजाओं की राजधानी रहा है Conclusion:किसी भी प्राकृतिक आपदा व संकट के समय देवी देवताओं की प्रतिनिधि गुर पुजारी आदि देवी-देवताओं की घंटी, दुछड़ यहां निशानियो के साथ यहाँ एकत्रित होते हैं इस सभा का आयोजन कुल्लू राज परिवार का प्रमुख देवताओं के आदेश अनुसार करता है यहां पर राजमहल से भी देवताओं की निशानी लाई जाती है और यहां पर देव वचन यानी पूछ दी जाती है

बाइट - महेश्वर सिंह मुख्य छड़ीबरदार भगवान रघुनाथ
Last Updated : Nov 22, 2019, 12:35 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.