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किन्नौर में चल रहे फुलायच मेले का समापन, ग्रामीणों ने देवता को अर्पित किया ब्रह्मकमल

किन्नौर के उरणी गांव में चल रहे तीन दिवसीय फुलायच मेले का समापन हो गया है. मेले की शुरुआत 12 अक्टूबर को हुई थी. इस दौरान स्थानीय ग्रामीण अपने आराध्य देवता बद्री नारायण के मंदिर में इकट्ठा होते हैं और उन्हें पहाड़ों से लाकर ब्रह्मकमल अर्पित करते हैं.

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Published : Oct 16, 2021, 5:06 PM IST

किन्नौर: जिले के पग्रमंग क्षेत्र के उरणी गांव में चल रहे तीन दिवसीय फुलायच मेला का आज यानी शनिवार को समापन हो गया है. फुलायच का अर्थ फूलों का मेला होता है, जिसमे स्थानीय ग्रामीण पहाड़ों से ब्रह्मकमल लाकर अपने देवता को समर्पित करते है. उरणी गांव में आयोजित हुए फुलायच मेले की शुरूआत 12 अक्टूबर को हुई थी.

मेले में स्थानीय ग्रामीण अपने आराध्य देवता बद्री नारायण के मन्दिर प्रांगण में इकट्ठा होते हैं. इस दौरान सभी ग्रामीण किन्नौर की पारंपरिक वेशभूषा पहनकर आते हैं और स्थानीय देवता को ब्रह्मकमल समर्पित कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. इसके बाद तीन दिनों तक यहां पर पारम्परिक मेले का आयोजन होता है.

वीडियो.

किन्नौर के पग्रमंग इलाके में साल में एक बार फुलायच मेला मनाया जाता है. यह मेला गांव में आपसी सामंजस्य व देव समाज के नियमों को बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सैकड़ों वर्ष पुराने इस मेले के आयोजन का उद्देश्य गांव की सुख शांति व समृद्धि के लिए होता है, जिसे आज भी जिले के लोग अपने-अपने ग्रामीण क्षेत्रो में अपने समय अनुसार मनाते हैं.

तीन दिन तक मनाए जाने वाले मेले के दौरान ग्रामीण अपने खेतीबाड़ी व घर के काम छोड़कर मंदिर परिसर में सिर्फ मेले का आनंद लेते हैं. फुलायच मेले के दौरान स्थानीय लोग पारंपरिक खान पान का ही इस्तेमाल करते हैं. तीन दिनों तक देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर ग्रामीण उनका आशीर्वाद लेते हैं.

ये भी पढ़ें: दशहरा उत्सव में देवलुओं को नहीं सताएगा डेंगू का डर, फॉग मशीन से ढालपुर मैदान में की जा रही है स्प्रे

किन्नौर: जिले के पग्रमंग क्षेत्र के उरणी गांव में चल रहे तीन दिवसीय फुलायच मेला का आज यानी शनिवार को समापन हो गया है. फुलायच का अर्थ फूलों का मेला होता है, जिसमे स्थानीय ग्रामीण पहाड़ों से ब्रह्मकमल लाकर अपने देवता को समर्पित करते है. उरणी गांव में आयोजित हुए फुलायच मेले की शुरूआत 12 अक्टूबर को हुई थी.

मेले में स्थानीय ग्रामीण अपने आराध्य देवता बद्री नारायण के मन्दिर प्रांगण में इकट्ठा होते हैं. इस दौरान सभी ग्रामीण किन्नौर की पारंपरिक वेशभूषा पहनकर आते हैं और स्थानीय देवता को ब्रह्मकमल समर्पित कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. इसके बाद तीन दिनों तक यहां पर पारम्परिक मेले का आयोजन होता है.

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किन्नौर के पग्रमंग इलाके में साल में एक बार फुलायच मेला मनाया जाता है. यह मेला गांव में आपसी सामंजस्य व देव समाज के नियमों को बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सैकड़ों वर्ष पुराने इस मेले के आयोजन का उद्देश्य गांव की सुख शांति व समृद्धि के लिए होता है, जिसे आज भी जिले के लोग अपने-अपने ग्रामीण क्षेत्रो में अपने समय अनुसार मनाते हैं.

तीन दिन तक मनाए जाने वाले मेले के दौरान ग्रामीण अपने खेतीबाड़ी व घर के काम छोड़कर मंदिर परिसर में सिर्फ मेले का आनंद लेते हैं. फुलायच मेले के दौरान स्थानीय लोग पारंपरिक खान पान का ही इस्तेमाल करते हैं. तीन दिनों तक देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर ग्रामीण उनका आशीर्वाद लेते हैं.

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