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हिमाचल का हरा भरा रेगिस्तान, रेत पर भी सेब के साथ लोग उगाते हैं नकदी फसलें

सांगला गांव का इतिहास काफी पुराना है. सांगला घाटी को बसाने में यहां के स्थानीय देवता बैरिंग नाग की अहम भूमिका बताई जाती है. ग्रामीण बताते हैं कि बैरिंग नाग ने अपना रूप बदलकर सांगला में बनी झील के चारों तरफ छेद कर इसे तोड़ दिया. इससे झील का सारा पानी बह कर सतलुज नदी में मिल गया. पानी अपने साथ मिट्टी भी बहाकर ले गया. मिट्टी के बह जाने से सांगला में सिर्फ रेत ही बची थी.

सांगली घाटी, सांगला वैली, sangla valley
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Published : Feb 18, 2021, 9:12 PM IST

Updated : Feb 18, 2021, 9:48 PM IST

किन्नौर: जिला किन्नौर के अधिकतर क्षेत्र अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी पाई जाती है, लेकिन सांगला घाटी में रेतीले जमीनी पाई जाती है. सांगला पर्यटन के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है. सांगला गांव का इतिहास काफी पुराना है. सांगला घाटी को बसाने में यहां के स्थानीय देवता बैरिंग नाग की अहम भूमिका बताई जाती है.

देवता बैरिंग नाग ने किया था प्रवास

सांगला के ग्रामीणों के मुताबिक सांगला घाटी बहुत समय पहले एक बहुत बड़ा तालाब हुआ करती थी. तालाब के आस-पास जाना मुमकिन नहीं था. इस तालाब के ऊपरी तरफ केवल कामरू गांव का किला व कुछ घर थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक सातवीं शाताब्दी की शुरूआत में देवता बैरिंग नाग सांगला आए और कुछ समय के लिए यहीं पर प्रवास किया.

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बैरिंग नाग ने बसाया था सांगला गांव

बेरिंग नाग को शेष नाग का रूप भी माना जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि बैरिंग नाग ने अपना रूप बदलकर सांगला में बनी झील के चारों तरफ छेद कर इसे तोड़ दिया. इससे झील का सारा पानी बह कर सतलुज में मिल गया. झील में जमा पानी अपने साथ मिट्टी भी बहाकर ले गया. मिट्टी के बह जाने से सांगला में सिर्फ रेत बच गई थी.

रेत पर उगाते हैं नगदी फसलें

सांगला में रेतीली जमीन होने के बाद भी यहां अच्छी गुणवता की नकदी फसलें होती हैं. लोग यहां सेब,ओगला,फाफड़ा, राजमाह, आलू, मटर व कई प्रकार की सब्जियां भी उगाते हैं. लोग रेतीली जमीन पर ही फसलें उगाकर अपना जीवन यापन करते हैं.

किन्नर कैलाश के नीचे बसा है सांगला गांव

ग्रामीणों का मानना है कि इस घाटी में देवता कामरू, बद्रीविशाल, बैरिंग नाग, बटसेरी देवता, छितकुल माता देवी, रकच्छम शमशेरस का आशीर्वाद है. इनके आशीर्वाद से ही रेतीली जमीन हरी-भरी है और आनाज उगाने के काबिल है. सांगला घाटी को पांडवों के अज्ञातवास से भी जोड़ा जाता है. सांगला को कैलाश नगरी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि सांगला गांव के ठीक ऊपर किन्नर कैलाश है.

गांगा का रूप मानी जाती है गांगरग

घाटी के मध्य में बहने वाली नदी को लोग गांगारंग बुलाते हैं और इसे गंगा का रूप मानते हैं. लोगों का मानना है कि पांडव अपने अज्ञातवास में सांगला आये थे और उत्तराखंड की गंगोत्री को सांगला की तरफ मोड़ने की कोशिश की थी. लोगों का मानना है कि गांगारंग दी का पानी कभी भी खराब नही होता. इसके पानी से स्नान करने पर चर्म रोग दूर होते हैं.

दो शब्दों से मिलकर बना है सांगला

कहा जाता है कि बैरंग नाग ने सांगला में बनी झील को सुबह के समय तोड़ा था इसलिए इसका नाम सांगला पड़ा. सांगला दो शब्दों से मिलकर बना है. सांग मतलब सुबह और ला यानी घाटी. यानी की सुबह की घाटी. आज भी सांगला में रेत पर ऊगी ताजी सब्जियों और बगीचे में पेड़ों पर लगे सेबों को देखकर लोग अचंभे में पड़ जाते हैं.

