किन्नौर: जनजातीय जिले में मौसम के बदलते मिजाज के बाद सेब की फसल पर भी असर पड़ता दिखाई दे रहा है. निचले क्षेत्रों में अब सेब की फसल तैयार हो रही ,ऐसे में सेब के पेड़ के तनों और पत्तों में सफेद वूली एफिड नामक बीमारी फैलना शुरू हो गई. इससे सेब के पेड़ों पर खतरा मंडराने से बागवान चिंतित हैं. वूली एफिड के अलावा अब हल्की शिकायत स्कैब भी आने लगी है. सेब के दानों में काले दब्बे दिखने लगे हैं. जिससे बागवानों की चिंता बढ़ गई. जिले में इस वर्ष लंबे समय के बाद सेब की फसल में स्कैब और हुलिया फीड के अलावा दूसरी बीमारियों की शिकायत देखने को नहीं मिली.
निचले क्षेत्रों में वूली एफिड और ऊपरी क्षेत्रों में स्केब बीमारी की शुरुआत हो चुकी. इसने बागवानों को चिंता में डाल दिया हैं. बता दें कि पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष सेब की फसल में अधिक बीमारी नहीं, लेकिन आगामी दिनों में अब स्कैब और वूली एफिड नामक बीमारी बागवानों को परेशान कर सकती हैं. सेब की फसल में भी इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है.
कुल्लू में भी बागवान परेशान
पहाड़ी इलाकों में सबसे ज्यादा सेब की खेती की जाती है. जिला कुल्लू में सेब की फसल पर स्कैब रोग के लक्षण देखने को मिले हैं, जिसकी वजह से बागवान परेशान हैं. वहीं, अब बागवानों ने उद्यान विभाग से इसकी शिकायत की है. इसकी जांच के लिए राज्य का बागवानी विभाग सक्रिय हो गया है. राज्य के शिमला, कुल्लू और मंडी क्षेत्रों के सेब के बगीचों में बीमारी के लक्षण देखे गए हैं. बागवानी विशेषज्ञ का मानना है कि स्कैब का नियंत्रण प्रथम अवस्था में किया जाना चाहिए समय पर अगर इसका नियंत्रण न किया गया, तो यह रोग धीरे-धीरे पूरे बगीचे में फैल जाता है.
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