ये भी पढ़ें: आज भी यहां 'लकड़ी की तिजोरी' में अनाज रखते हैं लोग, सालों साल नहीं होता खराब

किन्नौर: जिला किन्नौर के अधिकतर क्षेत्र अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी पाई जाती है, लेकिन सांगला घाटी में रेतीले जमीनी पाई जाती है. सांगला पर्यटन के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है. सांगला गांव का इतिहास काफी पुराना है. सांगला घाटी को बसाने में यहां के स्थानीय देवता बैरिंग नाग की अहम भूमिका बताई जाती है.

देवता बैरिंग नाग ने किया था प्रवास

सांगला के ग्रामीणों के मुताबिक सांगला घाटी बहुत समय पहले एक बहुत बड़ा तालाब हुआ करती थी. तालाब के आस-पास जाना मुमकिन नहीं था. इस तालाब के ऊपरी तरफ केवल कामरू गांव का किला व कुछ घर थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक सातवीं शाताब्दी की शुरूआत में देवता बैरिंग नाग सांगला आए और कुछ समय के लिए यहीं पर प्रवास किया.

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बैरिंग नाग ने बसाया था सांगला गांव

बेरिंग नाग को शेष नाग का रूप भी माना जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि बैरिंग नाग ने अपना रूप बदलकर सांगला में बनी झील के चारों तरफ छेद कर इसे तोड़ दिया. इससे झील का सारा पानी बह कर सतलुज में मिल गया. झील में जमा पानी अपने साथ मिट्टी भी बहाकर ले गया. मिट्टी के बह जाने से सांगला में सिर्फ रेत बच गई थी.

रेत पर उगाते हैं नगदी फसलें

सांगला में रेतीली जमीन होने के बाद भी यहां अच्छी गुणवता की नकदी फसलें होती हैं. लोग यहां सेब,ओगला,फाफड़ा, राजमाह, आलू, मटर व कई प्रकार की सब्जियां भी उगाते हैं. लोग रेतीली जमीन पर ही फसलें उगाकर अपना जीवन यापन करते हैं.

किन्नर कैलाश के नीचे बसा है सांगला गांव

ग्रामीणों का मानना है कि इस घाटी में देवता कामरू, बद्रीविशाल, बैरिंग नाग, बटसेरी देवता, छितकुल माता देवी, रकच्छम शमशेरस का आशीर्वाद है. इनके आशीर्वाद से ही रेतीली जमीन हरी-भरी है और आनाज उगाने के काबिल है. सांगला घाटी को पांडवों के अज्ञातवास से भी जोड़ा जाता है. सांगला को कैलाश नगरी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि सांगला गांव के ठीक ऊपर किन्नर कैलाश है.

गांगा का रूप मानी जाती है गांगरग

घाटी के मध्य में बहने वाली नदी को लोग गांगारंग बुलाते हैं और इसे गंगा का रूप मानते हैं. लोगों का मानना है कि पांडव अपने अज्ञातवास में सांगला आये थे और उत्तराखंड की गंगोत्री को सांगला की तरफ मोड़ने की कोशिश की थी. लोगों का मानना है कि गांगारंग दी का पानी कभी भी खराब नही होता. इसके पानी से स्नान करने पर चर्म रोग दूर होते हैं.

दो शब्दों से मिलकर बना है सांगला

कहा जाता है कि बैरंग नाग ने सांगला में बनी झील को सुबह के समय तोड़ा था इसलिए इसका नाम सांगला पड़ा. सांगला दो शब्दों से मिलकर बना है. सांग मतलब सुबह और ला यानी घाटी. यानी की सुबह की घाटी. आज भी सांगला में रेत पर ऊगी ताजी सब्जियों और बगीचे में पेड़ों पर लगे सेबों को देखकर लोग अचंभे में पड़ जाते हैं.

ये भी पढ़ें: आज भी यहां 'लकड़ी की तिजोरी' में अनाज रखते हैं लोग, सालों साल नहीं होता खराब

Last Updated : Feb 18, 2021, 9:48 PM IST
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